पलामू: बिहार, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ सीमा पर मौजूद पलामू लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के दौरान नक्सल हिंसा से निबटना बड़ी चुनौती रही है. 2004 के बाद से चुनाव के दौरान नक्सल हिंसा से निबटना बड़ी चुनौती रही है. 2024 के आम चुनाव की घोषणा जल्द होने वाली है. एक बार फिर से पलामू लोकसभा क्षेत्र में नक्सल हिंसा से निबटने की लिए योजना पर कार्य शुरू हो गया है.
पलामू लोकसभा क्षेत्र में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी, तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमिटी (टीएसपीसी) और झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) का दस्ता सक्रिय है. कभी नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना रहा बूढापहाड और छकरबंधा का इलाका पलामू लोकसभा क्षेत्र में ही है. छकरबंधा से सटे हुए बिहार के इलाके में माओवादी और टीएसपीसी, बूढ़ापहाड़ से सटे हुए इलाके में माओवादी, जबकि आन्तरिक हिस्से में टीएसपीसी और जेजेएमपी सक्रिय है.
चुनाव के दौरान हो चुके है कई बड़े नक्सल हमले
पलामू में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान कई बड़े नक्सल हमले हो चुके हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार पलामू के इलाके से ही लैंड माइंस का इस्तेमाल शुरू किया था. उसके बाद से नक्सली चुनाव में कई बड़े हमले कर चुके हैं. दो दशक में 14 से अधिक जवान शहीद हुए हैं. जिसमें डीएसपी, थाना प्रभारी रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं. सभी हमलों में लैंड माइंस का इस्तेमाल हुआ है. इस दौरान माओवादियों ने तीन दर्जन से भी अधिक सरकारी भवनों को विस्फोट कर नष्ट कर दिया है. 2019 के चुनाव में माओवादियों ने पलामू के पिपरा बाजार में सरे आम प्रखंड प्रमुख को गोलियों से भून दिया था जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा के कार्यालय को उड़ा दिया था.
पलामू में नहीं है इस बार सीआरपीएफ
1996 से पलामू में सीआरपीएफ की मौजूदगी रही है. किसी भी चुनाव से पहले सीआरपीएफ के नेतृत्व में पलामू के इलाके में बड़ा अभियान चलाया जाता था. पलामू में सीआरपीएफ के 134 बटालियन तैनात थी. बटालियन को सारंडा के इलाके में भेज दिया गया है. पलामू लोकसभा क्षेत्र के छत्तीसगढ़ से सटे हुए बूढ़ापहाड़ और बिहार से सटे हुए कई सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनाव के दौरान प्रत्याशी भी नहीं जाते हैं. बूढ़ापहाड़ से सटे हुए इलाके में कभी प्रत्याशी प्रचार के लिए नहीं गया है. पलामू लोकसभा क्षेत्र के नौडीहा बाजार, हरिहरगंज और पिपरा के कई ऐसे इलाके रहे हैं जहां किसी भी राजनीतिक दल को पहुंचना चुनौती रही है.
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