लखनऊ : अयोध्या की जनता ने तो भारतीय जनता पार्टी का कमल खिला दिया, लेकिन अन्य विधानसभा क्षेत्रों के वोटरों ने साइकिल की सवारी करनी बेहतर समझी. यही कारण रहा है कि विश्व नगरी बनाने की धुन अलाप रही भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इसके पीछे कई बड़ी वजह रहीं, जो अब बीजेपी के सियासतदार महसूस कर रहे हैं. भाजपा में चर्चा है कि राम मंदिर बनने के बाद अयोध्यावासियों को अनेक तकलीफों का सामना करना पड़ा. यही कारण रहा कि बीजेपी को अयोध्या शहर के अलावा सभी विधानसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा.
अयोध्या की अनदेखी. (Photo Credit-Etv Bharat)
भाजपा की अप्रत्याशित हार:भाजपा ने अयोध्या लोकसभा सीट से दो बार के सांसद लल्लू सिंह को मैदान में उतारा था. उनके सामने पासी समाज के विधायक समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद इंडी गठबंधन से उम्मीदवार थे. अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं. मतगणना के आंकड़ों के अनुसार अयोध्या में सपा उम्मीदवार को 1 लाख चार हजार वोट मिले.
भाजपा के लल्लू सिंह को यहां 1 लाख 4 चार हजार 671 वोट मिले. रुदौली सीट पर समाजवादी पार्टी के अवधेश नारायण को 1 लाख 40 हजार 113 वोट मिले, जबकि लल्लू सिंह को मात्र 12 हजार 410 वोट मिले. मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में सपा को 95 हजार 612 वोट मिले. भाजपा को यहां 87 हजार 879 वोट मिले. बीकापुर विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को 1 लाख 22 हजार 543 वोट मिले.
भाजपा को यहां से 92 हजार 859 वोट ही प्राप्त हुए. दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र में सपा को 1 लाख 71 हजार 277 वोट मिले. भाजपा को इस सीट पर 1 लाख 21 हजार 183 वोट ही प्राप्त हुए. इस तरह से कुल पांच विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी को केवल अयोध्या शहर से ही जीत हासिल हुई.
वैश्विक महत्व देने के फेर में स्थानीय लोगों की हुई अनदेखी :रुदौली के रहने वाले पूर्व सरकारी शिक्षक रामदयाल वर्मा बताते हैं कि जनादेश के पीछे अयोध्या की जो असहमति और पीड़ा व्यक्त हो रही है, वैसी पीड़ा और असहमति से अयोध्या राम मंदिर का निर्णय आने के बाद से ही गुजरने लगी थी. चाहे वह राम मंदिर रहा हो या उससे पूर्व भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला दीपोत्सव.
इसे वैश्विक महत्व का बनाने के प्रयास में अयोध्या की अनदेखी होने लगी. आए दिन अति विशिष्ट अतिथियों के आगमन और मार्गों पर रोक-टोक से अयोध्या के लोग अपने ही नगर में बेगाने सिद्ध होने लगे. रही-सही कसर विकास के नाम पर व्यापक तोड़-फोड़ से हुई. तोड़-फोड़ से नागरिकों एवं व्यापारियों को विस्थापन का सामना करना पड़ा.
विशेषाधिकार की अपेक्षा को किया गया दरकिनार :जगजाहिर है कि राम और राम मंदिर अयोध्या की थाती हैं. ऐसे में अयोध्या जाने और वहां ठहरने आदि में स्थानीय धर्माचार्यों एवं नागरिकों को सरकार से विशेषाधिकार की अपेक्षा थी, किंतु तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस बारे में किसी तरह का विचार करने की जरूरत नहीं समझी. ऐसे में वे सामान्य श्रद्धालुओं की तरह राम मंदिर का दर्शन करने बाध्य हुए हैं. इसके अलावा भगवान राम के दर्शन के लिए विशेष पास के लिए तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों से लेकर संघ और विहिप के पदाधिकारियों से चिरौरी करनी पड़ी.
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और जनप्रतिनिधियों का दंभ भी बना कारण :तमाम असहमतियों के बीच भाजपा के तरकश के तीरों को भी जंग लगी. जिन कार्यकर्ताओं के बूते ऐसे मोर्चे जीते जाते हैं, उनकी अवमानना खुलेआम देखी गई. सत्ता मद में चूर जनप्रतिनिधियों ने जनता की समस्या सुनने की बात तो दूर कार्यकर्ताओं की हमदर्दी हासिल करने की फुरसत नहीं निकाली. भाजपा को पिछले पांव पर ढकेलने में अफसरशाही को भी याद किया जाएगा. कुछ वर्षों के दौरान जनप्रतिनिधियों के मुकाबले कुछ प्रमुख पदों पर बैठे अधिकारियों की ही चली. यही स्थिति जन सामान्य और भाजपा कार्यकर्ताओं को हताश कर गई.
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