धनबाद: मां की करुणा की तुलना पूरे ब्रह्मांड में किसी से नहीं की जा सकती. मां के प्यार, त्याग और बलिदान के लिए आज पूरी दुनिया में मदर्स डे मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने ऐसी ही कुछ माताओं के दुख-दर्द को जानने और महसूस करने की कोशिश की है. जिन्हें उनके बच्चों ने ठुकरा दिया है.
अपने बच्चों की प्रताड़ना से तंग आकर वे अब वृद्धाश्रम में शांतिपूर्ण जीवन जी रही हैं. अब ये मांएं अपने घर नहीं जाना चाहतीं. उनका कहना है कि अब मेरा अंतिम संस्कार भी यहीं से होगा. वे सभी वृद्धा आश्रम के संचालक को अपना बेटा मानती हैं. संचालक भी उन्हें अपनी मां मानते हैं और उनकी सेवा करते हैं.
शहर के सरायढेला स्थित वृद्धाश्रम में इन दिनों करीब 12 माताएं रह रही हैं. सबकी नजरें अपनों के जुल्म की कहानी खुद बयां करती हैं. उन्हें देखने से ही उनके चेहरे और आंखों पर दर्द का अहसास होता है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए यहां रहने वाली झरिया की विमला देवी ने बताया कि उनके तीन बेटे, बहुएं और चार पोते हैं. पिछले चार साल से वह वृद्धा आश्रम में रह रही हैं. पति की मौत के बाद तीनों बेटे अलग-अलग जगह रहते हैं.
उन्होंने बताया कि उनके तीनों बेटों में एक आसनसोल, एक लाल बंगला और एक गिरिडीह में रहते हैं. वह कहती हैं कि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. अब वह यहीं रहेंगी और यहीं से उनकी अर्थी उठेगी. चार साल में किसी ने उनकी सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई. उनकी सारी धन-सम्पत्ति बेटों ने ले लिया है. उन्होंने कहा कि वृद्धाश्रम के नौशाद मुझे बेटे से भी ज्यादा प्यार करते हैं. अब मैं कहीं नहीं जा रही.
बलियापुर की रहने वाली एक महिला ने बताया कि वह सिर पर टोकरी रखकर सब्जी बेचकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं. बड़े होने पर बच्चों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. वह अपनी जान देने वाली थीं. लेकिन पुलिस ने उन्हें बहुत समझाया. उन्होंने कहा कि जान देना पाप है. इसके बाद वे उन्हें यहां ले आये. उनका कहना है कि वह घर नहीं जायेंगी, यहीं उनकी अब मौत होगी. हर कोई मेरे लिए मर चुका है.