पटना: नवरात्र का पर्व जहां देवी के नौ रूपों की आराधना और महिला शक्ति के सम्मान का प्रतीक है, वहीं बिहार के स्कूलों में महिला स्वास्थ्य और माहवारी स्वच्छता को लेकर स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. अप्रैल 2023 में पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अधिकांश सरकारी स्कूलों में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनें अब भी निष्क्रिय पड़ी हैं, जिससे छात्राओं को गंभीर असुविधा का सामना करना पड़ रहा है.
शिक्षा विभाग की पहलः महिला एवं बाल विकास निगम ने साल 2023 के जून महीने में पैसे देकर सभी जिले के डीएम के माध्यम से कुछ स्कूलों को चिन्हित कर सेनेटरी पैड मशीन लगवाई थी. 5 रुपये का सिक्का डालने पर मशीन से पैड निकलता है. यह मशीन जिला शिक्षा पदाधिकारी के माध्यम से पटना में भी बालिकाओं के विद्यालय और को-एड स्कूलों में लगायी गयी थी. लेकिन ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट में पता चला कि कई स्कूलों में ये मशीनें खराब पड़ी हुई हैं.
स्कूलों में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन का हाल. (ETV Bharat) पटना का मिलर स्कूलः पटना के मिलर हाई स्कूल में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन बंद मिली. स्कूल के प्राचार्य मदन बिंद ने बताया कि स्कूल में रंग रोगन का काम चल रहा है और इलेक्ट्रिसिटी की टूटी हुई वायरिंग को दुरुस्त कराया जा रहा है. इसके कारण अभी सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन बंद पड़ी हुई है. दो-तीन दिनों में रंग रोगन का काम पूरा होने के बाद वेंडिंग मशीन काम करने लगेगी. यहां सैनिटरी पैड के डिस्पोजल के लिए इंसीनेटर मशीन नहीं लगी है.
बांकीपुर गर्ल्स स्कूलः यहां तीन वेंडिंग मशीन लगी है. यहां कक्षा 6 से 12 तक के 2000 के करीब छात्राएं पढ़ाई करती हैं. सैनिटरी पैड की तीन वेंडिंग मशीन में एक मशीन एनजीओ की ओर से लगाई गई है, जहां निशुल्क सेनेटरी पैड उपलब्ध हो रहा है. हाल ही में इसे लगाया गया है. 5 रुपये डालकर सेनेटरी पैड निकलने वाली दो वेंडिंग मशीनें विद्यालय में लगी हुई हैं. जिसमें एक खराब है.
बांकीपुर बालिका उच्च विद्यालयः यहां स्थिति बेहतर है. 11वीं कक्षा की छात्रा सिया भारती ने बताया कि स्कूल में 5 रुपये डालकर सेनेटरी पैड निकालने वाली मशीन काम कर रही है. जरूरत पड़ने पर उससे पैड निकालती है. यहां, निशुल्क मिलने वाली वेंडिंग मशीन भी है. छात्रा शिवन्या राज ने बताया कि वह विद्यालय में जब से नामांकित हुई है उन्हें यहां सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन से पैड मिल रहा है. निशुल्क मशीन से सेनेटरी पैड मिल रहा है.
क्लास टीचर के पास रहता पैडः विद्यालय की प्राचार्या किरण कुमारी ने बताया कि उनके विद्यालय में दो वेंडिंग मशीन फंक्शनल है. हाल ही में एक एनजीओ की ओर से निशुल्क सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन का इंस्टॉलेशन हुआ है. ऐसे में बच्चियों अभी-अभी इसी का इस्तेमाल कर रही है. इसके अलावा अलग-अलग संस्थाओं की ओर से विद्यालय को पैड उपलब्ध होते हैं क्योंकि यह बालिका विद्यालय है. ऐसे में हर क्लास टीचर के पास पैड होते हैं और जरूरत पड़ने पर बच्चियां सीधे अपने क्लास टीचर से कहती हैं और उन्हें पैड उपलब्ध करा दिया जाता है.
"बच्चियों के पर्सनल हाइजीन को लेकर शिक्षित करने पर उनका विशेष जोर रहता है. बीते कुछ वर्षों में माहवारी स्वच्छता को लेकर बच्चियों में काफी अधिक जागरूकता आई है और जागरूकता के कारण बच्चियां बीमार कम पड़ रही हैं. बच्चियों की विद्यालय में उपस्थित अच्छी रह रही है."- किरण कुमारी, प्राचार्या
इन विद्यालयों में खराब मिली वेंडिंग मशीनः पटना के दीघा स्थित इंद्रप्रस्थ गंगस्थली बालिका उच्च विद्यालय और पटना कॉलेजिएट स्कूल में सेनेटरी पैड मशीन खराब थी. इन विद्यालयों के बच्चियों ने बताया कि पहले 5 रुपये में पैड मिल जाता था. लेकिन अब महावारी होने पर आकस्मिक छुट्टी लेकर घर जाना पड़ता है. अधिकांश विद्यालयों में किसी एनजीओ या अन्य सामाजिक संस्था की ओर से भी सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन का इंस्टालेशन तो हुआ है लेकिन इनके डिस्पोजल के लिए इंसीनरेटर का इंस्टालेशन नहीं है.
बिहार निचले पायदान परः राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में मासिक धर्म स्वच्छता संबंधी व्यवहार अपनाने के मामले में बिहार 59% के साथ सबसे निचले पायदान पर है. यह स्थिति तब है जब साल 1990 के दशक में बिहार भारत का पहला राज्य था जिसने मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत की थी. उस वक्त यह एक क्रांतिकारी कदम था. लेकिन वर्तमान समय में मेंस्ट्रूअल हाइजीन की दिशा में बिहार एक प्रभावी कार्यक्रम की सुविधा देने में पिछड़ा हुआ नजर आता है.
सैनटरी पैड पर बात करने से झिझकते हैं शिक्षकः मेंस्ट्रूअल हाइजीन के लिए काम करने वाली संस्था 'पोथी पत्रा' की संचालिका रिचा राजपूत ने बताया कि सरकारी विद्यालयों में स्कूली बच्चियों के बीच मेंस्ट्रूअल हाइजीन के प्रति अवेयरनेस का बहुत अभाव नजर आता है. वह लोग जब जागरूकता के लिए ग्रामीण क्षेत्र की विद्यालयों में निकलती है तो स्कूल के प्रिंसिपल इस मसले पर उनसे बात तक नहीं करते हैं. सेनेटरी पैड पर बात करने में स्कूल के शिक्षक झिझकते हैं. अधिकांश विद्यालयों में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन का इंस्टालेशन नहीं है.
जागरूकता का अभावः रिचा राजपूत ने बताया कि सरकार कक्षा 7 से 12 तक की छात्राओं को 300 रुपये सालाना सैनिटरी नैपकिन के लिए देती है. लेकिन हाई कोर्ट का आदेश है कि प्रदेश के मध्य माध्यमिक और उच्च विद्यालयों में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन का इंस्टालेशन हो और गंदे पैड के डिस्पोजल के लिए इंसीनरेटर मशीन का इंस्टालेशन हो. पटना में ही बात करें तो अधिकांश विद्यालयों में निजी संस्थाओं की ओर से मशीन का इंस्टालेशन है, लेकिन जागरूकता के अभाव के कारण उसका उपयोग नहीं हो पता है.
"बच्चियों को सेनेटरी पैड मशीन के इस्तेमाल और पैड के डिस्पोजल को समझाया जाना चाहिए. विद्यालयों में पढ़ने वाली कक्षा 7 से 12 तक की लगभग 20 लाख छात्राएं मासिक धर्म के समय विद्यालय नहीं जा पाती हैं. शहरी क्षेत्र में थोड़ी जागरूकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में स्थिति आज भी खराब है."- रिचा राजपूत, समाजसेवी
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