जयपुर : शनिवार शाम को लिटरेचर फेस्टिवल में सार्वजानिक स्थानों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर आधारित सर्वे को लेकर आयोजित सत्र में पैनल चर्चा की गई, जिसमें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, वरिष्ठ वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर से बातचीत की. इस पैनल के दौरान सामने आया कि महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित और समानतापूर्ण स्थानों के निर्माण को लेकर मंथन जरूरी है.
विशेषज्ञों ने माना कि भारत में लैंगिक हिंसा एक गंभीर समस्या बनी हुई है, जिसके खिलाफ प्रभावी समाधान की लगातार जरूरत महसूस की जा रही है. लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान 'अपराजिता - राइज़ विद हर' नाम के एनजीओ की तरफ से महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के सवालों से जुड़े सर्वे को पेश किया गया. यह सर्वेक्षण जयपुर और दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की स्थिति को उजागर करने के लिए किया गया था.
दिल्ली और जयपुर की महिलाओं पर सर्वे : जयपुर और दिल्ली में महिलाओं से यौन उत्पीड़न पर सर्वेक्षण अपराजिता फाउंडेशन की तरफ से संचालित किया गया था. इसमें दोनों शहरों की 18 से 45 वर्ष की 1,200 महिलाओं ने भाग लिया. रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के प्रति असुरक्षा की भावना चिंताजनक रूप से बढ़ी है.
अपराजिता का सर्वे के अनुसार जयपुर में महिलाओं की सुरक्षा पर आंकड़े :
- 78% महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ और अनुचित व्यवहार का शिकार हुईं.
- 60% महिलाओं ने बताया कि उन्होंने बसों, मेट्रो और अन्य सार्वजनिक परिवहन में असुरक्षित महसूस किया.
- 42% महिलाएं कार्यस्थल पर मानसिक उत्पीड़न और असहज माहौल का सामना कर चुकी हैं.
- 65% महिलाएं ऐसी घटनाओं की शिकायत करने में हिचकिचाती हैं, क्योंकि उन्हें उचित कार्रवाई की उम्मीद नहीं होती.
पढ़ें. भारतीय क्रिकेट टीम भारत की टीम नहीं, ये भारतीयों की टीम है जो बीसीसीआई के लिए खेलती है: नंदन कामथ
अपराजिता का सर्वे के अनुसार दिल्ली में महिलाओं की स्थिति :
- 84% महिलाओं ने बताया कि उन्हें सड़कों, बाजारों और सार्वजनिक स्थलों पर अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ा.
- 55% महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने पुरुष सहकर्मियों या वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से यौन उत्पीड़न झेला है.
- 48% महिलाओं ने शिकायत करने के बावजूद किसी ठोस कार्रवाई का अनुभव नहीं किया.
- 70% महिलाएं देर रात बाहर जाने में असहज महसूस करती हैं.
अभिजीत बनर्जी के विचार : अभिजीत बनर्जी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न और हिंसा यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक गंभीर सामाजिक समस्या है. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए न केवल कड़े कानूनों की जरूरत है, बल्कि सामाजिक जागरूकता भी आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में लैंगिक समानता तभी संभव है, जब महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें. पुलिस प्रशासन, सामाजिक संगठनों और सरकारी संस्थाओं को इस दिशा में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी.
न्याय व्यवस्था जवाबदेह बने : सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने इस समस्या के पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, कि हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीरता से काम करने की जरूरत है. खासतौर पर पुलिस और न्यायिक व्यवस्था को जवाबदेह बनाना होगा. ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्टिंग शहरी क्षेत्रों की तुलना में और भी मुश्किल होती है. उन्होंने सरकारी योजनाओं और कानूनी प्रक्रियाओं को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हमारे समाज में लोगों को खास तौर पर पुरुषों को शिक्षित होने की जरूरत है.
कानूनों का कमजोर क्रियान्वयन : वरिष्ठ वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने कानूनी पहलुओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कई कानून मौजूद हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन बेहद कमजोर है. पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल होती है कि वे अक्सर शिकायत करने से बचती हैं. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कार्यस्थलों पर POSH (Prevention of Sexual Harassment) कानून को अधिक सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. इस मौके पर उद्योगपति प्रमोद भसीन ने बताया कि इस बहस का मकसद ना सिर्फ समस्या की गहराई को समझना था, बल्कि नीतिगत हस्तक्षेपों, कानूनी सुधारों और सामाजिक जागरूकता अभियानों के जरिए वास्तविक परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाना भी था.