नई दिल्ली:कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'इंडिया गठबंधन' को बीजेपी से इतर दूसरे राज्यों की सरकारों और नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में सहयोगी दलों के नेताओं के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया था. इसके तहत चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई थी. इसी रणनीति के परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ते हुए दिल्ली में एक दूसरे की धुरविरोधी पार्टी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भी बीजेपी के खिलाफ हाथ मिला लिया था. दिल्ली की सत्ता पर प्रचंड बहुमत के साथ काबिज हुई आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की जरूरत महसूस हुई. आम आदमी पार्टी को भी महसूस हुआ कि वो दिल्ली विधानसभा तो अपने बलबूते लड़ सकती है लेकिन बीजेपी को वो लोकसभा चुनाव में अकेले नहीं हरा सकती है. इस सबको ध्यान में रखते हुए आम आदमी पार्टी ने ना चाहते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाया.
दिल्ली की सातों सीट पर चुनाव लड़ने की क्या बनी थी रणनीति
दोनों पार्टियां 'इंडिया गठबंधन' में एक दूसरे की सहयोगी बन गई और अब आगे तय किया कि मिलकर चुनाव लड़ते हैं. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में गठबंधन करते हुए सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय किया. आप पार्टी ने शुरुआत में ऐसा फॉर्मूला तय किया कि कांग्रेस पार्टी के आला नेता खफा हो गए थे. आप पार्टी के नेताओं ने सीट शेयरिंग पर कई तल्ख बयान भी दिए जो कांग्रेस नेताओं को रास नहीं आए. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच जनवरी माह में लगातार दो आधिकारिक बैठकें हुईं जोकि 8 जनवरी और 12 जनवरी को की गईं. दोनों की तरफ से मिलकर चुनाव लड़ने का पूरा माहौल बनाया गया था लेकिन इन दोनों मीटिंग में कोई खास नतीजा नहीं निकल पाया था. इसकी एक बड़ी वजह यह रही थी कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस को 7 लोकसभा सीट में से सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ने के लिए ऑफर कर रही थी.
कितनी सीटों पर आप और कितनी सीटों पर कांग्रेस ने लड़ा चुनाव
आप के शीर्ष नेताओं ने तर्क दिया था कि कांग्रेस इसके लिए ही गठबंधन की हकदार है क्योंकि ना तो उसका कोई चुना हुआ सदस्य दिल्ली विधानसभा में है और ना ही देश की लोकसभा में दिल्ली से कोई चुनाव हुआ सदस्य है. ऐसे में उनको एक सीट ही देना उचित है. इस बयान पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं में नाराजगी बन गई थी लेकिन कई मुलाकात और बैठकों के बाद ही आगे की रणनीति तय करते हुए सीट शेयरिंग फार्मूले पर बातचीत हुई. दोनों दलों के बीच 4:3 का फार्मूला तैयार हुआ. इसका मतलब यह है कि 4 सीट पर आम आदमी पार्टी और 3 सीट पर कांग्रेस के कैंडिडेट चुनाव लड़ेंगे जिनको एक दूसरे की पार्टी के कार्यकर्ता और नेता सपोर्ट करेंगे. दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए दोनों पार्टियों के बीच आपसी सहमति बनी और चार तीन का फार्मूला फाइनल हो गया. आम आदमी पार्टी ने ईस्ट दिल्ली, वेस्ट दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और नई दिल्ली से अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया था और कांग्रेस को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली, नॉर्थ वेस्ट दिल्ली और चांदनी चौक सीट दी गई.
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बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन ने कैसे बनाई थी रणनीति
सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय होने के बाद दोनों दलों की ओर से बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई गई कि किस तरह से चुनाव को लड़ा जाएगा. इस दौरान दोनों पार्टियों की तरफ से कोआर्डिनेशन कमेटी गठित की गईं जिससे कि दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सके. कहीं कोई मनमुटाव या नाराजगी किसी मामले पर सामने आए तो उसका समाधान किया जा सके. दोनों दलों के नेताओं की ओर से तय किया गया कि चुनाव प्रचार दोनों पार्टियों के नेताओं की तरफ से दोनों दलों के कैंडिडेट की सीटों पर किया जाएगा. हालांकि, 16 मार्च, 2024 को चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद शुरुआती दौर में आम आदमी पार्टी के नेता अपने प्रत्याशियों की सीटों पर ही संवाद सम्मेलन आयोजित करते रहे.
इसके बाद रणनीति बनाई गई कि अब आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस के कैंडिडेट की सीटों पर भी संयुक्त चुनाव प्रचार करेंगे. इस दौरान दिल्ली शराब नीति में कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 21 मार्च, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तारी ने दोनों दलों में बेचैनी पैदा कर दी. चुनाव से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी होने से पार्टी के नेताओं में इसको लेकर मायूसी भी देखी गई लेकिन आम आदमी पार्टी ने पूरा मोर्चा संभालते हुए मजबूती से चुनाव लड़ा. हालांकि, सीएम केजरीवाल के जेल जाने बाद पार्टी के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत पर रिहा कर दिया गया.
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पार्टियों ने वोटर को समझाने की बनायी थी कुछ इस तरह की रणनीति
दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीट बंटवारे को लेकर दिल्ली के कांग्रेस के नेताओं में भी नाराजगी पैदा हो गई. सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत तय हुआ कि जिन सीटों पर कांग्रेस लड़ेगी वह अपने सिंबल पर ही चुनाव लड़ेगी. मसलन, जहां 'इंडिया गठबंधन' के तहत आम आदमी पार्टी के कैंडिडेट चुनाव लड़ेंगे वहां पर सिंबल 'झाडू' और जहां पर कांग्रेस कैंडिडेट लड़ेंगे वहां पर सिंबल 'हाथ का पंजा' होगा. इसके बाद दोनों पार्टियों की ओर से रणनीति बनाई गई की ईवीएम में जब मतदाता वोट डालने के लिए जाएंगे तो वह भ्रमित ना हो. मतदाता को नहीं पता होगा कि ईवीएम में संयुक्त प्रत्याशी कैसे पता चले और किसको वोट दे. वह बंटवारे के तहत मिली सीट पर अपने समर्थित पार्टी के 'सिंबल' को देखकर कहीं और को वोट ना डाल दें.
जिन सीटों पर आम आदमी पार्टी लड़ रही है वहां पर कांग्रेस के सपोर्टर या मतदाताओं को कांग्रेस प्रत्याशी नजर नहीं आएंगे. इसी तरह से जिन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी लड़ रहे हैं, वहां पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी नहीं नजर आएंगे. इस सभी स्थिति को ध्यान में रखते हुए बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाई गई थी और मतदाताओं को जागरूक भी किया गया. रणनीति बनाई गई कि दोनों पार्टियां अपने-अपने मतदाताओं को यह बताएं कि इस सीट पर कांग्रेस और इस सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को वोट करें क्योंकि यहां पर संयुक्त प्रत्याशी के रूप में एक ही कैंडिडेट नजर आएंगे.
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इस चुनाव में आप और कांग्रेस के गठबंधन से किसे क्या हासिल हुआ
दिल्ली में अब जब लोकसभा चुनाव खत्म हो गए हैं तो अब सवाल यही खड़े हो रहे हैं कि आखिर दो धुरविरोधी पार्टियों को मिलकर चुनाव लड़ने से क्या हासिल हुआ है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जोकि यहां पर एक दूसरे की कट्टर विरोधी रही हैं, उनके मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी एक सीट हासिल नहीं हो पाई है, ऐसे में उनका गठबंधन क्या साबित करता है. अब यहां बताना जरूरी है कि दोनों पार्टियों को भले ही इस चुनाव में एक भी सीट हासिल ना हो पाई हो लेकिन दोनों पार्टियों को वोट प्रतिशत में इस बार पिछले 2019 के चुनाव के मुकाबले बढ़त मिली है. आम आदमी पार्टी ने अकेले ही इस चुनाव में 24.17 फ़ीसदी का वोट शेयर हासिल किया है जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 18.51 फ़ीसदी रिकॉर्ड हुआ है.
दोनों ही पार्टियों को इस चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं होने पर मलाल तो जरूर है. दूसरी तरफ इस बात पर संतोष है कि भाजपा के खिलाफ लोगों ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों को ही ज्यादा वोट किया है. इस बार बीजेपी को 54.35 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ है जोकि पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले दो फीसदी से ज्यादा कम रिकॉर्ड किया गया है. इंडिया गठबंधन के कुल वोट शेयर की बात करें तो उनको 42.68 फीसदी वोट इस चुनाव में हासिल हुआ है.लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद अब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 'गठबंधन' तोड़ दिया है.
दोनों पार्टी के नेताओं की तरफ से कहा जा रहा है कि यह लोकसभा चुनाव के लिए ही था अब दोनों पार्टियां आगामी 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगी. आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश के संयोजक गोपाल राय और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अंतरिम अध्यक्ष देवेंद्र यादव की ओर से भी साफ कर दिया गया है कि यह 'गठबंधन' सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए ही था. अब दोनों पार्टियां विधानसभा का चुनाव अलग-अलग लड़ेंगे.
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दिल्ली मिशन-2025 की कांग्रेस-आप की क्या है प्लानिंग
दोनों पार्टियों के नफा नुकसान की बात करें तो इस गठबंधन के दिल्ली में खत्म होने के बाद विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने पर कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने की संभावना ज्यादा है. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी 62 सीटों पर काबिज है जबकि कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व जीरो है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव अलग लड़ती है तो उसको ज्यादा नुकसान होने की संभावना है. आम आदमी पार्टी को इससे बड़ा फायदा ही होगा क्योंकि आम आदमी पार्टी विधानसभा में अपने आप को ज्यादा मजबूत देख रही है. ऐसे में वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करके विधानसभा में खुद को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती है.
आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि दिल्ली की जनता विधानसभा में केजरीवाल सरकार की नीतियों को और योजनाओं को लेकर अच्छा वोट करेगी. इस सब के चलते अब दोनों पार्टियों ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपनी अलग-अलग राह चुन ली है. अब आने वाला वक्त तय करेगा कि दिल्ली की राजनीति किस करवट बैठती है. दरअसल, दिल्ली के सातों सीटों पर भाजपा तीसरी बार काबिज हुई है ऐसे में भारतीय जनता पार्टी काफी उत्साहित है और वह आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भी एक सकारात्मक सोच को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुट गई है.
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