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महाभारत में हुआ था एक खास पौधे से इलाज, देखें रीवा का शल्यकर्णी - Shalyakarni Mahabharata Connection

आज के समय में किसी भी चोट और बीमारी के इलाज के लिए एक से बढ़कर एक डॉक्टर और हॉस्पिटल मौजूद हैं. वहीं महाभारत काल के समय में घायलों के इलाज के लिए कई औषधियों के साथ शल्यकर्णी पौधा का इस्तेमाल किया जाता था, जिसे वर्तमान में रीवा के वन संरक्षक सामाजिक वानिकी वृत्त अनुसंधान केन्द्र में संरक्षित किया जा रहा है. पढ़िए खास रिपोर्ट

SHALYAKARNI MAHABHARATA CONNECTION
रीवा में मौजूद है चमत्कारी "शल्यकर्णी" औषधीय पौधा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 16, 2024, 11:00 PM IST

Updated : Aug 17, 2024, 8:03 AM IST

रीवा: महाभारत के भीषण युद्ध के बारे में तो आप सभी ने वेद और पुराणों में पढ़ा ही होगा. कौरव और पांडवों की सेना के बीच हुआ महासंग्राम कई दिनों तक चला. जिसमें दोनों तरफ के सैनिक बड़ी संख्या में घायल होते थे, लेकिन शायद आपको यह पता नहीं होगा की महाभारत के युद्ध में घायल होने वाले योद्धाओं और सैनिकों का उपचार किस जड़ी बूटी से और कैसे किया जाता था. आज हम आपको बताने जा रहे हैं, ऐसे ही एक औषधीय गुणकारी चमत्कारी पौधे शल्यकर्णी के बारे में जो अब विलुप्त होने के कगार पर है. कहा जाता है की महाभारत के युद्ध में भाले, तलवार और तीर के वार से घायल हुए सैनिकों का उपचार शल्यकर्णी पौधे के पत्ते और उसके छाल के रस से किया जाता था और उपचार के कुछ घंटों बाद ही घायल सैनिक दोबारा युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए तैयार खड़ा हुआ दिखाई देता था.

शल्यकर्णी पौधे के बारे में दी जानकारी (ETV Bharat)

रामायण और महाभारत में शल्यकर्णी पौधे का वर्णन

अगर रामायण काल की बात करें तो उसमें तीन महा शक्तिशाली जड़ी बूटियों का वर्णन आता है. जिसमें मृत संजीवनी, विश्ल्यकर्णी और शल्यकर्णी है. जिस प्रकार से संजीवनी जड़ी-बूटी के सेवन से मर्णाशन हालत में पड़ा व्यक्ति जीवित हो जाता था. उसी तरह से प्राचीन काल के दौरान विश्ल्यकर्णी का पौधा भी विभिन्न प्रकार के बिमारियों में उपचार के लिए उपयोग में लाया जाता था. वहीं अगर बात करें शल्यकर्णी के औषधीय गुणकारी पौधे के बारे में तो इस पौधे का इस्तेमाल महाभारत के युद्ध में व्यापक स्तर पर किया गया था.

शल्यकर्णी पौधा (ETV Bharat)

कहा जाता है की कौरव और पांडवों के बीच कई दिनों तक चले भीषण युद्ध के दौरान जो भी सैनिक रणभूमि में तलवार भाले और तीर के वार से घायल होते थे उनका उपचार वैद्य इसी शल्यकर्णी के गुणकारी पौधे से करते थे.

युद्ध में घायल हुए सैनिकों का शल्यकर्णी पौधे से होता था उपचार

महाभारत काल में युद्ध के दौरान शल्यकर्णी के पौधे के पत्ते और उसके छाल को पीसकर उसके रस को निकाला जाता था. इसके बाद कपड़े को उसी रस में भिगोकर उस कपड़े को घायल सैनिकों के घाव वाले जगह पर बांध दिया जाता था. इसके बाद कुछ घंटों के भीतर ही स्वस्थ होकर घायल सैनिक दोबारा युद्ध के लिए रणभूमि में युद्ध के लिए खड़ा दिखाई देता था. प्राचीन काल में शल्य चिकित्सा वह चिकित्सा पद्धति थी, जिसे आज के समय में हम सर्जरी कहते हैं.

चमत्कारी शल्यकर्णी का औषधीय पौधा (ETV Bharat)

ऐसे दोबारा अस्तित्त्व में आया चमत्कारी गुणकारी शल्यकर्णी का पौधा

बताया जाता है की सीधी और अमरकंटक के पहाड़ी क्षेत्र के आलावा रीवा के छुहिया पहाड़ में इसकी खोज आदिवासियों ने की थी. किवदंती है की कई साल पहले आदिवासियों ने एक झरने के समीप एक बड़ी सी मछली को तीर मारकर उसका शिकार किया था. जिसके बाद आदिवासियों ने मछली को घर तक ले जाने के लिए पास ही लगे शल्यकर्णी के पत्तों का स्तेमाल किया था. उन्होंने शिकार की गई मछली को शल्यकर्णी के पत्ते से लपेटा और उसे घर लेकर गए. दूसरे दिन सुबह जब मछली के ऊपर लपेटे गए पत्ते को हटाए गए तो मछली पर लगे तीर के घाव गायब थे. अब इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह पौधा कितना चमत्कारी, लाभकारी और गुणकारी है.

रीवा का औषधीय वाटिका (ETV Bharat)

आदिवासियों ने की थी शल्यकर्णी के खोज

जानकारी के मुताबिक 2008 में एक आदिवादी सम्मेलन हुआ. उसी दौरान उन आदिवासियों ने इस दुर्लभ शल्यकर्णी पौधे की जानकारी दी थी. तभी यह पौधा दोबारा अस्तित्त्व में आया, लेकिन अब यह पौधा विलुप्त होने के कगार पर है. यह पौधा हिमालय पर्वत के आलावा पंचमढ़ी अमरकंटक और रीवा सीधी के मध्य छुहिया पहाड़ में पाए जाते थे. कहा जाता है की यह खास पौधे अब काफी कम संख्या में छुहिया पहाड़ मौजूद है. मगर यह गुणकारी पौधा अब अन्य स्थानों से धीरे धीरे करके लुप्त होता जा रहा है. बताया गया है कि आज भी आदिवासी इस गुणकारी पौधे का इस्तेमाल करके बाखूबी अपना इलाज कर लेते हैं.

रीवा में संरक्षित महाभारत शल्यकर्णी पौधा (ETV Bharat)

रीवा में वन संरक्षक वानिकी विभाग में संरक्षित किया गया पौधा

हालांकि रीवा के वन संरक्षक सामाजिक वानिकी वृत्त अनुसंधान केन्द्र में इस विलुप्त होते प्राचीन काल के गुणकारी और चमत्कारी पौधे शल्यकर्णी को संरक्षित कर रखने का प्रयास किया जा रहा है. जिससे इसकी संख्या बढ़ाई जा सके. इस पौधे को कई वर्ष पहले अमरकंटक के जंगलों से लाया गया था. इसके बाद रीवा के वानिकी विभाग में इसका पौधारोपण किया गया. यहां के औषधीय वाटिका में इसकी नर्सरी लगाई गई. जबकि यहां पर रोपे गए शल्यकर्णी के कुछ पौधे 5 फीट से लेकर 10 फीट तक के हैं.

फॉरेस्ट रेंजर ने ईटीवी से बताए शल्यकर्णी के गुण

रीवा के वानिकी विभाग में पदस्थ फॉरेस्ट रेंजर अमर सिंह मरावीने ईटीवी भारत से बात करते हुए इस खास पौधे के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया की 'शल्यकर्णी का पौधा एक महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधा है. जिसके नाम से स्पष्ट होता है कि शल्यकर्णी जिसका शल्य चिकित्सा में इस खास पौधे का इस्तेमाल होता है. शरीर में होने वाले घाव में शल्यकर्णी के पत्ते और छाल को पीसकर उसका लेप या फिर उसके रस को घाव पर लगाकार उसे कपड़े से बांधा जाए, तो घाव कुछ ही घंटों में जुड़ जाएगा और वह अंग दोबारा स्वस्थ हो जाएगा. महाभारत काल में युद्ध के दौरान जब सैनिक घायल होते थे, तब उनके घाव को ठीक करने के लिए इसी गुणकारी पौधे शल्यकर्णी को उपयोग में लाया जाता था.'

आयुर्वेद के महान ग्रंथ चरक संहिता में भी शल्यकर्णी का वर्णन

इसी तरह से शल्यकर्णी पौधे के बारे में जब रीवा के आयुर्वेद महाविद्यालय के डीन डॉ. दीपक कुलश्रेष्ठ से ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने बताया की 'शल्यकर्णी एक लुप्त प्राय पौधा है. यह पौधा अब विलुप्त होने की श्रेणी में है. इस पौधे का वर्णन महाभारत काल में भी है. इस पौधे का मात्र लेप लगाने से ही युद्ध में घायल हुए सैनिकों की घाव ठीक हो जाते थे. इसके साथ ही आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता में भी इसका वर्णन किया गया है. इस खास पौधे का वृक्ष करीब 50 से लेकर 60 फीट तक का होता है. इस पौधे के पत्ते से महाभारत के युद्ध में सैनिक जब तलवार भाले और तीर से घायल होते थे. तब इनके पत्तो से सैनिकों का उपचार किया जाता था.'

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आयुर्वेद महाविद्यालय के डीन ने बताई खास पौधे की विशेषता

डॉ. दीपक ने बताया की 'शल्यकर्णी के पौधे से बनी औषधी का उपयोग अभी तक हमारे आयुर्वेद अस्पताल में नहीं किया गया है. फॉरेस्ट विभाग ने अमरकंटक में इसके पौधे की खोज की है. रीवा में नर्सरी में इसका सरंक्षण भी किया जा रहा है. हमारे द्वारा इस पौधे को आयुर्वेद अस्पताल में लाकर इस्तेमाल किया जाएगा. आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन है. जिस प्रकार से शल्यकर्णी इसका नाम है और शल्य का मतलब ही घाव होता है. जिसे ठीक करने में इस पौधे का प्रयोग किया जाता था. पहले इस पौधे के संरक्षण करने के साथ ही इसकी संख्या बढ़ाए जाने की अवश्यकता है. इसके बाद ही इसका उपयोग करना ठीक होगा.'

Last Updated : Aug 17, 2024, 8:03 AM IST

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