सागर।बुंदेलखंड को मध्य प्रदेश के सातवें टाइगर रिजर्व की सौगात मिली है. खास बात ये है कि क्षेत्रफल की दृष्टि से ये टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है और दूसरे टाइगर रिजर्व के मुकाबले इसके कोर एरिया का क्षेत्रफल भी ज्यादा है. तीन जिलों में फैले टाइगर रिजर्व में गरमी के मौसम की आहट के चलते ही आगजनी का खतरा बढ़ गया है. ऐसे में जंगल और जानवरों के अलावा वहां के बाघों को आग से बचाने के लिए टाइगर रिजर्व ने तैयारियां तेज कर दी है. फिलहाल टाइगर रिजर्व के नरसिंहपुर जिले के इलाके में आगजनी की कुछ घटनाएं सामने जरूर आयी है, लेकिन कोई बड़ी घटना टाइगर रिजर्व में देखने नहीं मिली है. टाइगर रिजर्व प्रबंधन का कहना है कि 'आगजनी की घटनाओं को लेकर हम पूरी तरह से मुस्तैद और तैयार हैं. जिन इंतजामों की जरूरत महसूस हो रही है, वो व्यवस्थाएं की जा रही है.
मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व
मध्य प्रदेश के सातवें टाइगर रिजर्व के रूप में आकार ले चुके वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की बात करें, तो सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैले प्रदेश के सबसे बडे़ नौरादेही अभ्यारण्य और प्रदेश के सबसे छोटे दमोह के रानी दुर्गावती अभ्यारण्य को मिलाकर बनाया गया है. इसका कुल 2339 वर्ग किलोमीटर है और इसका 1414 वर्ग किमी का कोर एरिया और 925.12 किमी का बफर एरिया है. जिसमें 81 गांव बसे हुए हैं. इसके अलावा टाइगर रिजर्व के अंदर बसे 65 गांवों का विस्थापन हो गया है. यहां पर शाकाहारी जीवों में चीतल,सांभर, नीलगाय अच्छी संख्या में मौजूद हैं. यहां की वनसंपदा की बात करें, तो मिश्रित और छिछले वन वाले इलाके में महुआ,करंज, बेल और खैर के वृक्ष काफी तादाद में हैं. घास के बड़े-बड़े मैदान होने से यहां तेंदुआ, भेड़िया, जंगली कुत्ता अच्छी तादाद में हैं.
विशाल वनक्षेत्र में आगजनी की घटनाएं आम बात
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में आगजनी की घटनाएं आम बात है. विशाल वनक्षेत्र वाले टाइगर रिजर्व में गर्मी के दिनों में छोटी और बड़ी आगजनी की घटनाएं सामने आती है. ताजा घटनाक्रम में टाइगर रिजर्व के डोंगरगांव रेंज वाले इलाके में आगजनी की घटना सामने आयी थी. हालांकि धीरे-धीरे आबादी का दखल कम होने के कारण आगजनी की घटनाओं में भी कमी आ रही है, लेकिन टाइगर रिजर्व बनने के बाद प्रबंधन की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गयी है और इसके लिए व्यापक तैयारियां की जा रही है.
इंसानी गलतियां और दखल बनती है आगजनी का कारण
दरअसल जंगल में होने वाली आगजनी की घटनाओं में ज्यादातर इंसानी गलती और आदतें आगजनी का कारण बनती है. इसी सीजन में महुआ बीनने और तेंदूपत्ता संग्रहण का काम चलता है. महुआ बीनने वाले लोग महुआ के पेड़ के नीचे घास फूंस जला देते हैं, ताकि महुआ आसानी से बीन सके. इसकी वजह से आगजनी की घटनाएं होती है. इसके अलावा तेंदूपत्ता संग्रहण करने वालों का मानना होता है कि पुराने पत्ते में आग लगा देने से नए तेंदूपत्ता का अंकुरण अच्छे से होता है. वहीं दूसरी तरफ जंगल में घूमने जाने वाले पर्यटक कभी पिकनिक मनाने के लिए आग जलाते हैं या फिर धूम्रपान करते हैं, तो इससे भी आगजनी की घटनाएं होती है.
फायर ब्रिगेड जंगल में नहीं आती काम
डिप्टी डायरेक्ट डाॅ ए ए अंसारी बताते हैं कि आगजनी की घटनाओं पर काबू पाने के लिए फायर ब्रिगेड कारगर सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि जंगल का एरिया काफी दुर्गम होता है. हमारे कई अनुभव ऐसे रहे हैं कि फायर ब्रिगेड की मदद लेने पर फायर ब्रिगेड जंगल में फंस गयी. इसलिए हम लोग पेट्रोलिंग वाहनों के जरिए आगजनी की घटनाओं से निपटने के लिए मौके पर पहुंचते हैं. हमारे कर्मचारियों के लिए पानी के अलावा गुड़ और दूसरी चीजें रखते हैं कि अगर जंगल में समय लग जाए, तो खाने पीने का संकट ना बढे़. इसके अलावा फर्स्ट एड बाॅक्स रखते हैं कि अगर कोई आगजनी की घटना में जल जाए या घायल हो जाए, तो तत्काल प्राथमिक उपचार दिया जा सके. टाइगर रिजर्व की 6 रेंज का स्टाॅफ एक दूसरे के संपर्क में रहता है और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद के लिए पहुंचता है.
सैटेलाइट से रखी जाती है निगरानी
हालांकि वनों के आग के मामले में वन विभाग मुख्यालय स्तर पर एक फायर कंट्रोल रूम बनाया गया है. जो पूरे प्रदेश के जंगलों में आगजनी की घटनाओं की निगरानी सैटेलाइट के जरिए करती है और किसी भी तरह के इनपुट मिलने पर संबंधित टाइगर रिजर्व या वनमंडल को सूचना देती है. सैटेलाइट आगजनी की घटनाओं पर काबू पाने काफी मददगार होती है, क्योंकि इसके जरिए सटीक जानकारी मिलती है और वनकर्मियों को घटनास्थल पहुंचने में आसानी होती है.