प्रयागराज: महाकुंभ में संतों की मौजूदगी इसकी भव्यता को और भी बढ़ाने का काम कर रही है. गंगा पार करके अलग-अलग जगह पर लगे संतों के शिविर में विराजमान संतों का आशीर्वाद लेने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे हैं. इनमें बहुत से ऐसे संत है, जिन्होंने अपने भविष्य को सुधारने के लिए पिछले जीवन से संन्यास लेकर वर्तमान में सन्यासी जीवन जीने का फैसला किया और सनातन धर्म की ध्वजा को हर तरफ लहराने का काम कर रहे हैं.
इनमें कई संत ऐसे हैं जो बेहद पढ़े लिखे और ऐसे बैकग्राउंड से हैं जिनकी छाप देश ही नहीं वरन विदेश तक में है. ऐसी ही हैं सहज योगिनी शैलजा देवी, जो जूना अखाड़े से जुड़ी हैं. संन्यास की दीक्षा लेने से पहले बेहद ही पढ़े लिखे फैमिली बैकग्राउंड के साथ ही नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर एक सशक्त खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी शैलजा माता ने संन्यास लेकर अपने बचे हुए जीवन को आगे बढ़ाना उचित समझा.
दिव्यानी से शैलजा माता बनने की यह कहानी बड़ी रोचक है. जूना अखाड़ा निर्माण व्यवस्था में महामंत्री होने के साथ ही बास्केटबॉल महिला टीम की नेशनल कप्तान रह चुकीं राजकोट विश्वविद्यालय की छात्रा ने 1978 में अपने माता-पिता के साथ राजकोट के गुरुदेव दत्तात्रेय में सहज सिद्ध योग पहुंचकर अपनी साधना की शुरुआत की थी. अपने माता-पिता के साथ 12 घंटे का ध्यान लगाकर दिव्यानी ने अपने जीवन को साधना में लीन किया.
इसके बाद उन्हें अदभुत अनुभूति हुई. गुरुदेव के सानिध्य में शैलजा देवी ने सहज सिद्धि योग में कुंडलिनी शक्ति के द्वारा हठयोग, राजयोग और अष्टांग योग व आसन आदि में योग क्रियो का अभ्यास करते हुए अपने आप को मजबूत किया. इसके बाद अमेरिका, लंदन, रूस, फ्रांस समेत कई देशों में अपने आश्रम के जरिए सनातन और योग का प्रचार प्रसार शुरू किया और आश्रमों को स्थापित करते हुए इसकी बागडोर अपने हाथ में ली.
शैलजा माता ने बताया कि उनके पिता कस्टम विभाग में बड़े पद पर तैनात थे. दिव्यानी की पैदाइश ईस्ट अफ्रीका में हुई थी. जब वह अपने पिता के साथ भारत लौट कर आई थीं, उस समय वह छठवीं क्लास में थीं. राजकोट में छठवीं क्लास से लेकर राजकोट विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट करने के दौरान दिव्यानी बास्केटबॉल और बैडमिंटन की बेहतरीन प्लेयर थीं.
1975 में दिव्यानी बास्केटबॉल की नेशनल महिला टीम की कप्तान बनी थीं और नेशनल टीम में खेलते हुए उन्होंने अच्छे परफॉर्मेंस से सबको चौंका भी दिया था. उनका कहना है, इन सब के बीच 40 वर्षों से संन्यास का जीवन जीने के दौरान उन्होंने एक अद्भुत अनुभव किया है और समझ में आ गया कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दूसरों के लिए जीना है, जो वह संन्यास और योग के जरिए कर रही हैं.