लखनऊ :उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को पिछले 6 महीने में कई बड़े फैसले वापस लेने पड़े हैं. इसको अधिकारियों की अदूरदर्शिता कहें या फिर विपक्ष और आंदोलन का दबाव सरकार अपने महत्वपूर्ण फैसलों पर टिक नहीं पाई. इनमें से दो फैसले सरकार ने आंदोलन के दबाव में वापस लिए. तीसरा सदन में विपक्ष और पक्ष के विधायकों के विरोध की वजह से सरकार को वापस लेना पड़ा. बहरहाल सत्ता पक्ष इसे चाहे जिस रूप में प्रस्तुत करे, लेकिन एक तरह से यह सरकार की फजीहत ही है.
बता दें, सरकार ने करीब तीन महीने पहले शिक्षकों की ऑनलाइन अटेंडेंस और अब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा को दो दिन में आयोजित करने के फैसले को वापस लिया है. इसके पहले मानसून सत्र में लिए गए नजूल बिल को भी सरकार ने पक्ष और विपक्ष के विधायकों के दबाव के चलते ठंडे बस्ते में डाल दिया था.
शिक्षकों की ऑनलाइन हाजिरी :उत्तर प्रदेश के लाखों बेसिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के लिए सरकार ने करीब 3 महीने पहले स्कूल परिसर से ही ऑनलाइन हाजिरी का सख्त नियम बनाया था. पूरे प्रदेश में इस नियम के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया था. शुरुआती दिनों में सरकार ने इस नियम को सही बताने का प्रयास किया. विशेषज्ञ भी ये मानकर चल रहे थे कि शिक्षकों को स्कूल में समय से बुलाने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है. इसके बावजूद शिक्षकों का बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया. नतीजतन सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा. अधिकारियों ने अपनी खिसियाहट कम करने के लिए यह जरूर तर्क दिया कि अभी फैसला डाला गया है. इसे बाद में लागू किया जाएगा.
ठंडे बस्ते में गया नजूल बिल :योगी सरकार ने मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में नजूल बिल पेश किया था. जिसमें नजूल संपत्तियों के फ्री होल्ड करने पर पाबंदी लगाई जानी थी. सत्र के दौरान विधानसभा से यह बिल पारित भी हो गया था. सरकार की ओर से पूर्व मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इसका विरोध कर दिया. इसके बाद कई अन्य विधायक भी विरोध में आए गए. इसके बाद इस बिल को विधान परिषद में रखा गया, तब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य भूपेंद्र सिंह चौधरी ने बिल को प्रवर समिति को भेजने की सिफारिश कर दी. इस सिफारिश को स्वीकार करके बिल प्रबल समिति के हवाले कर दिया गया. यह भी सरकार के बेहद महत्वपूर्ण फैसले पर हार थी.