छिंदवाड़ा: 1920 में असहयोग आंदोलन की रणनीति महाराष्ट्र के नागपुर में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बनकर तैयार तो हो गई थी, लेकिन इसका आगाज महात्मा गांधी ने 1921 में छिंदवाड़ा से किया था. जो अंग्रेजों को भगाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ था. संघर्ष के दौरान गांधी जी के कदम जहां-जहां पड़े, वो धरा आज भी धरोहर की तरह सहेजी जा रही है. इन्हीं में से एक छिंदवाड़ा का गांधी गंज है.
छिंदवाड़ा से असहयोग आंदोलन का फूंका था बिगुल
इतिहासकार और शिक्षाविद् ओपी शर्मा ने बताया कि गांधीजी ने मध्य प्रदेश की 10 यात्राएं की थी. जिनमें से तीसरी यात्रा के दौरान वे 6 जनवरी 1921 को छिंदवाड़ा आए थे और यहीं से उन्होंने असहयोग आंदोलन बिगुल फूंका था. 1914 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें देश भ्रमण करने की सलाह दी थी. जिसके बाद पहली बार दिसंबर 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में गांधीजी शामिल हुए. जिसमें उन्होंने जिद करके असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पास कराया.
गांधीगंज में किया एक ऐलान भाग गए अंग्रेज
असहयोग आंदोलन की रणनीति नागपुर अधिवेशन में बन चुकी थी, लेकिन उसके बाद 6 जनवरी 1921 को महात्मा गांधी छिंदवाड़ा आए और उन्होंने चिट्नवीस गंज में सभा की. यहीं से असहयोग आंदोलन की व्यापकता और उसके उद्देश्य की घोषणा की थी. जिसके बाद से ही इस इलाके का नाम गांधी गंज कर दिया गया.
अली बंधुओं के बुलावे पर छिंदवाड़ा आए थे बापू
इतिहासकार ओपी शर्मा ने बताया कि 2 अली भाई के कहने पर गांधीजी छिंदवाड़ा आए और सेठ गोनादास की अग्रवाल धर्मशाला में रुके थे. वहां से पैदल सभा स्थल पहुंचे थे. दरअसल अली बंधुओं ने छिंदवाड़ा के गोल गंज की जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. चर्चा के दौरान यह तय हुआ कि सभा चिटनवीस गंज के मैदान पर होगी. बताया जाता है कि उस समय हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए छिंदवाड़ा आए थे. जिनमें महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थीं. उन्होंने बताया कि अली बंधू झारखंड के रहने वाले थे. वे झारखंड से छिंदवाड़ा आए फिर यहीं बस गए थे. अली बंधुओं की गांधीजी से मुलाकात कोलकाता में हुई थी.