लखनऊ : उत्तर प्रदेश पाॅवर कॉरपोरेशन निदेशक मंडल की तरफ से कुछ वक्त पहले एक प्रस्ताव पारित किया गया कि चार किलोवाॅट तक के घरेलू और वाणिज्य बिजली चोरी प्रकरणों में जिसमें बिजली चोरी के विरुद्ध लंबित बकाया व एफआईआर दर्ज है, उनसे सादे पेपर पर यह सहमति ले ली जाए कि भविष्य में जो निर्णय होगा वो मान्य होगा. उसके बाद उन्हें कनेक्शन दे दिया जाए. पाॅवर काॅरपोरेशन के निदेशक मंडल के इस आदेश को विद्युत नियामक आयोग ने खारिज कर दिया. आयोग ने कहा कि 1910 के एक्ट में बिजली चोरी का प्रावधान था. विद्युत अधिनियम 2003 में इसे सख्त किया गया. इससे साफ है कि बिजली चोरी में छूट देना ठीक नहीं है.
पाॅवर कॉरपोरेशन की तरफ से 30 सितंबर को विद्युत नियामक आयोग में कानून में संशोधन के लिए विद्युत वितरण संहिता की धारा 8.1 में संशोधन के लिए प्रस्ताव दाखिल किया गया था. इसी बीच 14 अक्टूबर को पाॅवर काॅरपोरेशन ने बिना आयोग की अनुमति लिए पूरे उत्तर प्रदेश में आदेश लागू कर दिया कि चार किलोवाट तक के बिजली चोरी के प्रकरणों में सादे कागज पर शपथ पत्र लेकर बिना राजस्व निर्धारण यानी बकाया जमा कराए उन्हें कनेक्शन दे दिया जाए.
इसके विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने 15 अक्टूबर को विद्युत नियामक आयोग में विरोध प्रस्ताव दाखिल किया. पाॅवर काॅरपोरेशन के निदेशक मंडल के आदेश को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि यह विद्युत अधिनियम 2003 व विद्युत वितरण संहिता का उल्लंघन है. विद्युत नियामक आयोग की पूर्ण पीठ ने फैसला सुनाया कि पाॅवर कॉरपोरेशन निदेशक मंडल से बिजली चोरी के संबंध में पारित प्रस्ताव नियम विरुद्ध है. पाॅवर काॅरपोरेशन का प्रस्ताव विद्युत अधिनियम 2003 व विद्युत वितरण संहिता 2005 के प्रावधानों का उल्लंघन है. इसलिए पाॅवर काॅरपोरेशन के आदेश को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसे खारिज किया जाता है.