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मर्डर केस में कोर्ट ने रद्द की फांसी की सजा, निचली अदालतों को समझाई सबूत और संदेह की थ्योरी - HC Overturned Lower Court Decision

HC Overturned Lower Court Decision नैनीताल हाईकोर्ट ने निचली अदालत से मौत की सजा पाए दो आरोपियों को रिहा कर दिया है. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कई गंभीर बातें कही. हाईकोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि मात्र अनुमान या संदेह कानूनी सबूत की जगह न ले ले.

HC Overturned Lower Court Decision
नैनीताल हाईकोर्ट (PHOTO- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 7, 2024, 7:40 PM IST

नैनीतालःउत्तराखंड हाईकोर्ट ने फांसी की सजा के मामले पर सुनवाई करते हुए निचली अदालतों को नसीहत दी है कि 'एक आपराधिक मुकदमे में, संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, उसे सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. ''हो सकता है" और "होना चाहिए" के बीच की मानसिक दूरी 'अस्पष्ट अनुमानों' 'निश्चित निष्कर्षों' में गौर करना चाहिए'. किसी आपराधिक मामले में यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि मात्र अनुमान या संदेह कानूनी सबूत की जगह न ले ले. किसी अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने से पहले, "सच्चा हो सकता है" और "सच्चा होना चाहिए" के बीच की बड़ी दूरी को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत स्पष्ट, ठोस और निर्विवाद साक्ष्य के माध्यम से कवर किया जाना चाहिए.

हाईकोर्ट ने इस नसीहत के साथ निचली अदालत से फांसी की सजा पाए दो अभियुक्तों की सजा को रद्द कर दिया. मामले के अनुसार, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रुद्रप्रयाग ने 2 दिसंबर 2018 और 4 दिसंबर 2018 को लूट और हत्या के दो आरोपियों सत्येश कुमार उर्फ सोनू और मुकेश थपलियाल को फांसी की सजा सुनाई थी. अपने आदेश की पुष्टि कराने के लिए उच्च न्यायालय में रेफरेंस आदेश भेजा था.

अप्रैल 2017 में दर्ज हुआ था केस: मामले के अनुसार अभियुक्तों के खिलाफ ग्राम लिस्वालता पट्टी कोट बंगर रुद्रप्रयाग निवासी महिला सरोजनी देवी के घर में डकैती करने, सरोजनी देवी की हत्या करने और लाश घर के पीछे छुपाने का आरोप था. लेकिन इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. लेकिन लुटे गए कुछ जेवरात और रुपए आरोपियों के पास मिले थे. मृतका के पुत्र विजय रावत ने घटना की प्राथमिकी 6 अप्रैल 2017 को अज्ञात लोगों के खिलाफ पट्टी पटवारी के समक्ष दर्ज कराई थी. विजय रावत मुंबई में रहता था, जिसे 4 अप्रैल को अपनी मां के गायब होने की सूचना मिली थी. जिसके बाद वह गांव लौटा था. जबकि उसके पिता त्रिलोक सिंह युगांडा में थे.

गंभीर संदेह नहीं बस सकता सबूत: निचली अदालत से मिली सजा के खिलाफ सत्येश कुमार उर्फ सोनू और मुकेश थपलियाल ने हाईकोर्ट में अपील भी दायर की थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने गवाहों के बयानों को गंभीर संदेह पैदा करने वाला बताया और अपीलकर्ताओं द्वारा ही महिला की हत्या की गई हो, ऐसा विश्वास नहीं होना पाते हुए कहा कि गंभीर संदेह भी प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता.

8 मई को सुरक्षित रखा फैसला: हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितू बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई 8 मई को पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिस पर 6 अगस्त को निर्णय दिया गया. खंडपीठ ने रिकॉर्ड पर मौजूद सभी मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों की प्रकृति और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए आईपीसी की धारा 302, 34, धारा 392 और धारा 201 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 302 आईपीसी के तहत अपीलकर्ताओं की सजा को रद्द कर उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं.

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