विदिशा। मां वैसे तो एक शब्द मात्र है, पर सोचे तो पूरी सृष्टि है, क्योंकि मां ही तो है, जिसने हम सबको जन्म दिया. केवल हम सबको ही नहीं, मां ने तो ईश्वर को भी जन्म दिया है. कहते हैं कि, ईश्वर हर समय धरती पर विचरण नहीं करते, इसलिए उसने अपने अवतार के रूप में मां बनाई, जो अपने बच्चों को न केवल नया जीवन देती है, बल्कि उसकी सुरक्षा भी करती है, लेकिन सोचो, अपनी संतान के लिए दुनियां से लड़ जाने वाली मां की संतान ही जब उसके दुख का कारण बन जाये तो उस मां के दिल पर क्या गुजरती होगी. अपनी औलादों की तरफ से बेसहारा माओं के पास तब एक ही सहारा बचता है, वृद्धाश्रम. इस आर्टिकल में हम आपको ऐसी ही महिला की कहानी बतायेंगे जो अपनी संतानों से प्रताड़ित माओं को सहारा देती हैं.
2005 में शुरु किया था आश्रम
मध्य प्रदेश के विदिशा जिला मुख्यालय पर रहने वाली इंदिरा शर्मा एक ऐसी सशक्त मां हैं, जिनका नाम समाज में बुजुर्ग माताओं की मसीहा के रूप में पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है. इंदिरा शर्मा ने पीड़ित मानवों की सेवा करने को ही अपना लक्ष्य बना लिया है. इन्होंने साल 2005 में विदिशा जिला मुख्यालय पर निराश्रित निर्धन वृद्धजनों के लिए एक वृद्धाश्रम की स्थापना की. यह वृद्धाश्रम 15 सौ वर्ग फिट के एक छोटे से किराए के मकान में शुरू हुआ था. आज यह समाज और शासन के सहयोग से 25 हजार वर्ग फीट में विशाल रूप ले चुका है. इस आश्रम में बुजुर्गों के लिए उपलब्ध सुविधायें उन्हें किसी भव्य होटल की सुविधाओं से कम नही लगती हैं. ये सब इतनी सहजता से नहीं हुआ है. इसके पीछे इंदिरा शर्मा का समर्पण और अपनों से सताये हुए लोगों के लिए कुछ करने की इच्छाशक्ति से हुआ है.
राज्य सरकार से मिल चुका है सम्मान
वृद्धाश्रम में रहने वाली एक महिला ने बताया कि, 'विदिशा के सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्ट्यूट में टीचर, इंदिरा शर्मा ने जब 2005 में "श्री हरि" वृद्धाश्रम की शुरूआत की थी, तो उन्होंने अपनी सात साल की जमा पूंजी को आश्रम निर्माण में लगा दिया था. इंदिरा शर्मा खुद आश्रम में सेवा-भाव करती थीं. बुजुर्गों को नहलाती थी, उन्हें खाना, दवाई वो खुद अपने हाथों से खिलाती थीं. इंदिरा शर्मा राज्य की एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने साल 2008 में 'प्रथम गुरु नानक युवा राज्य सम्मान' से नवाजा है. अपनी दो बेटियों और भरे पूरे परिवार के साथ इंदिरा शर्मा बुजुर्गों के एक बड़े परिवार को बेहतरीन ढंग से संभालती हैं. आश्रम में 60 बुजुर्ग ऐसे हैं, जो स्थाई रूप से आश्रम में ही रहते हैं, उनको अपना मानने वाला, वापस घर ले जाने वाला कोई नहीं है.