गया: गया शहर के भस्मकुट पर्वतपर स्थित मां मंगला गौरी पालन पीठ के रूप में विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने वाले किसी भी भक्त को मां मंगला खाली हाथ नहीं भेजती है. इस मंदिर में ऐसे तो सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है. नवरात्र में मां मंगला गौरी शक्तिपीठ में दर्शन व पूजन करने का विशेष महत्व है.
भस्मकूट पर्वत पर स्थित है मां मंगला गौरी: गया के माड़नपुर मोहल्ला के भस्मकुट पर्वत पर माता सती का वक्ष स्थल (स्तन) गिरा था, जो मंगला गौरी मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है. इस मंदिर का उल्लेख पद्म पुराण, वायु पुराण और अग्नि पुराण के साथ देवी भागवत पुराण और मार्कंडेय पुराण समेत अन्य ग्रंथों में किया गया है. देवी सती का यह मंदिर 52 शक्ति पीठों में एक माना जाता है, जहां सती के शरीर का एक अंग (स्तन) गिरा था. सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. जिस कारण मां मंगला गौरी परोपकार की देवी के रूप में भी प्रसिद्ध है.
मां के वक्ष स्थल की होती है पूजा: वहीं स्थानीय पंडित नरेंद्र कुमार मिश्रा ने बताया कि भगवान शंकर जब मां पार्वती के जलते शरीर को तांडव करते हुए आकाश मार्ग से निकले थे. उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया. जिसके बाद माता के शरीर के कई टुकड़े हो गए. इसी क्रम में माता का वक्ष गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा, तब से यह मंदिर मां मंगला गौरी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. इसे पालनपीठ भी कहा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में अखंड ज्योति वर्षों से जलते चली आ रही है. इसी ज्योति के समक्ष भक्त पूजा अर्चना करते हैं.