पछुवादून में है पौराणिक गंगभेवा बावड़ी विकासनगर: पछुवादून क्षेत्र का प्राचीन काल से ही बड़ा महत्व रहा है. यहां पर कई सूर्य और चंद्रवशी राजाओं ने बड़े-बड़े यज्ञ किए. प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों के आश्रम भी यहां पर मौजूद थे. जिनके प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. इन्हीं में से एक है गौतम ऋषि की तपस्थली महादेव गंगभेवा बावड़ी मंदिर.
गंगभेवा बावड़ी सप्त ऋषियों में एक महर्षि गौतम से जुड़ी है पछुवादून में बिखरी हैं पौराणिक स्मृतियां:पछूवादून क्षेत्र धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक की दृष्टि से अपने आप में प्राचीन इतिहास को संजोए हुए है. इस क्षेत्र का प्राचीन धार्मिक ग्रंथों, वेद, पुराणों, दर्शन शास्त्रों मे भी प्रमाण देखने को मिलते है. जिन्हें आज के समय भी प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है. यहां पवित्र यमुना, तमसा एवं सहायक नदियों का संगम, अशोक का शिलालेख, अश्वमेध यज्ञ स्थली, कृष्ण मंदिर, मां काली मंदिर और महादेव गंगभेवा बावड़ी मंदिर स्थित हैं.
गंगभेवा बावड़ी का है पौराणिक महत्व:गंगभेवा बावड़ी का भी प्राचीन महत्व है. माना जाता है कि गौतम ऋषि इस स्थान पर आश्रम बनाकर जप, तप व पूजा ध्यान करते थे. गौतम ऋषि नित्य प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर यहां से कोसों दूर पैदल चलकर हरिद्वार में गंगा स्नान करने के लिए जाया करते थे. किवदंती है कि एक दिन गौतम ऋषि अर्ध रात्रि को गंगा स्नान करने के लिए हरिद्वार पहुंचे. जैसे ही वह स्नान करने के लिए जल में उतरे तो उसी समय गंगा माता स्वयं प्रकट होकर बोलीं- बेटा गौतम मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, परंतु आज तुमने मुझे और समय जगाया. तुम जल्दी अपने आश्रम लौट जाओ. तुम्हारा स्नान आज भी होगा, परंतु यहां नहीं तुम्हारे आश्रम के नजदीक. मैं तुम्हारे आश्रम के नजदीक प्रकट हो रही हूं, ताकि तुम्हें प्रतिदिन स्नान करने के लिए इतनी दूर से यहां आने का कष्ट फिर से ना उठाना पड़े.
शिवरात्रि पर यहां मेला लगता है गौतम ऋषि की कर्मस्थली रहा पछुवादून:गौतम ऋषि वापस अपनी कुटिया पर पहुंचे, तो गंगा की धारा की कल कल करती ध्वनि उनको सुनाई पड़ी. उन्होंने देखा कि गंगा जी का स्रोत बह रहा है. माना जाता है कि इस आश्रम की स्थापना स्वयं गौतम ऋषि ने की थी. इसे गौतम आश्रम के नाम से भी जाना जाता है. साथ ही उनके द्वारा गंगस्रोत के ऊपर स्थापित शिवलिंग को गंगेश्वर महादेव भी कहा जाता है. यहां पर शिवलिंग आज भी मूल एवं प्राचीन है. महाशिवरात्रि और बैशाखी के अवसर पर प्रतिवर्ष श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां आते हैं. गंगस्रोत में स्नान के बाद शिवलिंग की पूजा अर्चना कर यश के भागी बनते हैं और मनोवांछित कामना पूर्ण करते हैं. पूर्वांचल के लोग वर्षों से यहां लगातार छठ पूजन करते आ रहे हैं. इस गौतम आश्रम में सभी लोग बिना भेदभाव के एक साथ मिलकर गंगस्रोत में स्नान कर दर्शन पूजन करते हैं.
पंडित जी ने क्या कहा: पंडित कृष्णानंद जगूड़ी का कहना है कि विकासनगर में ही पुरोहित कर्म का कार्य करता हूं और विगत 20 वर्षों से यहां पर ज्योतिष का कार्य करता आ रहा हूं. पछूवादून क्षेत्र का यह बहुत प्राचीन पूजा स्थल और सिद्ध तीर्थ है. इसका शास्त्रों में भी वर्णन आता है और यहां किवदंति है कि यहां पर गौतम ऋषि तपस्या किया करते थे. यहां पर देव कार्य, पितृ कार्य सभी शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं. दूर-दूर से लोग इस क्षेत्र की प्रशंसा सुनकर आते हैं. जो लोग हरिद्वार आदि क्षेत्र में जाने को असमर्थ होते हैं, वो यहां आते हैं.
गंभेवा बावड़ी में स्नान करने लोग आते हैं गंगाजल जैसा महत्व है गंगभेवा बावड़ी के जल का:इस जल की विशेषता यह भी है कि यह जल अगर आप घर ले जाएं तो यह खराब नहीं होता है. जैसे हरिद्वार का गंगाजल है, स्वयं वही जल यहां पर भी है. यही यहां की विशेषता है. गंगभेवा बावड़ी मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रविंद्र चौहान का कहना है कि यहां पर राधा कृष्ण का मंदिर है. हिमाचली समाज ने यहां पर एक भव्य बाबा बालकनाथ का मंदिर बनाया है. यह मंदिर बहुत पुराने मंदिरों की श्रृंखला का है. यहां पर हनुमान जी का भी एक विशाल मंदिर बना हुआ है. यहां पर पीछे तालाब है. उस तालाब में जिनका राहु खराब होता है, वह बहुत लोग आकर राहु को ठीक करने के लिए मछलियों को दाना डालते हैं.
यहां लगता है पौराणिक मेला: यहां पर सबसे लोग अपने पितरों के लिए पूजा अर्चना करते हैं. यहां पर 13 अप्रैल से विशाल मेला भी लगता है. यह मेला सैकड़ों साल से लगता आ रहा है. हजारों की संख्या में लोग हिमाचल के सिरमौर, जौनसार बावर और पछुवादून सहित आसपास से यहां आते है. लोगों की यहां पर श्रद्धा है. लगातार यहां पर गंगा में स्नान करने आते हैं. जो गंगा का प्यार और आशीर्वाद हरिद्वार में मिलता है, वैसा ही यहां भी लोगों को एहसास होता है.
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