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सराज की लोक संस्कृति में आस्था का अनूठा मेला, मां बगलामुखी की पिंडी पर चढ़ता है घी, घर में होती है बरकत - Bharadi Fair

Bharadi Fair in Seraj Valley: देवभूमि हिमाचल के कोने-कोने से देव संस्कृति की अद्भुत झलकियां देखने को मिलती है. सराज घाटी में भी मां बगलामुखी को समर्पित भराड़ी मेला शुरू हो गया है. मेले के दौरान माता की पिंडी पर महिलाओं द्वारा घी चढ़ाया जाता है.

Bharadi Fair in Seraj Valley
सराज में शुरू हुआ चार दिवसीय भराड़ी मेला (ETV Bharat)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 23, 2024, 12:35 PM IST

सराज:देवभूमि हिमाचल में लोक संस्कृति व देव संस्कृति के कई रूप देखने को मिलते हैं. मंडी जिले की सराज घाटी में सावन के इन दिनों में अनूठा मेला मनाया जाता है. इस मेले को भराड़ी मेले के नाम से जाना जाता है. यहां मां बगलामुखी की पिंडी पर महिलाएं घी (स्थानीय बोली में तेलु) चढ़ाती हैं. मान्यता है कि इससे गोधन बीमारियों से सुरक्षित रहता है और घर में दूध-दही व घी आदि की बरकत रहती है.

मेले में शामिल होंगे 11 देवी-देवता

सावन के पहले सोमवार से शुरू हुआ ये मेला चार दिन तक चलेगा. इसमें सराज घाटी के 11 आराध्य देव शक्तियां शामिल होंगी. इनमें प्रमुख सबसे बड़े देवता देव मतलोड़ा विष्णु सभी लोगों की आस्था का केंद्र हैं. मेले में मां बगलामुखी की आराधना होती है. बड़ी बात है कि मेले में नारी शक्ति की धूम रहती है. पुरुषों के साथ ही महिलाएं भी बढ़-चढ़कर इस मेले में भाग लेती दिखाई देती हैं. पूरे सराज की महिलाएं उत्साह से इस पर्व में भाग लेती हैं.

क्यों मां की पिंडी पर चढ़ाया जाता है घी?

पूर्व सीएम व नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर की पंचायत मुरहाग के उप प्रधान तेजेंद्र ठाकुर के अनुसार मां बगलामुखी को समर्पित ये मेला सदियों से आयोजित किया जा रहा है. पहले ये मेला दो दिन तक चलता था, लेकिन स्थानीय लोगों की आस्था को देखते हुए इसे बढ़ाकर अब चार दिन का कर दिया गया है. मान्यता है कि मां बगलामुखी दूध-घी की बरकत देने वाली शक्ति हैं. मां की पिंडी पर जो भी श्रद्धालु महिला घी, जिसे स्थानीय बोली में तेलु कहा जाता है, चढ़ाती है तो उससे घर में सुख-समृद्धि रहती है. सुनाह गांव की शीला देवी के अनुसार वे हर बार श्रद्धा से यहां आती हैं और मां बगलामुखी की पिंडी पर घी चढ़ाती हैं. इससे मां प्रसन्न होती हैं.

मेले में शामिल होने वाले देवता

मां बगलामुखी के कारदार (मुख्य पुजारी) राम सिंह के अनुसार ये मेला प्राचीन काल से मनाया जा रहा है. चूंकि मां बगलामुखी का मंदिर भराड़ी नामक स्थान पर है, लिहाजा इसे भराड़ी मां भी कहते हैं. साथ ही मेले को भी भराड़ी मेला कहा जाता है. मूल रूप से ये मां बगलामुखी की आराधना का पर्व है. मेले के आरंभ में मां बगलामुखी की जाग निकाली गई. मेले में बाला टिक्का, माता शिकारी जोगणी, देव पाताल, देव दंत, देव जहल, जहल शिकावरी, जहल गुनास, देवी दुलासन, देव काला कामेश्वर के अलावा पंडोह से बगलामुखी और हलीणू से मां बगलामुखी का एक अन्य रूप शामिल हुए हैं. मेले के कारण चार दिन तक पूरी सराज घाटी में उत्सव का माहौल रहता है.

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