वाराणसी:देश में मेंस्ट्रूअल हाइजीन डे 28 मई को मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को माहवारी के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के प्रति जागरूक करना और गंभीर बीमारियों से बचाव के प्रति तैयार करना होता है. विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान परिवेश में माहवारी के प्रति कुछ बातों का ख्याल रखकर गंभीर समस्या से बच सकते हैं.
अनियमित खानपान से भी पीरियड्स में नुकसान. (Photo Credit-Etv Bharat) आयुर्वेद महाविद्यालय की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सारिका श्रीवास्तव के अनुसार पीरियड्स (माहवारी) महिलाओं में ऐसी शारीरिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला को गुजरना होता है. इसे अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है जैसे- मासिक धर्म, रजोधर्म, महीना. यह शरीर में होने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जो निर्धारित समय पर चलती रहती है और प्रत्येक महीने इसका दोहराव होता है.
यह किसी भी तरीके की बीमारी नहीं होती है. यह जरूर कहा जा सकता है कि पीरियड्स के दौरान अगर साफ-सफाई नहीं रखी जाती है और हाइजीन का पूरा खयाल नहीं रखा जाता है तो बहुत सी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए महिलाओं को खुलकर बात करने की जरूरत होती है.
विशेषज्ञ के बाद लें दवाएं:डॉ. सारिका श्रीवास्तव कहती हैं कि माहवारी के समय यूट्रस का रास्ता खुला रहता है. इससे इंफेक्शन की समस्या जल्दी हो सकती है. आयुर्वेद में भी इसके बारे में वर्णन किया गया है. इस समय दवाइयां विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के बाद ही लेनी चाहिए. साथ ही योगा करना, समय से सोना, समय से उठना जैसी चीजों मेंटेन करना होता है. मैदा, कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन भी कंट्रोल रखना होता है.
स्कैंटी पीरियड्स की बात करें तो आज हर दूसरी महिला इससे पीड़ित है. हमारे पास अगर 20 मरीज आते हैं तो 10 लड़कियां इसी बीमारी से पीड़ित होती हैं. अगर औषधियों की बात करें तो अगर अवरोध हो गया तो वह आम दोष की वजह से होता है. दीपन-पाचन औषधियों से पाचन ठीक किया जाता है. साथ ही डाइट को ठीक करना चाहिए.
शरीर में आंतरिक एवं बाह्य समस्याएं:अगर अनियमित पीरियड्स आ रहे हैं तो भविष्य में गर्भधारण करने में भी समस्या हो सकती है. साथ ही साथ थकान होना, शरीर की ढीला होना, चिड़चिड़ापन होना, सिर दर्द होना, स्तनों में कसाव होना एवं कुछ किशोरियों में कब्ज की समस्या का होना भी देखा जाता है. यह सभी माहवारी के सामान्य लक्षण हैं.
बैक्टीरियल वेजिनोसिस:उन महिलाओं में बैक्टीरियल वेजिनोसिस का खतरा अधिक होता है, जिनकी उम्र बच्चे को जन्म देने की है. इन महिलाओं में असुरक्षित यौन संबंध या नियमित डूशिंग जैसी चीजें इसकी समस्या को और भी बढ़ा सकती हैं. इसके लक्षण में जलन, गंध और असमान्य वजाइनल डिस्चार्ज शामिल होता है.
रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फेक्शन:यह महिलाओं में गलत तरीके से दवा और इलाज के कारण होता है. अगर असुरक्षित एबॉर्शन या प्रसव की उचित व्यवस्थाएं न रही हों तो इसकी समस्या आ सकती है. रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फेक्शन में तीन प्रकार होते हैं. सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज (एसटीडी), एंडोजेनस इन्फेक्शन और आईट्रोजेनिक इन्फेक्शन.
जेनिटल ट्रैक्ट इन्फेक्शन का जोखिम:जेनिटल ट्रैक्ट इन्फेक्शन एंडोमेट्रैटिस या सल्पिंजाइटिस गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में होने वाला बैक्टीरियल इन्फेक्शन हैं. इसकी वजहों की बात करें तो यह यह सेक्सुअल संपर्क से फैल सकता है या प्रसव या गर्भपात के बाद विकसित हो सकता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि यह पेरिटोनाइटिस, पेल्विक फोड़े या सेप्टीसीमिया की वजह से और खराब स्थिति में जा सकता है.
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI):यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक होता है. इसका जोखिम महिलाओं में अधिक देखने को मिलता है. यह यूरिनरी ट्रैक्ट (मूत्राशय) के किसी भी हिस्से पर असर करता है. यह किडनी में फैलता है और अधिक नुकसान पहुंचाता है.
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