उदयपुर: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शनिवार को बिरसा मुंडा की 150वी जयंती के उपलक्ष में जिले के सुदूर कोटड़ा कस्बे में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग तथा राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद के तत्वावधान में आयोजित जनजाति गौरव महोत्सव कार्यक्रम में पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा का नाम सामने आते ही हालात बदल जाते हैं. महज 25 साल की उम्र भी नहीं हुई और देश की आजादी, जनजाति समाज के स्वाभिमान व मिट्टी के लिए उनका योगदान अकल्पनीय और अविस्मरणीय है.
हमारा राज आएगा और उनका राज जाएगा:उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगुआ राज, अगुआ राज अर्थात हमारा शासन हमारा शासन यह कहने वाले बिरसा मुंडा के योगदान को सदैव याद रखा जाएगा. उनकी सोच दूरदर्शी थी और उनका संकल्प था कि हमारा राज आएगा और उनका राज जाएगा. सांस्कृतिक सोच के इस बालक योद्धा ने तीन शब्दों में समाहित कर दिया- जल, जंगल और जमीन.
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देश बदल रहा है: उन्होंने बिरसा मुण्डा को इस धरती का पुजारी और पर्यावरण का हितैषी बताते हुए कहा कि आपके दृढ़ संकल्प को सच होता देखकर मेरा मन अति प्रसन्न है कि अब अपना देश बदल रहा है. देश के सर्वाच्च पद राष्ट्रपति के पद पर जनजाति की महिला द्रौपदी मुर्मू विराजमान है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद में स्थापित भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा हमें हमेशा प्रेरित करेगी. राष्ट्र भावना का संचार करेगी.
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अमृत काल स्वाधीनता के भूले बिसरे नायकों को याद करने का अवसर:उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आजादी की लड़ाई में हजारों लाखों लोगों ने योगदान दिया. पता नहीं क्यों इतिहासकारों ने बिरसा मुंडा के योगदान, मानगढ़ धाम के बलिदान को भूला दिया. आजादी के अमृतकाल में आजादी की लड़ाई के भूले बिसरे नायकों को सम्मान दिया जा रहा है. हर वर्ष 15 नवंबर को बिरसा मुण्डा जी की जन्म जयंती को राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस के रूप मनाया जा रहा है.
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बिरसा मुंडा का पूरा जीवन राष्ट्रवाद का संदेश: उपराष्ट्रपति ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा का पूरा जीवन राष्ट्रवाद का संदेश है. उन्होंने आमजन से आह्वान किया कि सभी इस महापुरूष को समझें और इनके कृत्य को आदर्श माने और हमेशा राष्ट्रवाद को सर्वापरि रखें. उन्होंने कहा कि बिरसा मुण्डा को स्वाभाविक रूप से भगवान कहा गया है क्योंकि उनका आचरण, उनकी नैतिकता, उनकी ताकत, उनकी दूरदृष्टि, उनका लक्ष्य जमीन से जुड़ा है और सिर्फ यहीं तक उनका काम सीमित नहीं रहा. यह वो व्यक्ति थे जिन्होंने हमें जल जंगल जमीन का महत्व बताया. जनजाति के लोग पर्यावरण के महत्व को सिखाते हैं.
नीति निर्माण में महिलाओं की अब विशेष भूमिका: महिला सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ते कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि माताओं-बहनों के लिए बहुत बड़ा बदलाव कानून में किया गया है. अब हमारी माताएं-बहनें लोकसभा में एक तिहाई या उससे ज्यादा हो सकती हैं, लेकिन कम नहीं. राजस्थान में कम से कम जनजाति समाज की 8 महिलाएं हर बार विधानसभा में जाएंगी. आपकी उपस्थिति, आपकी सोच, नीति निर्माण का तरीका औरों के लिए प्रेरणादायक होगी.