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तारा देवी मंदिर में आज से टौर के पत्तल में परोसा जाएगा लंगर, जानें हिमाचली संस्कृति में क्या है इसका महत्व? - Taur Pattal in Tara Devi Temple - TAUR PATTAL IN TARA DEVI TEMPLE

Taur Pattal in Himachal Culture: हिमाचल प्रदेश को प्रदूषण रहित बनाने, पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और रोजगार मुहैया करवाने के लिए एक बार फिर टौर के पत्तलों का दौर शुरू होने जा रहा है. शिमला में इसकी शुरुआत तारा देवी मंदिर से की जाएगी. आज से मंदिर में लंगर सिर्फ टौर के पत्तलों में ही परोसा जाएगा.

Taur Pattal in Himachal Culture
तारा देवी मंदिर में टौर के पत्तल होंगे इस्तेमाल (ETV Bharat)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 14, 2024, 12:03 PM IST

Updated : Jul 14, 2024, 12:33 PM IST

शिमला:जिला शिमला में स्थित ऐतिहासिक मंदिर तारा देवी में 14 जुलाई रविवार यानी आज से लंगर हरी पत्तलों में श्रद्धालुओं को परोसा जाएगा. डीसी शिमला अनुपम कश्यप ने बताया कि अपनी संस्कृति और धरोहर को सहेजने की दिशा में और संतुलित पर्यावरण के लिए मंदिरों में टौर के पत्तों से तैयार पत्तल में लंगर दिया जाएगा. जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के आधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन को ये पत्तल बनाने का जिम्मा दिया गया है. पहले चरण में उन्हें पांच हजार पत्तल बनाने का ऑर्डर दिया गया है.

सभी मंदिरों में इस्तेमाल होंगे टौर के पत्तल

डीसी अनुपम कश्यप ने बताया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और स्वयं सहायता समूहों को रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन पूरी तरह से प्रयास कर रहा है. सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन में 2900 से ज्यादा महिलाएं पत्तल बनाने का काम करती हैं, लेकिन पत्तलों की डिमांड कम होने के कारण उत्पादन अधिक नहीं किया जाता था. इस दिशा में अब प्रशासन ने फैसला लिया है कि जिले के सभी मंदिरों में टौर के पत्तलों में लंगर परोसे जाएंगे. प्रथम चरण में इसकी शुरूआत तारा देवी मंदिर की जा रही है.

तारा देवी मंदिर (ETV Bharat)

हिमाचली संस्कृति का हिस्सा टौर के पत्तल

हिमाचली संस्कृति में धाम के दौरान लजीज व्यंजन परोसने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हरी पत्तल का महत्व सबसे ऊपर ह. धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समेटे देवभूमि हिमाचल के कई इलाकों में यह परंपरा आज भी जारी है. टौर के पत्तों से बनने वाली इस पत्तल में सामाजिक समरसता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है. पहाड़ों पर ये पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है. यह बेल मध्यम ऊंचाई वाले शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर जिले में ही पाई जाती है.

टौर के पत्तल की खूबियां

टौर की बेल कचनार परिवार से ही संबंधित है. इसमें कई औषधीय गुण युक्त तत्व पाए जाते हैं. इससे भूख को बढ़ाने में भी मदद मिलती है. टौर के पत्ते एक तरफ से मुलायम होते हैं, इसलिए इनका नैपकिन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. टौर के पत्ते शांतिदायक व लसदार होते हैं. जिसके कारण टौर के पत्तलों पर खाने का स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है. अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गढ्ढे में डलाने के बाद दो या तीन दिन के अंदर ही गल-सड़ जाते हैं. इसका इस्तेमाल लोग खेतों में खाद के तौर पर भी करते हैं.

टौर के पत्ते (ETV Bharat File Photo)

टौर के पत्तल से मिलेगा रोजगार

डीसी शिमला ने कहा कि टौर से बनी पत्तल पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत मददगार साबित होगी. इसके अलावा इससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा. सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन को बढ़ावा देने का उद्देश्य अन्य स्वयं सहायता समूहों को भी इस ओर प्रेरित करना है. हिमाचल प्रदेश में प्लास्टिक से बनी पतली, गिलास और चम्मच के उपयोग पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं.

टौर के पौधों का होगा पौधरोपण

सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने उपायुक्त को पत्तलों के उत्पादन के बारे में जानकारी दी और स्वयं बनाए पत्तल भी भेंट किए. फेडरेशन ने कहा कि सुन्नी खंड में टौर के पेड़ बहुत कम हैं. इस पर उपायुक्त ने कहा कि वन विभाग के सहयोग से आगामी होने वाले पौधारोपण अभियान में टौर के पौधे भी लगाए जाएंगे, ताकि भविष्य में टौर के पत्तों की कमी न हो पाए.

ये भी पढ़ें: हिमाचल की पारंपरिक पत्तलों पर चढ़ा आधुनिकता का रंग, ग्रामीण महिलाओं की हो रही चांदी

Last Updated : Jul 14, 2024, 12:33 PM IST

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