श्रीनगर:पहाड़ की महिलाओं के हौसले भी पहाड़ की तरह ही मजबूत होते हैं. पौड़ी जिले के मरखोड़ा गांव की ग्राम प्रधान मनीषा बहुगुणा इसकी जीती जागती मिसाल हैं. मनीषा बहुगुणा ने खुद के साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अहम रोल निभाया है.मनीषा बहुगुणा गांव में ही सेब, कीवी की खेती के साथ साथ होमस्टे के जरिये लोगों को रोजगार दे रही हैं. साथ ही मनीषा बहुगुणा लोगों को खुद के पैरों पर खड़ा कर रही हैं. मनीषा बहुगुणा की इस उपलब्धि पर जल्द ही दिल्ली में मुहर लगने वाली है. स्वतंत्रता दिवस के दिन मनीषा बहुगुणा को दिल्ली में सम्मानित किया जाएगा.
मनीषा बहुगुणा पौड़ी जिले के विकास खंड खिर्सू के ग्राम पंचायत मरखोड़ा की ग्राम प्रधान हैं. मनीषा पहले कंप्यूटर सेंटर चलाया करती थी. लॉकडाउन के दौरान उनका कंप्यूटर सेंटर बंद हो गया. जिसके बाद वे अपने गांव मरखोड़ा लौट आयी. इसके बाद उन्होंने गांव में ही बच्चों को फ्री में कंप्यूटर प्रशिक्षण देने की शुरुआत की. साथ ही उन्होंने 25 महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण भी दिया. जिससे उन्होंनें आजीविका चलानी शुरू की. वहीं, ग्राम प्रधान रहते हुए उन्होंने ग्रामीणों को जैम, जैली, जूस व रिंगाल की टोकरी सहित अन्य उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण दिलवाया. उन्होंने गांव में ही 5 नाली बंजर भूमि को आबाद कर सेब और कीवी का बागवान विकसित किया.
मनीषा अपनी ग्राम पंचायत मरखोड़ा में होमस्टे चलाकर लोगों को आजीविका कमाने के बारे में भी जागरुक कर रही हैं. उनके होमस्टे खोलने के बाद गांव वाले भी अपने घरों में होमस्टे में तब्दील कर रहे हैं. मनीषा के इन कामों को देखते हुए उन्हें उत्तराखंड गौरव रत्न व महिला सशक्तिकरण पुरस्कार मिल चुका है. साथ ही इस स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें दिल्ली में भी सम्मानित करने के लिए आमंत्रण मिला है.
कंप्यूटर और सिलाई का दिया निशुल्क प्रशिक्षण:मनीषा बहुगुणा ने बताया ग्राम प्रधान बनने के कुछ समय बाद ही लॉकडाउन हो गया. जिसके बाद सारे काम बंद पड़ चुके थे. वे श्रीनगर में कंप्यूटर सेंटर चलाती थी, उसे भी बंद करना पड़ा. जिसके बाद वह गांव आ गयी. उन्होंने ग्राम पंचायत से कुछ मदद लेकर गांव में ही कंप्यूटर सेंटर से फ्री में बच्चों और महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया. मनीषा ने बताया 100 से अधिक बच्चों और महिलाओं को निःशुल्क कंप्यूटर और सिलाई का प्रशिक्षण दिया. ग्राम प्रधान के तौर पर जो उन्हें मानदेय मिलता था वो भी सिलाई सीखने वाली महिलाओं को वे देती थी. जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर अपनी आजीविका चला सकें.