लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और अंतिम चरण के रण का प्रचार खत्म हो गया है. सातवें चरण में यूपी की 13 सीटों पर एक जून को मतदान होगा. जिसमें मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अनुप्रिया पटेल, महेंद्र नाथ पांडेय, पूर्व पीएम चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर, कांग्रेस लीडर अखिलेश प्रताप सिंह, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और अभिनेता रवि किशन जैसे प्रमुख नेताओं की किस्मत का फैसला करेंगे.
ये चरण NDA के लिए काफी चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है. क्योंकि, पिछले चुनाव में NDA ने बस घोसी और गाजीपुर में मात खाई थी. इन दोनों सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा बाकी सभी सीटें जीती थीं. इसमें 9 भाजपा ने खुद और 2 सीट उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने जीती थीं. बाकी दो में एक-एक सीट सपा और बसपा के खाते में गई थीं.
बलिया में पूर्व पीएम चंद्रशेखर के बेटे नीरज के लिए कड़ा मुकाबला: बलिया संसदीय क्षेत्र (Ballia Lok Sabha Seat) पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सियासी जमीन मानी जाती है. यहां से वह 8 बार चुनाव जीते थे. यही नहीं लगातार 6 बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. उनके बाद यह सीट समाजवादी पार्टी के टिकट पर चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर जीतते रहे. लंबे अरसे से इस सीट पर जीत की बाट जोह रही भाजपा को 2014 में सफलता मिली. मोदी लहर में वीरेंद्र सिंह मस्त यहां से सांसद बने.
मौजूदा समय में भी वीरेंद्र ही सांसद हैं. भाजपा ने इस बार चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को मैदान में उतारा है. वहीं समाजवादी पार्टी अपनी खोई हुई सीट को पाने के लिए सनातन पांडेय पर दांव खेला है. जबकि, बसपा ने यादव कार्ड खेलते हुए लल्लन सिंह यादव को टिकट दिया है. तीनों में टक्कर तो जबरदस्त देखने को मिल रही है. लेकिन, नीरज का पलड़ा भारी जरूर दिख रहा है. वैसे, जनता इनकी किस्मत का फैसला एक जून को करने वाली है. जिसका नतीजा 4 जून मतगणना के बाद आएगा.
क्या बांसगांव में सदल तोड़ेंगे उपविजेता का तमगा: बांसगांव लोकसभा सीट (Bansgaon Lok Sabha Seat) पर हर बार रोचक मुकाबला होता है. आज तक ज्यादातर जीत कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को ही मिली है. दोनों दल यहां पर जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे हैं. इस भाजपा ने हैट्रिक लगा चुके कमलेश पासवान को ही टिकट दिया है. वहीं इंडी गठबंधन के तहत कांग्रेस के खाते में आई इस सीट पर पार्टी ने सदल प्रसाद को उतारा है.
उनके बारे में एक खास बात ये है कि ये तीन बार यहां से चुनाव लड़ चुके हैं और तीनों ही बार उपविजेता रहे. तीनों ही बार वे बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े. लेकिन, इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं. वहीं बसपा ने राम समुज को प्रत्याशी उतारा है. अब एक जून को देखना होगा कि जनता कमलेश पासवान को लगातार चौथी बार जीत का स्वाद चखाती है या फिर सदल प्रसाद उपविजेता से विजेता बनाएगी.
क्या चंदौली के मतदाताओं की नाराजगी दूर कर पाएंगे भाजपा के महेंद्र: देश की सबसे हॉट सीट वाराणसी का पड़ोसी संसदीय क्षेत्र चंदौली (Chandauli Lok Sabha Seat) भाजपा के लिए काफी अहम स्थान रखती है. दरअसल, वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं केंद्र सरकार में डॉ. महेंद्रनाथ पाण्डेय इस बार भी यहां से चुनावी रण में ताल ठोंक रहे हैं. सपा ने पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को चुनावी अखाड़े में उतारा है.
यादव-मुस्लिम के साथ ही कुछ हद तक राजपूतों का झुकाव भी उनकी ओर दिख रहा है. बसपा से सत्येन्द्र कुमार मौर्य मैदान में हैं. अब एक जून को देखना ये होगा कि मतदाता स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नाराजगी से दूर मोदी-योगी की विकास यात्रा को तरजीह देती है या फिर जातीय समीकरण के हिसाब से सपा-बसपा को फायदा पहुंचाती है.
देवरिया में कहीं भाजपा को सांसद का टिकट काटना भारी न पड़ जाए: भाजपा ने देवरिया सीट (Devaria Lok Sabha Seat) पर इस बार अपने सांसद रमापति राम त्रिपाठी का टिकट काटकर शशांक मणि त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. जबकि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के खाते में आई इस सीट पर पार्टी ने अखिलेश प्रताप सिंह पर दांव खेला है. बसपा ने संदेश यादव उर्फ मिस्टर को टिकट दिया है. देवरिया सीट पर 17.54 लाख वोटर हैं. जिसमें से 9.57 लाख पुरुष और 7.96 लाख रुरुष वोटर हैं. इस सीट पर ब्राह्मण, राजपूत और कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं.
इन्हें भाजपा का कैडर वोट भी माना जाता है. वैसे देवरिया सीट पर 13.9 फीसद मुस्लिम, अनुसूचित जाति के 14.2 फीसद, अनुसूचित जनजाति के 3.1 फीसद और सामान्य मतदाताओं की संख्या 19 फीसद के करीब है. देवरिया में सबसे ज्यादा ओबीसी वोटर हैं. जिनकी संख्या 52 फीसद है. अब एक जून ये फैसला हो जाएगा कि कौन सी जाति के लोग किस पार्टी के साथ हैं.
गाजीपुर में अफजाल को क्या मिलेगा मुख्तार की मौत का सहानुभूति वोट: गाजीपुर लोकसभा सीट (Ghazipur Lok Sabha Seat) पर भाजपा, सपा और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. सपा ने बसपा छोड़कर आए सांसद अफजाल अंसारी को प्रत्याशी बनाया है. जबकि, भाजपा ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी पारसनाथ राय को टिकट दिया है. वहीं बसपा ने डॉ. उमेश कुमार सिंह प्रत्याशी बनाया है.
माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद ये पहला चुनाव होने जा रहा है. मुख्तार का गाजीपुर के साथ-साथ पड़ोस के बलिया, मऊ, आजमगढ़ और वाराणसी में भी प्रभाव माना जाता रहा है. अब देखना ये होगा कि अफजाल को उनके भाई की मौत के बाद क्या सहानुभूति वोट मिलता है या फिर यहां पर मनोज सिन्हा का सिक्का चलेगा. इसका फैसला जनता एक जून को करेगी.
घोसी में राय और राजभर की लड़ाई: घोसी लोकसभा सीट (Ghosi Lok Sabha Seat) भाजपा के लिए इस बार काफी चुनौतीपूर्ण है. पिछले चुनाव में भाजपा को यहां से हार का सामना करना पड़ा था. यही नहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इस सीट के 5 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ एक पर ही भाजपा को जीत मिली थी. दो सीट सपा को, एक सुभासपा को और एक बसपा को मिली थी. वैसे इस बार सुभासपा भाजपा के साथ है लेकिन, सीट को जीतना भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं है.
भाजपा ने घोसी सीट अपने सहयोगी सुभासपा को दी है. यहां से सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर चुनाव लड़ रहे हैं. सपा ने राजीव राय को उम्मीदवार बनाया है. बसपा ने यहां से दो बार सांसद रह चुके बालकृष्ण चौहान पर दांव लगाया है. बदले समीकरणों में राय और राजभर के बीच सिमटी इस जंग में ओम प्रकाश राजभर की साख दांव पर है. अब एक जून को देखना ये होगा कि समीकरण राजभर के पक्ष में बैठते हैं या राय को जीत दिलाते हैं.
गोरखपुर में गोरक्षपीठ बनाम जातीय समीकरण: (Gorakhpur Lok Sabha Seat) गोरक्षपीठ की खड़ाऊं लेकर भाजपा सांसद रवि किशन उसी आभा मंडल के सहारे दूसरी बार सांसद बनने के प्रयास में लगे हैं. भाजपा ने उन्हें लगातार दूसरी बार टिकट दिया है. वहीं, सपा ने भोजपुरी अभिनेता के सामने भोजपुरी अभिनेत्री को उतारा है. इंडी गठबंधन के तहत सपा के खाते में आई गोरखपुर सीट पर पार्टी ने काजल निषाद पर दांव खेला है.