लखनऊ : यूपी में बढ़ती जनसंख्या, कृषि गतिविधियों और औद्योगिकीकरण से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. समय रहते अगर इन विषयों पर गंभीरता से काम नहीं किया गया, तो समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण असंतुलन से यूपी के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार पहुंच गया है. यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए काफी घातक है.पर्यावरण में घुल रहे खतरनाक रसायनों से मानव के साथ जीव जंतुओं के जीवन को भी खतरा है. माना जा रहा है किभविष्य मेंलोग खुली हवा में ठीक से सांस नहीं ले पाएंगे. पीने के लिए शुद्ध पानी की किल्लत हो जाएगी.
जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता व शिक्षा अभियान जरूरी:भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) के निदेशक डॉ. भास्कर नारायण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अधिक काम करने की आवश्यकता है. इसमें सबसे अहम रोल आम नागरिकों का है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके बावजूद कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है. इस विषय पर आम लोगों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है.
जलवायु परिवर्तन पर पाठ्यक्रम :डॉ. भास्कर नारायण ने कहा कि स्कूलों-कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर विशेष पाठ्यक्रम पहले से ही हैं. इन पर अधिक जोर देने की जरूरत है. इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. अभिभावकों को बच्चों को समझाने की आवश्यकता है. इसके अलावा अगर अभिभावक अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ और अच्छा रखेंगे. पेड़ पौधे लगाएंगे, तो बच्चे भी वही चीज सीखेंगे.
स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता सुधार :डॉ. भास्कर नारायण के अनुसार वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए आईआईटीआर हर वर्ष अपनी रिपोर्ट तैयार करती है. रिपोर्ट में सालभर के प्रदूषण का आंकड़ा और इसके कारक, निवारण का ब्यौरा रहता है. उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में वायु प्रदूषण की समस्या विकराल है. प्रदेश सरकार इसे लेकर गंभीर है, लेकिन क्रियान्वयन में शिथिलता हावी है.
स्मार्ट सिटी मिशन :डॉ. भास्कर नारायण ने मुताबिक स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्रदेश के प्रमुख शहरों में इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है. इसमें इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम, ग्रीन बिल्डिंग्स और सौर ऊर्जा जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है. फिलहाल प्रदेश के सभी जिलों के शहरों में ग्रीन स्पेस बढ़ाने के लिए पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. सड़क के बीच डिवाइडर में भी पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. बहुत सारे ऐसे पेड़ पौधे हैं जो वातावरण में मौजूद प्रदूषण को सोख लेते हैं. ऐसे प्लांट भी लगाए जा रहे हैं. सरकार की पहल अच्छी है. बस इनकी निगरानी करने की जरूरत है. यह नगर निगम विभाग व स्मार्ट सिटी के उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी है.
भूजल दोहन बचाव के लिए सरकार को भेजे गए सुझाव:
- प्रदेश को 'भूजल सुरक्षित राज्य' बनाने के लिए उथले एक्यूफर्स से हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन पर चरणबद्ध और प्रभावी ढंग से रोक लगाई जाए. इसके लिए अतिशीघ्र एक्यूफर आधारित पृथक निष्कर्षण नीति (Extraction Policy) लाई जाए और इस नीति के माध्यम से वर्तमान व भावी मांग की पूर्ति के लिए भूजल दोहन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गहरे एक्यूफर्स की क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन करके भूजल आपूर्ति की सतत व समुचित संभावना आंकलित की जाए.
- भूजल रिचार्ज, रीयूज, रीसाइकिल व जल कुशल विधाओं की पृथक (Isolated ) रूप से लागू योजना कार्यों की वर्तमान व्यवस्था के बजाय इन कार्यों के एकीकृत ढंग से क्रियानवयन के लिए "बहाली व संकटग्रस्त एक्यूफर्स की पुनर्स्थापना" (Restoration of Depleted Aquifers) की पद्धति प्राथमिकता पर अपनाए जाने के लिए प्रदेश स्तर पर नीतिगत निर्णय लेकर लागू किया जाए. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1990 में विद्यमान भूजल स्थिति व भूजल स्तर को बेंचमार्क माना जाए.
- छोटी व बड़ी नदियों के दोनों तटों पर 1 किलोमीटर के दायरे में भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. नदियों के फ्लड प्लेन की मैपिंग करके सरंक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाए.
- केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन में भूजल दोहन कम प्रतिवेदित (Under Reported) है. वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिए कृषि व औद्यानिक क्षेत्र में फसल जल उपयोग के आधार पर दोहन की गणना तथा पेयजल, औद्योगिक, व्यवसायिक, अवस्थापना, खनन, मत्स्य क्षेत्रों में दोहन का वास्तविक क्षेत्रीय आकलन किया जाए.
जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन उपाय:भूजल विशेषज्ञ आरएस ने बताया कि यूपी में जल संकट की समस्या बढ़ रही है. खासकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संरक्षण, जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की गई है. हर चीज को लेकर के कानून बने हैं, लेकिन पालन में कोताही बरती जाती है. भविष्य में जल संकट और भी बिकराल होगा. इस बात की गंभीरता को हर किसी को समझने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने नियम भी बनाया है कि कोई भी व्यक्ति बोरवेल कराने से पहले अनुमति जरूर ले.
नदियों और जलाशयों की सफाई : भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि प्रदेश की प्रमुख नदियां गंगा, यमुना और गोमती आदि में प्रदूषण की समस्या गंभीर है. इन नदियों की सफाई और जल पुनर्नवीनीकरण के लिए सरकार की ओर से विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके अलावा जलाशयों के पुनर्निर्माण और संरक्षण की दिशा में कार्य किए जा जा रहे हैं.
मौसम आधारित कृषि उपजों पर नीति :भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को मौसम के बदलाव का सामना करना पड़ रहा है. इसके लिए राज्य में किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि उपजों, बोआई के समय और सूखा-रोधी किस्मों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में किसानों के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं. इसमें किसानों को खेती के तरीकों की जानकारी दी जाती है. इसके अलावा पेड़ पौधे फलों की विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण और उत्पादन की तकनीकि साझा की जाती है.