शिमला:जिला शिमला में स्थित ऐतिहासिक मंदिर तारा देवी में 14 जुलाई रविवार यानी आज से लंगर हरी पत्तलों में श्रद्धालुओं को परोसा जाएगा. डीसी शिमला अनुपम कश्यप ने बताया कि अपनी संस्कृति और धरोहर को सहेजने की दिशा में और संतुलित पर्यावरण के लिए मंदिरों में टौर के पत्तों से तैयार पत्तल में लंगर दिया जाएगा. जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के आधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन को ये पत्तल बनाने का जिम्मा दिया गया है. पहले चरण में उन्हें पांच हजार पत्तल बनाने का ऑर्डर दिया गया है.
सभी मंदिरों में इस्तेमाल होंगे टौर के पत्तल
डीसी अनुपम कश्यप ने बताया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और स्वयं सहायता समूहों को रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन पूरी तरह से प्रयास कर रहा है. सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन में 2900 से ज्यादा महिलाएं पत्तल बनाने का काम करती हैं, लेकिन पत्तलों की डिमांड कम होने के कारण उत्पादन अधिक नहीं किया जाता था. इस दिशा में अब प्रशासन ने फैसला लिया है कि जिले के सभी मंदिरों में टौर के पत्तलों में लंगर परोसे जाएंगे. प्रथम चरण में इसकी शुरूआत तारा देवी मंदिर की जा रही है.
हिमाचली संस्कृति का हिस्सा टौर के पत्तल
हिमाचली संस्कृति में धाम के दौरान लजीज व्यंजन परोसने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हरी पत्तल का महत्व सबसे ऊपर ह. धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समेटे देवभूमि हिमाचल के कई इलाकों में यह परंपरा आज भी जारी है. टौर के पत्तों से बनने वाली इस पत्तल में सामाजिक समरसता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है. पहाड़ों पर ये पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है. यह बेल मध्यम ऊंचाई वाले शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर जिले में ही पाई जाती है.
टौर के पत्तल की खूबियां