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तंत्र-मंत्र के दम पर चलने लगती है मिट्टी की मूर्ति! लोग रह जाते हैं हैरान

नर्मदापुरम के सोहागपुर में भाई दूज पर लगा तांत्रिकों का मेला, जानिए क्या है गांगो माई और भीलट देव की मान्यता

NARMADAPURAM TANTRIK MELA
नर्मदापुरम के सोहागपुर में लगा तांत्रिकों का मेला (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 4, 2024, 11:16 AM IST

Updated : Nov 4, 2024, 11:26 AM IST

नर्मदापुरम: सोहागपुर तहसील में एक ऐसा मेला लगता है, जिसमें क्षेत्र के सैंकड़ों तांत्रिक यहां आकर तंत्र की देवी गांगो माई की परिक्रमा करते हैं. यह मेला बीते 150 सालों से लगता आ रहा है, जिसे सोहागपुर के सुखराम कोरी के पूर्वजों द्वारा शुरू किया गया था. यह परंपरा आज भी इस परिवार के द्वारा निभाई जा रही है. इस मेले को लेकर क्षेत्र में काफी उत्साह रहता है. इस वर्ष भी भाई दूज के मौके पर यह मेला लगाया गया.

मेले में शामिल होते हैं 200 तांत्रिक

सोहागपुर में लगने वाले तांत्रिकों के मेले में करीब 200 तांत्रिक अपनी देवी की पूजा करने और उसकी परिक्रमा करने के लिए इस मेले में शामिल होते हैं. यहां तांत्रिकों को स्थानीय भाषा में पडियार कहा जाता है. नर्मदापुरम के आदिवासी अंचल और खासकर पचमढ़ी के जंगलों में बसे ग्रामीण क्षेत्रों में तंत्र विद्या को जानने वालो की संख्या काफी अधिक है. ये सभी आदिवासी तांत्रिक इस मेले में शामिल होकर देवी के सामने आकर अराधना करते है और अपने अपने निशान के रूप में ढाला लेकर आते है, जिसे एक बांस में मोर पंखों को सजाकर बनाया जाता है. यहां तांत्रिक अपनी-अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयास करते रहते हैं.

मेले के दौरान दूर दूर से आते हैं तांत्रिक (ETV Bharat)

क्या है इस तांत्रिक मेले की मान्यता?

सोहागपुर में भाई दूज के दिन मनाया जाने वाले पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के गण भीलट देव और तंत्र की देवी गांगों दोनों तंत्र विद्या में माहिर थे. एक समय ऐसा आया कि दोनों आपस में ही अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करने लगे, जिसमें तंत्र की देवी गांगो ने भीलट देव को तंत्र विद्या के दम पर बैल बना दिया. भगवान शिव ने दोनों को आपस में लड़ता देख समझाया और कहा कि तुम दोनों भाई-बहन हो, आपस में लड़ना बंद करो. शिव जी ने गांगो को आशीर्वाद देकर कहा कि आज से सभी तंत्र के देवता और गण गांगों देवी की भाई दूज के दिन पूजा करके परिक्रमा करेंगे.तभी से तंत्र के जानने वाले पडियार गांगो माता की पूजा करते हैं.

मेले में शामिल होते हैं 200 तांत्रिक (ETV Bharat)

तांत्रिको के मेले में जितने भी तांत्रिक शामिल होते हैं, वह अपनी निशानी लेकर जरूर आते हैं. इस मेले की एक और खास बात है कि यहां तांत्रिक देवी की पूजा और परिक्रमा तब तक शुरू नहीं होती, जब तक भीलट देव का निशान गजा नहीं आ जाता. भीलट देव का निशान एक बांस में लोटा बांधकर बनाया जाता है और बाकी तांत्रिक गण अपने निशान बांस में मोर पंख बांधकर बनाते हैं.

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मिट्टी की मूर्ति को पैदल चलाने का दावा

तांत्रिक मेले में भजन करते हुए लोग (ETV Bharat)

सोहागपुर में तांत्रिक मेले की शुरुआत लगभग 150 वर्ष पूर्व बताई जाती है. एक तांत्रिक ने बताया, '' हमारे पूर्वजों ने इस देवी की प्रतिमा को शोभापुर के राजा से जीता था, जिसे सुखराम के पूर्वज इस मिट्टी की प्रतिमा को पैदल चलाकर अपनी तांत्रिक शक्ति के दम पर लाए थे. तभी से यहां तांत्रिक मेले का आयोजन कराया जा रहा है.'' तांत्रिक गांगो देवी की मूर्ति को मिट्टी और चमड़े से बनाया जाता है, जब सभी तांत्रिक परिक्रमा पूरी कर लेते हैं, तब गांगों देवी के सामने मुर्गों की बलि दी जाती है. दावा किया जाता है कि इस दौरान मिट्टी की मूर्ति में जान आ जाती है.

नोट : यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. ईटीवी भारत इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता.

Last Updated : Nov 4, 2024, 11:26 AM IST

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