देहरादून: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने चारधाम यात्रा रूट पर लैंडस्लाइड मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (LMMC) की डिटेल्ड स्ट्डी में 55 क्रोनिक लैंडसाइड जोन चिन्हित किये हैं. इन सभी पर नभनेत्र वाहन के जरिए प्लान तैयार किया जाएगा, जिसके जरिये मानसून सीजन में इनके खतरे को देखते हुए ट्रैफिक मैनेज किया जाएगा.
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा रूट पर ऋषिकेश से लेकर चारों धामों तक के मार्ग पर पड़ने वाले सभी तकरीबन 55 ऐसे क्रॉनिक लैंडस्लाइड जॉन पर उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण स्टडी कर रहा है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन इन सभी लैंडस्लाइड पर साइंटिफिक स्टडी के जरिए डाटाबेस तैयार कर रहा है. साथ ही आपदा प्रबंधन का नवनेत्र वाहन के जरिए इन सभी लैंडस्लाइड की मैपिंग की जा रही है. इस पूरी स्टडी से एक इस तरह का डेटाबेस तैयार किया जाएगा. इससे बारिश की तीव्रता का लैंडस्लाइड पर पड़ने वाले असर की गणना की जाएगी. इस तरह से चिन्हित लैंडस्लाइड वाले क्षेत्र में हो रही बरसात के जरिए लैंडस्लाइड के जोखिम का पूर्वानुमान लगाया जाएगा.
अक्टूबर से शुरू हुआ इन्वेस्टिगेशन का काम:उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर निदेशक शांतनु सरकार ने बताया चारधाम यात्रा रूट पर किए जा रहे हॉटस्पॉट आईडेंटिफिकेशन इन्वेस्टिगेशन में ULMMC सभी लैंडस्लाइड जोन का इन्वेस्टिगेशन कर रही है. जिसमें से अभी फिलहाल 55 जोन को चिन्हित किया गया है. एक-एक कर के सभी लैंडस्लाइड के अलग-अलग पहलुओं पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है. उन्होंने बताया अक्टूबर माह से इस इन्वेस्टिगेशन की शुरुआत की गई है. इस इन्वेस्टिगेशन के तहत चारधाम यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी भूस्खलन को लेकर के एक डिटेल रिपोर्ट तैयार की जाएगी. जिससे आने वाले समय में मौसम को देखते हुए उनके खतरों कम किया जा सकेगा.
कैसे होती है लैंडस्लाइड जोन स्टडी: शांतनु सरकार ने बताया एक भूस्खलन क्षेत्र यानी लैंडस्लाइड जोन पर जब स्टडी की जाती है तो उसके कई अलग-अलग पहलू होते हैं. जिसमें देखा जाता है कि वह किस तरह का भूस्खलन है. वह रॉक टाइप का भी हो सकता है. सॉइल टाइप का भी हो सकता है या फिर वह सेमी टाइप का भी हो सकता है. इसके अलावा उसकी स्लाइड को देखा जाता है. सभी चीजों को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाती है. इस लैंडस्लाइड जोन की हजार्ड मैपिंग की जाती है. जिसमें यह देखा जाता है कि यह माइनर लैंडस्लाइड है या फिर मेजर लैंडस्लाइड. इसके स्लोप की डिग्री का आकलन भी किया जाता है. इन तमाम रिपोर्ट के आधार पर हेविंग की जाती है.