रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा विधानसभा सीट से तीन बार से विधायक रहीं सीता सोरेन ने झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है. लोकसभा चुनाव से पहले सीता सोरेन का भाजपा में शामिल होने को झामुमो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. झारखंड की राजनीति में अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा की बात करें तो पार्टी गठन के बाद से कई बार बड़े नेताओं ने झामुमो को छोड़ दिया लेकिन झामुमो से अलग रहकर ज्यादातर नेता राज्य की राजनीति में अपनी पहचान नहीं बना सके.
शिबू सोरेन के भाई लालू सोरेन ने भी झामुमो से अलग होकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (क्रांतिकारी) बनाया था, फिर तृणमूल कांग्रेस, झामुमो कृष्णा मार्डी गुट में शामिल हो गए लेकिन वह राज्य की राजनीति में कभी भी सफल नहीं हो सके.
झामुमो से कई विधायकों के साथ अलग हुए थे कृष्णा मार्डी
झामुमो के कोल्हान क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में से एक रहे कृष्णा मार्डी ने पार्टी को तोड़ दिया था. 1992 में उन्होंने पार्टी तोड़कर झामुमो मार्डी गुट बना लिया था. इसके बाद कृष्णा मार्डी की राजनीति हिचकोले ही खाती रही. पार्टी से अलग होने के बाद फिर से वह झामुमो, भाजपा, आजसू और कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन राजनीति में वह मुकाम नहीं बना सके.
झामुमो से अलग होकर राजनीति के नेपथ्य में चले गए ये नेता
शिबू सोरेन के कभी हमसाया रहे पूर्व सांसद सूरज मंडल, जामा के विधायक रहे मोहरीन मुर्मू, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हेमलाल मुर्मू, कभी पार्टी की ओर से रामगढ़ विधायक रहे अर्जुन महतो, डुमरी से विधायक रहे शिवा महतो, पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां, संथाल के कद्दावर झामुमो नेता रहे साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी से लेकर कुणाल षाड़ंगी, अमित महतो तक तमाम नाम ऐसे हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा या फिर पार्टी नेतृत्व से नाराज होकर झामुमो छोड़ दिया और फिर राजनीति में फ्लॉप हो गए. इनमें से स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, साइमन मरांडी फिर से पार्टी में लौट आये तो सूरज मंडल भाजपा में हैं.
अर्जुन मुंडा, विद्युतवरण महतो और जेपी पटेल ही झामुमो छोड़ने के बाद रहे सफल