लखनऊ: नवाबों के शहर के रूप में विश्व प्रसिद्ध लखनऊ अपनी ऐतिहासिक इमारतों और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. इनमें से कई इमारतें इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं लेकिन, कुछ ऐसी भी हैं, जिनका महत्व समय की धूल में दब गया. ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत है "कालाकांकर भवन".
लखनऊ का सैकड़ों साल पुराना विरासती व रियासती भवन कालाकांकर आजकल अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. ये भवन कभी कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय हुआ करता था. स्वतंत्रता आंदोलन के समय इसमें बैठकर नेता रणनीति बनाया करते थे. आजादी के आंदोलन का इसे केंद्र बिंदु कहा जाता था. लेकिन, आज इसके बारे में कोई नहीं जानता. यहां तक की कांग्रेसी भी लगभग इसे भूल चुके हैं.
लखनऊ के कालाकांकर भवन के इतिहास पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat) हालात ये हैं कि इस भवन की दीवारें जर्जर हो चुकी हैं, प्लास्टर गिर रहा है. जिसको सहेजने का काम किसी भी सरकार में होता नहीं दिखा. ये एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत है, जिसको आजतक धरोहर के रूप में शामिल नहीं किया गया. आईए जानते हैं इस सुनहरा इतिहास.
लखनऊ के कालाकांकर भवन परिसर की इमारतें. (Photo Credit; ETV Bharat) स्वतंत्रता संग्राम का मूक साक्षी: लखनऊ के दिल में स्थित कालाकांकर भवन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. इस भवन का निर्माण 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था. आजादी से पहले यह अवध क्षेत्र में कांग्रेस कमेटी का कार्यालय हुआ करता था. महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी यहां महत्वपूर्ण बैठकें और अधिवेशन किया करते थे.
लखनऊ का कालाकांकर भवन. (Photo Credit; ETV Bharat) इतिहास के पन्नों में यह भवन इसलिए भी खास है क्योंकि, यही वह स्थान है जहां कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित मोतीलाल नेहरू ने 6 फेरवरी,1931 को अंतिम सांस ली. इसका उल्लेख पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण की किताब 'मोहल्लों की शान' में भी किया गया है. इस भवन ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई ऐतिहासिक निर्णयों और आंदोलनों की नींव रखी.
लखनऊ के कालाकांकर भवन का अंदरूनी हिस्सा. (Photo Credit; ETV Bharat) राज्य सरकार की खरीद और नियोजन विभाग का मुख्यालय: कालाकांकर भवन 1954 में उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आया. सरकारी अभिलेखों के अनुसार 3.31 एकड़ का यह एस्टेट कालाकांकर राजघराने से 1,85,000 रुपए में कृषि विभाग के लिए खरीदा गया पर जुलाई 1954 में इसे नियोजन विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया. इसके बाद इस परिसर में प्लानिंग रिसर्च और एक्शन इंस्टिट्यूट की नींव पड़ी.
लखनऊ का कालाकांकर भवन हुआ जर्जर, प्लास्टर गिर रहा. (Photo Credit; ETV Bharat) 1971 तक, यह भवन उत्तर प्रदेश प्लानिंग रिसर्च एंड एक्शन इंस्टीट्यूट का मुख्यालय रहा. इसके बाद नियोजन विभाग का एक डिवीजन यहां कार्यरत रहा. वर्तमान में नियोजन विभाग के साथ यहां उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (यूपी रेरा) का मुख्यालय भी है.
लखनऊ के कालाकांकर भवन परिसर की इमारतें भी हुईं जर्जर. (Photo Credit; ETV Bharat) कालाकांकर भवन की संरचना:कालाकांकर एस्टेट 3.31 एकड़ में फैला हुआ है. इसके मुख्य भवन का क्षेत्रफल लगभग 1240 वर्ग मीटर है. भवन दो तल का बना हुआ है. भू तल पर 16 बड़े और छोटे कमरे तथा प्रथम तल पर 15 बड़े व छोटे कमरे बने हुए हैं. इस प्रकार कुल 31 कमरे बने हैं. वर्तमान में भवन जर्जर एवं क्षतिग्रस्त अवस्था में है. परिसर में नियोजन विभाग द्वारा अन्य इमारतों का भी निर्माण किया गया है. हालांकि वर्तमान में मुख्य भवन (कालाकांकर भवन) बंद है लेकिन, अभी भी नियोजन विभाग के दस्तावेज इसमें मौजूद हैं.
लखनऊ का कालाकांकर भवन हुआ जर्जर, प्लास्टर गिर रहा. (Photo Credit; ETV Bharat) भवन की उपेक्षा और जर्जर अवस्था: 1980 में नियोजन विभाग के अधिकारी रहे कृष्ण सिंह बताते हैं कि उनके कार्यकाल में इस भवन का वातावरण जीवंत था. लेकिन, 2015 में परिसर में एक नई इमारत बनने के बाद कार्यालय वहां शिफ्ट कर दिया गया. इसके बाद कालाकांकर भवन की स्थिति लगातार बिगड़ती गई. 2013-14 में भवन की मरम्मत के लिए राज्य पुरातत्व विभाग से अनुशंसा की गई. एक टीम ने सर्वे कर रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने की बात कही गई. लेकिन, मरम्मत का काम अधूरा रह गया.
लखनऊ का कालाकांकर भवन. (Photo Credit; ETV Bharat) राज्य पुरातत्व विभाग की डायरेक्टर रेणु द्विवेदी बताती हैं कि 2022-23 में उनके विभाग ने फिर से सर्वे किया, जिसकी रिपोर्ट शासन को भेजी गई. ईटीवी भारत को मिले दस्तावेजों के अनुसार 21 जून 2023 को प्रमुख सचिव, संस्कृति विभाग की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में इस भवन को संस्कृति संग्रहालय के तौर पर स्थापित करने पर विचार करने के निर्देश दिए गए थे.
लखनऊ का कालाकांकर भवन. (Photo Credit; ETV Bharat) कालाकांकर राजघराने की ऐतिहासिक भूमिका:कालाकंकर रियासत उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक क्षेत्र है. इसकी स्थापना 1193 में राजा होम मल्ल ने की थी. राजा हनुमंत सिंह ने इसे अपनी राजधानी बनाया. राजघराने का स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा. राजा रामगोपाल सिंह कांग्रेस के शुरुआती नेताओं में से एक थे और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतिहासकार रवि भट्ट के अनुसार, कालाकंकर भवन कांग्रेस पार्टी के विचार मंथन और आंदोलनों का प्रमुख केंद्र रहा.
लखनऊ के कालाकांकर भवन की भव्य इमारत. (Photo Credit; ETV Bharat) स्टालिन की बेटी और कालाकंकर राजघराने का अनोखा रिश्ता:कालाकंकर राजघराने का एक अनोखा और रोचक अध्याय सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी श्वेतलाना से जुड़ा है. राजघराने के कुंवर बृजेश सिंह और श्वेतलाना की मुलाकात मॉस्को के एक अस्पताल में हुई. दोनों ने प्रेम विवाह का निर्णय लिया, लेकिन इसे स्वीकृति नहीं मिली. 1966 में बृजेश सिंह के निधन के बाद श्वेतलाना उनकी अस्थियां लेकर भारत आईं और कालाकंकर में कुछ समय रहीं. उन्होंने 1969 में बृजेश सिंह की याद में प्रतापगढ़ में एक अस्पताल बनवाया, जो अब एक निजी स्कूल के रूप में संचालित हो रहा है.
लखनऊ के कालाकांकर भवन की प्राचीन फोटो, इनसेट में राजा रामपाल सिंह. (Photo Credit; By Historian) भविष्य की उम्मीदें और सुझाव: इतिहासकार और विशेषज्ञ मानते हैं कि कालाकंकर भवन को राज्य धरोहर की सूची में शामिल किया जाना चाहिए. इसकी मरम्मत और संरक्षण कर इसे एक मेमोरियल के रूप में विकसित करना चाहिए. यह भवन न केवल स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं की स्मृतियों को संजोता है, बल्कि लखनऊ के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को भी बढ़ाता है. अब देखना यह है कि सरकार और संबंधित विभाग इस अनमोल धरोहर को बचाने के लिए क्या कदम उठाते हैं.
ये भी पढ़ेंःआखिर 144 साल बाद ही क्यों आता है महाकुंभ; जानिए कुंभ, अर्धकुंभ से कितना अलग