मंदसौर।धनतेरस पर धन के देवता कुबेर की पूजा अर्चना का खास महत्व है. हर घर में आज धन-धान्य और कुबेर देवता की पूजा होती है. लेकिन आज हम आपको कुबेर देवता के एक ऐसे मंदिर के इतिहास और उनके दर्शन के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कुबेर देवता गुप्त काल से विराजमान हैं. मंदसौर स्थित भगवान कुबेर के इस मंदिर पर दर्शन के लिए मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त से ही हजारों दर्शनार्थियों की लंबी लाइनें लग गईं.
कुबेर देवता की पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा का महत्व
मंदसौर के खिलची पुरा स्थित गुप्तकालीन धोलागढ़ महादेव मंदिर, कुबेर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के अलावा मंदसौर का धोलागढ़ महादेव मंदिर दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ कुबेर देवता की प्रतिमा विराजित है. ढाई हजार साल पुराने इस मंदिर में कुबेर देवता की 2 फीट ऊंचाई वाली पश्चिम मुखी वक्री प्रतिमा विराजित है. धार्मिक दृष्टिकोण से भगवान कुबेर के मुख का वक्री होने का अर्थ झुक कर देखना है और इस मुद्रा के उन्हें धन-धान्य की ओर झुकाव के तौर पर माना जाता है. इसलिए इस प्रतिमा के दर्शन का भी आज के दिन खास महत्व है.
भगवान शिव को चढ़ाया जल होता है कुबेर को अर्पित
कुबेर विश्व के धन-धान्य के देवता माने जाते हैं. इसलिए धनतेरस के दर्शन के लिए आज के दर्शन के खास से महत्व के रूप में लोगों की यहां सुबह से ही उमड़ पड़ी. धोलागढ़ महादेव मंदिर में भगवान शिव को जल चढ़ाने की भी धार्मिक मान्यता है. माना जाता है कि चढ़ाया हुआ जल शिवलिंग की कुंडी से बाहर नहीं निकलता. लिहाजा वह भगवान शिव और कुबेर को अर्पित हो जाता है. इसलिए भी भगवान शिव को जल चढ़ाने और कुबेर को घी का दीपक लगाने के लिए दूरदराज से कई श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.