देहरादून:मजदूर, जितना मजबूर है उससे कई ज्यादा मजबूत है. यही कारण है कि तपती दोपहरी, बारिश, आंधी में भी ये मजदूर अपने काम से पीछे नहीं हटते हैं. मजदूर अपनी मेहनत से महीना चलाने की कोशिश में हर दिन कुआं खोदकर पानी निकालकर पीता है. मजदूर का हर एक दिन संघर्ष से भरा होता है. ऐसे ही संघर्षों को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ऐसे मेहनतकश मजदूरों के पास पहुंची. अपने घरों को छोड़कर हजारों मील दूर देहरादून पहुंचे इन मजदूरों ने ईटीवी भारत से अपना दर्द साझा किया. साथ ही मजदूरों ने अपनी परेशानियों को लेकर भी खुलकर बात की.
देहरादून में सुबह-सुबह लगता है मजदूरों का हुजूम: देहरादून शहर की अगर बात करें तो सुबह 7 बजे से लेकर के 10 बजे तक देहरादून के मुख्य चौराहा घंटाघर, रिस्पना पुल, धारा क्रॉसिंग जैसे चौराहों पर आपको डेली बेस पर मजदूरी करने वाले सैकड़ों मजदूरों का झुंड देखने को मिलेगा. अक्सर मजदूरों का यह झुंड उन लोगों को चौंका देता है जो अचानक किसी दिन सुबह जल्दी बाजार की तरफ निकलते हैं. देहरादून के रिस्पना पुल और घंटाघर पर सुबह 8 बजे मजदूरों की इतनी बड़ी भीड़ होती है कि यहां पर आम लोगों का चलना तक मुश्किल हो जाता है.
मजबूरी ले आती है बिहार से हजारों मील दूर: मजदूर दिवस के मौके पर हमने रिस्पना पुल पर मौजूद कुछ मजदूरों से बातचीत की. इन मजदूरों में से 90 फ़ीसदी से ज्यादा मजदूर बिहार के ग्रामीण इलाकों से पलायन कर यहां मजदूरी करने आए हैं. किसी मजदूर को यहां पर 5 साल से ज्यादा हो गया है तो कोई अभी-अभी गांव से आया है. बिहार से मजदूरों का यह पलायन बदस्तूर जारी है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मजदूरों ने अपनी मजबूरी का भी जिक्र किया. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कई मजदूरों ने अपनी गरीबी और बेबसी को अपनी मजबूरी बताया. उन्होंने कहा वह दो वक्त की रोटी कमाने के लिए अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर निकल आये हैं. इनमें से कई मजदूर बेहद कम उम्र के भी हैं. जिनकी उम्र पढ़ने लिखने की है. इस उम्र में वह अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर मजदूरी करने चले आए हैं.