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महाकुंभ 2025; इंग्लिश लिटरेचर से ग्रेजुएट दिव्यानी कैसे इंटरनेशनल खिलाड़ी से बनीं शैलजा माता, क्या है कहानी? - MAHA KUMBH MELA 2025

दिव्यानी से शैलजा माता बनने की यह कहानी बड़ी रोचक है. माता-पिता के साथ 12 घंटे का ध्यान लगाकर दिव्यानी साधना में लीन हो गई.

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खिलाड़ी से संन्यासिनी बनने वाली शैलजा माता. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 3, 2025, 10:36 AM IST

प्रयागराज: महाकुंभ में संतों की मौजूदगी इसकी भव्यता को और भी बढ़ाने का काम कर रही है. गंगा पार करके अलग-अलग जगह पर लगे संतों के शिविर में विराजमान संतों का आशीर्वाद लेने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं. इनमें बहुत से ऐसे संत है, जिन्होंने अपने भविष्य को सुधारने के लिए पिछले जीवन से संन्यास लेकर वर्तमान में सन्यासी जीवन जीने का फैसला किया और सनातन धर्म की ध्वजा को हर तरफ लहराने का काम कर रहे हैं.

इनमें कई संत ऐसे हैं जो बेहद पढ़े लिखे और ऐसे बैकग्राउंड से हैं जिनकी छाप देश ही नहीं वरन विदेश तक में है. ऐसी ही हैं सहज योगिनी शैलजा देवी, जो जूना अखाड़े से जुड़ी हैं. संन्यास की दीक्षा लेने से पहले बेहद ही पढ़े लिखे फैमिली बैकग्राउंड के साथ ही नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर एक सशक्त खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी शैलजा माता ने संन्यास लेकर अपने बचे हुए जीवन को आगे बढ़ाना उचित समझा.

खिलाड़ी से संन्यासिनी बनने वाली शैलजा माता से संवाददाता की खास बातचीत. (Video Credit; ETV Bharat)

दिव्यानी से शैलजा माता बनने की यह कहानी बड़ी रोचक है. जूना अखाड़ा निर्माण व्यवस्था में महामंत्री होने के साथ ही बास्केटबॉल महिला टीम की नेशनल कप्तान रह चुकीं राजकोट विश्वविद्यालय की छात्रा ने 1978 में अपने माता-पिता के साथ राजकोट के गुरुदेव दत्तात्रेय में सहज सिद्ध योग पहुंचकर अपनी साधना की शुरुआत की थी. अपने माता-पिता के साथ 12 घंटे का ध्यान लगाकर दिव्यानी ने अपने जीवन को साधना में लीन किया.

इसके बाद उन्हें अदभुत अनुभूति हुई. गुरुदेव के सानिध्य में शैलजा देवी ने सहज सिद्धि योग में कुंडलिनी शक्ति के द्वारा हठयोग, राजयोग और अष्टांग योग व आसन आदि में योग क्रियो का अभ्यास करते हुए अपने आप को मजबूत किया. इसके बाद अमेरिका, लंदन, रूस, फ्रांस समेत कई देशों में अपने आश्रम के जरिए सनातन और योग का प्रचार प्रसार शुरू किया और आश्रमों को स्थापित करते हुए इसकी बागडोर अपने हाथ में ली.

शैलजा माता ने बताया कि उनके पिता कस्टम विभाग में बड़े पद पर तैनात थे. दिव्यानी की पैदाइश ईस्ट अफ्रीका में हुई थी. जब वह अपने पिता के साथ भारत लौट कर आई थीं, उस समय वह छठवीं क्लास में थीं. राजकोट में छठवीं क्लास से लेकर राजकोट विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट करने के दौरान दिव्यानी बास्केटबॉल और बैडमिंटन की बेहतरीन प्लेयर थीं.

1975 में दिव्यानी बास्केटबॉल की नेशनल महिला टीम की कप्तान बनी थीं और नेशनल टीम में खेलते हुए उन्होंने अच्छे परफॉर्मेंस से सबको चौंका भी दिया था. उनका कहना है, इन सब के बीच 40 वर्षों से संन्यास का जीवन जीने के दौरान उन्होंने एक अद्भुत अनुभव किया है और समझ में आ गया कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दूसरों के लिए जीना है, जो वह संन्यास और योग के जरिए कर रही हैं.

उन्होंने बताया कि उनका पहले का नाम दिव्यानी था लेकिन लोग मुझे देवी बुलाते थे. मैंने इंग्लिश लिटरेचर से बीए किया हुआ है. डिप्लोमा इन सेक्रेटरी प्रैक्टिस में कॉलेज में फर्स्ट रही हूं, इसके अलावा नेशनल बास्केटबॉल टीम की कैप्टन रही हूं. इसके अतिरिक्त एथलीट में भी मैंने इंटरेस्ट लेकर खेला है. अपने अभ्यास काल में मेरे अंदर एक दिव्य शक्ति का अनुभव मुझे हुआ था. जिस पर मैंने योग के जरिए अपने जीवन में बदलाव को महसूस किया.

उन्होंने बताया कि 80 के दशक में मेरा करियर बहुत अच्छा चल रहा था. नेशनल लेवल पर मैं बास्केटबॉल महिला टीम की कप्तान थीं. स्पोर्ट्स से जो खुशी मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है. एक बास्केटबॉल जब बास्केट में अंदर जाती है तो चरम सुख का आनंद होता है. जीते या हारे, इसका मतलब नहीं था, लेकिन वह एनर्जी को आपको देता था. वही मेरे अंदर स्पोर्ट्समैन स्पिरिट को बढ़ाने का काम कर रहा था.

मेरा शरीर बहुत मजबूती से तैयार हो रहा था, लेकिन इस दौरान ही मुझे जो 12 घंटे का ध्यान लगा. उसने मेरी जिंदगी को बदल दिया. उस ध्यान के बाद मैंने अपना कंसंट्रेशन बाकी चीजों से हटकर सिर्फ ईश्वर और ज्ञान की तरफ लगाना शुरू कर दिया. लगभग 3 साल बाद मैं अपने अंदर की कुंडलीनी जागृत करते हुए अपने आप को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित करने की सोच लीं. घर वालों ने विरोध भी नहीं किया लेकिन बाद में सभी ने मेरा साथ दिया.

मेरा मानना है कि अगर कोई भी व्यक्ति नियमित रूप से अच्छे तरीके से ध्यान करता है और मंत्र जाप करता है, इसके साथ ही मानव धर्म का पालन करता है और सनातन धर्म में अटूट विश्वास रखता है, तो साधकों की तरह उसको निश्चित रूप से सहज मार्ग के माध्यम से अपने अंदर एक बड़ा बदलाव दिखाई देगा.

शैलजा माता ने बताया कि मैंने अपने परिवार को समझाने के लिए अपने गुरु से कहा मुझे दृश्यात्मक संकेत मिलने के बाद मेरे परिवार को भी यह संकेत मिले. मेरी मां 94 वर्ष की हैं, लेकिन बिल्कुल स्वस्थ हैं. अब प्रभु स्मरण में लगी हैं. उस समय मेरे परिवार की इच्छा थी कि मैं आध्यात्म की तरफ जाऊं, मैं 1980 में जूना अखाड़े से जुड़े गई. फिर मुझे सेवा कार्य का आदेश दिया गया. 2013 में मैंने पहला कुंभ प्रयागराज में किया. उसके बाद मैंने एक मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी अखाड़े की तरफ से ली.

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