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लखनऊ का परीखाना; कभी सजती थी कलाकारों की महफिल, सिखाई जाती थी नवाबी तहजीब, अब ऐसा है हाल - WAJID ALI SHAH PARI KHANA

नवाब वाजिद अली शाह ने कराया था परीखाना का निर्माण, यहां से कथक और ठुमरी को मिली नई पहचान.

सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र  रहा है परी खाना.
सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है परी खाना. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 25, 2025, 1:13 PM IST

लखनऊ :नवाबों का शहर लखनऊ संस्कृति, शानदार वास्तुकला और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विख्यात है. नवाब वाजिद अली शाह की विरासत परीखाना भी इनमें से एक है. नवाब के दौर में यह सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र थी. यहां से कला और कलाकारों को अलग मुकाम मिला. अब इस भवन में भातखंडे संगीत संस्थान विश्वविद्यालय की गीत-संगीत और शास्त्रीय नृत्य की कक्षाएं चलती हैं. आइए जानते हैं परीखाना के इतिहास और महत्व के बारे में...

अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (1822-1887) ने परीखाना का निर्माण करवाया. यहां संगीत, नृत्य, नाटक, ठुमरी, दादरा, कथक, मुजरा और उर्दू शायरी जैसी कलाओं को बढ़ावा दिया जाता था. मौजूदा समय में यह भवन बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा या रूमी दरवाजा जितना प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन लखनऊ के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में इसकी भूमिका काफी अहम रही है.

लखनऊ का परी खाना कई यादों को समेटे है. (Video Credit; ETV Bharat)

लखनवी संस्कृति की जन्मभूमि है परीखाना :नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि परीखाना ने अवध को कला और संस्कृति के केंद्र के रूप में स्थापित किया. नवाबों के दौर में लखनऊ की परंपरा और संस्कृति का केंद्र परीखाना रहा है. यहां लखनऊ की संस्कृति सिखाई जाती थी. आदाब के तरीके बताए जाते थे. लखनऊ की नफासत और नजाकत, नवाबी अंदाज, पानदान, खासदान, उगलदान के दस्तूर सिखाए जाते थे. इसके साथ ही उठने-बैठने की और शाही दरबार के आदाब भी यहां सिखाए जाते थे.

कथक और ठुमरी की विरासत :नवाब वाजिद अली शाह के दौर में लखनऊ कथक और अर्ध-शास्त्रीय संगीत का प्रमुख केंद्र बन गया था. कथक का लखनऊ घराना अपनी नफासत और भाव-भंगिमा के लिए मशहूर हुआ. इसी दौर में ठुमरी को भी एक नई पहचान मिली. इसे तवायफों की महफिलों में नया अंदाज मिला.

सांस्कृतिक संस्थान भी था परीखाना :नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि परीखाना केवल मनोरंजन का स्थान नहीं था, बल्कि यह एक प्रतिष्ठित अकादमी भी थी. यहां जाफर खान, बासित खान, प्यार खान और कालका-बिंदादीन महाराज जैसे महान कलाकारों ने अपनी कला को निखारा. तवायफों को अक्सर मनोरंजन के साधन के रूप में देखा जाता है, लेकिन वे वास्तव में उच्च कोटि की प्रशिक्षित कलाकार थीं. उन्होंने अवध की सांस्कृतिक विरासत को संजोया. परीखाना का अर्थ परियों का घर था.

नहर के ऊपर बना पुल आकर्षण का केंद्र. (Photo Credit; ETV Bharat)

परीखाना बेहतरीन खूबसूरत इमारत :नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि परी खाना बेहतरीन खूबसूरत इमारत है. यह अवधी, मुगल और फारसी वास्तुकला का मिश्रण था. तीन मंजिला इस भवन में ऊंची छतें, सुंदर नक्काशीदार खंभे और भव्य झूमरों से सजा केंद्रीय हॉल है. यहां नवाब और उनके दरबारी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देखा करते थे. परीखाना के अंदर नहर के ऊपर बना पुल सौंदर्यशास्त्र का प्रतीक था. इस नहर से कैसरबाग के बगीचों की सिंचाई होती थी.

अवध पर कब्जे के बाद शुरू हो गया परीखाना का पतन :1856 में अंग्रेजों द्वारा अवध पर कब्जे के बाद परीखाना का पतन शुरू हो गया. नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता निर्वासित कर दिया गया. इससे कलात्मक संरक्षण समाप्त हो गया. 1857 के विद्रोह के दौरान परी खाना और कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें बर्बाद हो गईं.

ऐतिहासिक इमारत में कई कलाकारों को मिली पहचान. (Photo Credit; ETV Bharat)

परीखाना की विरासत आज भी जिंदा है :नवाब मसूद अब्दुल्ला का कहना है कि परी खाना अब अपने मूल स्वरूप में नहीं है. इसकी सांस्कृतिक विरासत आज भी लखनऊ में जीवित है. कथक, ठुमरी और उर्दू शायरी की परंपरा भातखंडे संगीत संस्थान विश्वविद्यालय के माध्यम से आगे बढ़ रही है. यहां पर युवतियां गीत-गीत संगीत और नृत्य का प्रशिक्षण लेने के लिए आती हैं.

'उमराव जान' और 'शतरंज के खिलाड़ी' जैसी फिल्मों ने लखनऊ की नवाबी संस्कृति और परीखाना की भव्यता को जीवंत किया. लखनऊ की नवाबी विरासत से रूबरू होने के लिए लोग कैसरबाग, रूमी दरवाजा और ला मार्टिनियर कॉलेज का भी भ्रमण करते हैं.

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