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किशनगंज लोकसभा सीट से आज तक सिर्फ एक हिंदू प्रत्याशी की हुई है जीत, AIMIM ने मुकाबला बनाया त्रिकोणीय - Lok Sabha Election 2024

महागठबंधन में किशनगंज लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में गई है और पार्टी ने एक बार फिर से मौजूदा सांसद डॉ. मो. जावेद आजाद को टिकट दिया है. वहीं एनडीए में यह सीट जेडीयू के खाते में गई है और पार्टी ने मुजाहिद आलम को उम्मीदवार बनाया है. किशनगंज लोकसभा सीट पर अब तक किसका रहा है कब्जा, कैसे रहे समीकरण और सियासी इतिहास, जानिए

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 12, 2024, 6:03 AM IST

Updated : Apr 12, 2024, 7:53 PM IST

किशनगंज लोकसभा सीट का इतिहास

किशनगंज:बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है. इस सीट पर मुस्लिम वोटर ही किसी प्रत्याशी की हार और जीत तय करते हैं. कांग्रेस से अभी डॉक्टर मोहम्मद जावेद यहां के वर्तमान सांसद हैं. कांग्रेस ने 2019 में इस सीट से जेडीयू को पटखनी दी थी.

26 अप्रैल को मतदान:किशनगंज संसदीय चुनाव में जातीय समीकरण नहीं बल्कि धार्मिक समीकरण मायने रखता है. 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले बिहार के सीमावर्ती किशनगंज लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में आगामी 26 अप्रैल को मतदान होगा, जिसे लेकर सरगर्मी तेज हो चुकी है. नामांकन वापसी की तिथि समाप्ति के बाद कुल 12 उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में हैं, जिनके भाग्य का फैसला मतदाता करेंगे.

NDA Vs इंडिया :गठबंधन के तहत जनता दल यूनाइटेड के खाते में इस बार यह सीट गई है और मुजाहिद आलम को पार्टी ने टिकट दिया है. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट से जेडीयू ने चुनाव लड़ा था, लेकिन जदयू उम्मीदवार मरहूम महमूद अशरफ को हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस के डॉ जावेद आजाद यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे. एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान तीसरे स्थान पर रहे थे.

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किशनगंज सीट का इतिहास:2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 3 लाख 67 हजार 17 वोट मिले थे जबकि महमूद अशरफ को 3 लाख 32 हजार 551 वोट, वहीं एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान को 2 लाख 95 हजार 29 वोट मिले थे. 2014 में भी इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी मौलाना असरारुल हक कासमी जीते थे और भाजपा प्रत्याशी डॉ दिलीप कुमार जायसवाल को हार का सामना करना पड़ा था. तब जेडीयू ने अख्तरुल ईमान को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन ऐन वक्त पर अख्तरुल ईमान ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था.

9 बार कांग्रेस और 1 बार बीजेपी की जीत: किशनगंज लोकसभा सीट में 68 फीसदी मुस्लिम मतदाता है और 32 फीसदी हिंदू मतदाता हैं. सीमावर्ती किशनगंज संसदीय क्षेत्र नेपाल और पश्चिम बंगाल से सटा है. मुस्लिम बहुल किशनगंज की सियासत जितनी सरल है, उतना ही रोचक भी. कांग्रेस के लिए यह सुरक्षित किला माना जाता है. 1957 से 2019 तक 16 लोकसभा चुनावों में से नौ बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. भाजपा को सिर्फ एक बार 1999 में मौका मिला, जब त्रिकोणीय मुकाबले में शाहनवाज हुसैन जीते. पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस ही जीतती रही है. दिलचस्प बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से महागठबंधन का सिर्फ किशनगंज लोकसभा सीट पर ही कब्जा किया था.

किशनगंज में कुल मतदाता: जिले में चार विधानसभा क्षेत्र किशनगंज, ठाकुरगंज, बहादुरगंज और कोचाधामन में कुल 1211331 मतदाता हैं. इसमें पुरुष मतदाता 624524, महिला मतदाता 5,86,759 और थर्ड जेंडर 48 हैं.इस बार 18 से 19 आयु वर्ग के कुल मतदाता 20777 हैं. साथ ही 20 से 29 आयु वर्ग के कुल मतदाता 290053 मतदाता हैं. जबकि पूर्णिया जिले की दो विधानसभा सीट अमौर और बायसी भी इस लोकसभा क्षेत्र में पड़ती है.

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क्या है क्षेत्र की समस्याएं?: जिले की समस्याओं पर अगर बात करें तो शिक्षा के क्षेत्र में यह लोकसभा क्षेत्र आज भी पूरे देश में निचले पायदान पर है. जिले की साक्षरता दर सिर्फ 57.4% है.वहीं बाढ़ और कटाव से हर साल सैंकड़ों एकड़ जमीन नदी में विलीन हो जाती है. जिले की टेढ़ागाछ,कोचाधामन,पोठिया प्रखंड सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित इलाका है, जहां हर साल महानंदा, रेतुआ नदी कहर बरपाती है.कटाव से बचाव के लिए नेताओं द्वारा हर साल दावे किए जाते हैं लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. साथ ही प्रमुख मुद्दों में पलायन भी शामिल है. रोजगार की व्यवस्था नहीं होने की वजह से युवा अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर होते हैं. लेकिन बाढ़ कटाव या शिक्षा दर,पलायन कभी मुद्दा नहीं बन पाया.

आज तक सिर्फ एक बार जीत पाया हिंदू उम्मीदवार : 2024 चुनावों में कांग्रेस ,जदयू और एआईएमआईएम के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा. एआईएमआईएम से अख्तरुल ईमान फिर इस बार चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस से डॉ जावेद आजाद उम्मीदवार हैं. वरिष्ठ पत्रकार एम.जे. अकबर भी यहां से 1989 में सांसद रहे थे. 1957 से 2019 तक यहां से सिर्फ एक गैर मुस्लिम सांसद (लषण लाल कपूर) चुने गये.

धार्मिक समीकरण रखते हैं मायने:जातिगत समीकरण की बात करें तो तीनों ही पार्टियों के उम्मीदवार सुरजापुरी समुदाय से आते हैं. यहां जातीय समीकरण नहीं बल्कि धार्मिक समीकरण पर चुनाव लड़े जाते रहे हैं. ऐसे में 32% हिंदू मतदाताओं का वोट जिस पार्टी को एकमुश्त प्राप्त होगा, उसके जीत की संभावना जताई जा रही है. जनता दल यूनाइटेड भाजपा के परंपरागत वोट को अपनी झोली में लाने में कितना सफल होती है यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन चुनाव में तीनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होगी.

'मुस्लिम बहुल क्षेत्र से एक हिंदू सांसद चुने गए थे': वहीं किशनगंज लोकसभा सीट को लेकर राजनीति के जानकार डॉक्टर सजल प्रसाद का कहना है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र से एक हिंदू सांसद चुने गए हैं. यहां के लोग अमन पसंद करते हैं. मुस्लिम मतदाता भाजपा का विरोधी माना जाता है. लेकिन जब वोट होता है तो उसके तरीके का परिणाम पर असर होता है.

"विकास एक बहुत बड़ा मुद्दा है इस क्षेत्र का. तस्लीमउद्दीन के कारण दो बड़ी रेल परियोजना हमारे क्षेत्र में आई है. आने वाले वक्त में पता चलेगा कि आखिर जनता के मन में क्या है."-डॉक्टर सजल प्रसाद , राजनीति के जानकार

क्या कहना है मतदाताओं का: वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि किशनगंज सीमांचल में आता है. यहां पर ऐसा जनप्रतिनिधि चुनना है जो विकास करे, सड़क बिजली पानी की समस्या से निजात मिले. वहीं मतदाता नवीन सिंह ने कहा कि "लोगों की भलाई के बारे में जो सोचेगा उसे ही हम वोट देंगे. जितना सोचा था उतना विकास नहीं हुआ है, फिर भी काम हुआ है. आने वाला समय बताएगा कि क्या होगा."

"यहां हिंदू मुस्लमान करके कोई फायदा नहीं होगा. हम सब मिलकर रहते हैं. यहां लोगों को ऐसा वोट करना है कि सभी मिलकर रहे आगे कोई दिक्कत ना हो."- पंकज,मतदाता

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Last Updated : Apr 12, 2024, 7:53 PM IST

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