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अथ श्री महाकुंभ कथा; प्रयागराज कुंभ का क्या है महत्व, तीर्थों में इसे क्यों माना जाता सर्वश्रेष्ठ? - MAHA KUMBH MELA 2025

तीर्थराज प्रयागराज में कुंभ का आयोजन किस दशा में होता है, इसके बारे में बता रहे हैं ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज.

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प्रयागराज कुंभ का क्या है महत्व, तीर्थों में इसे क्यों माना जाता सर्वश्रेष्ठ? (Photo Credit; ETV Bharat Archive)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 8, 2025, 1:14 PM IST

प्रयागराज: मकर संक्रांति यानी 13 जनवरी के दिन से प्रयागराज में महाकुंभ 2025 शुरू हो रहा है. 26 फरवरी तक संगम की रेती पर दिव्य, भव्य और अलौकिक संसार जीवंत रहेगा. 15 किलोमीटर के घेरे में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला तकरीबन 45 दिन चलेगा. मेले के शुभारंभ से पहले ईटीवी भारत आपको कुंभ और महाकुंभ की पौराणिक कथाएं सुना रहा है.

ईटीवी भारत की इस खास पेशकश की पहली कड़ी में हमने आपको ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज की जुबानी समुद्र मंथन की कहानी सुनाई. अब दूसरी कड़ी में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती प्रयागराज कुंभ के महत्व को बता रहे हैं.

अथ श्री महाकुंभ कथा में प्रयागराज के कुंभ का महत्व बताते शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज. (Video Credit; ETV Bharat)

अथ श्री महाकुंभ कथा पार्ट-2 में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज कहते हैं कि प्रयाग जैसे नाम से पता चलता है कि राजा है, तीर्थों का राजा है. एक सामान्य व्यक्ति के यहां उत्सव होगा और एक राजा के यहां उत्सव हो तो उसमें अंतर होता ही है. इसलिए कुंभ जब प्रयागराज में होता है तो पूरे राजसी ठाट-बाट के साथ होता है.

इसलिए यहां पर सबसे ज्यादा भीड़ भी देखने को मिलती है. इसके अलावा गंगा-यमुना के कछार में सबसे ज्यादा जमीन भी है, लगभग 15 किलोमीटर का घेरा सिर्फ कुंभ पर्व के लिए हमेशा खाली रहता है. इतनी जमीन दूसरी जगह पर उपलब्ध नहीं है. इसलिए भी प्रयागराज का कुंभ सबसे बड़ा होता है. पार्ट-2 की पूरी कहानी सुनने के लिए वीडियो पर क्लिक कीजिए.

पार्ट-3 में कल सुनिए- कल्पवास क्या है, इसका क्या महत्व है, इसे क्यों किया जाता

ईटीवी भारत की खास प्रस्तुति पार्ट-1; अथ श्री महाकुंभ कथा, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की जुबानी; सुनिए- आखिर क्यों पड़ी समुद्र मंथन की जरूरत?

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