किसानों के वारे न्यारे कर रहा लहसुन कोटा. कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी में रोज करीब 10 हजार क्विंटल लहसुन बिक्री के लिए पहुंच रहा है. यह एशिया की सबसे बड़ी लहसुन मंडी है, जिसमें किसानों को 10 से 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल का भाव भी मिल रहा है. इसके चलते लहसुन उत्पादक किसानों को प्रति बीघा 1 लाख तक का फायदा भी हो रहा है. दो साल पहले तक लहसुन उत्पादक किसान कम दामों के चलते परेशान था. कर्ज के बोझ के तले दबा हुआ जी रहा था, लेकिन हालात बदले. 2023 में किसानों को लहसुन के बंपर दाम मिलने शुरू हुए और आज किसानों को लहसुन के अच्छे दाम मिल रहे हैं.
17 हजार तक पहुंच गया था उच्चतम भाव : भामाशाह कृषि उपज मंडी कोटा की ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी का कहना है कि लहसुन की फसल किसानों के लिए वरदान है. करीब 7 साल पहले एसोसिएशन के जरिए इसे मसाले में कन्वर्ट करवाया गया था. इसके बाद ही इस कमोडिटी को कृषि उपज मंडी में भी बेचा जाने लगा है. एक बीघा में करीब 10 से 12 क्विंटल के आसपास लहसुन उत्पादित हो रहा है. हालांकि जब अच्छी पैदावार होती है, तब 17 से 18 क्विंटल तक भी पहुंच जाता है. वर्तमान में औसत दाम 10 से 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि उच्चतम भाव इस बार 17 हजार प्रति क्विंटल तक चला गया है. सबसे निचला दाम भी 8000 रुपए प्रति क्विंटल ही रहा है.
इससे बढ़िया मुनाफा कहीं नहीं:अविनाश राठी का मानना है कि 10 बीघा में किसान ने लहसुन उत्पादन किया है तो वह 120 क्विंटल माल को प्राप्त करेगा. इसे बेचने से 12 से 15 लाख रुपए तक उसे मिल रहे हैं. इससे बढ़िया मुनाफा किसी भी फसल में नहीं मिलता है. लहसुन उत्पादक किसान वर्तमान में बड़े आनंद में है व काफी मजबूत हो गया है. किसान फिलहाल अपने घर का खर्च चलाने के लिए 10-12 क्विंटल लहसुन बेच रहे हैं, फिर इसके बाद सही भाव का इंतजार करने लगते हैं.
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साल भर डिमांड, सप्लाई कम :अविनाश राठी का यह भी कहना है कि लहसुन की एक खासियत है कि यह मसाला तो है, लेकिन सब्जी की तरह है. इसे स्टोर करके नहीं रखा जा सकता. कुछ दिन में यह खराब हो जाता है. इसका स्टॉक तभी किया जा सकता है, जब डिहाइड्रेशन करके लहसुन से पानी को सोख लिया जाए. ऐसा काफी कम जगह पर किया जा रहा है. लहसुन की डिमांड साल भर रहती है, लेकिन इसके मंडी में आने का पीरियड 7 से 8 महीने होता है. वर्तमान में डिमांड बनी हुई है व एक्सपोर्ट भी हो रहा है. इसीलिए सप्लाई के मुताबिक मांग ज्यादा है. इसके अलावा हर महीने इसकी रिक्वायरमेंट रहती है, डिमांड और सप्लाई के प्रेशर के चलते हुए दाम अच्छे बने हुए हैं. इस बार लहसुन का उत्पादन कम हुआ है, जिसके चलते मांग पूरे साल बनी रहेगी.
लहसुन खत्म कर रहा किसानों की दरिद्रता :अविनाश राठी का कहना है कि 2 से 3 महीने बाद लहसुन धीरे-धीरे शॉर्टेज में चला जाएगा, जिससे लहसुन में तेजी की संभावना और ज्यादा रहेगी. इसका एक्सपोर्ट रेगुलर हो रहा है. लहसुन हाड़ौती के किसानों के लिए एक वरदान के रूप में है. लहसुन से साल 2022 में जो किसानों को परेशानी हुई थी, उसकी सारी दरिद्रता को इस साल का उत्पादन खत्म कर देगा.
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चार लाख के खर्चे में 20 लाख का उत्पादन :बारां जिले के कुंजेड निवासी विजेश कुमार मालव ने 15 बीघा क्षेत्र में लहसुन की फसल का उत्पादन किया था. उनके करीब 10 क्विंटल प्रति बीघा से ज्यादा का लहसुन उत्पादित हुआ है. वह मंडी में एक बार आकर अपना माल बेच चुके हैं, अभी लहसुन निकालने का काम जारी है. मंडी में 7.5 क्विंटल माल उन्होंने बेचा है. इस लहसुन का 12,900 प्रति क्विंटल के भाव में राशि उन्हें मिली है. उनका कुल उत्पादन करीब 150 क्विंटल के आसपास है. करीब 20 लाख रुपए की फसल उन्होंने उगाई है, खर्चा 4 लाख के आसपास हुआ है.
पहले से दूसरी बार में ही बढ़ा 1 हजार रुपए भाव :लहसुन को निकाल कर मंडी में लाने में काफी समय लगता है, क्योंकि लहसुन की एक गांठ को काट कर पहले साफ किया जाता है. ऐसे में किसान कई टुकड़ों में अपनी फसल को बेचने के लिए पहुंचता है. बढ़ते हुए दाम से लगातार किसानों को फायदा भी हो रहा है. ऐसा ही झालावाड़ जिले के भीमपुरा (मरायता) निवासी विक्रम कुमार सेन के साथ भी हुआ है. वे कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी में दो बार लहसुन आकर बेच चुके हैं. उनका कहना है कि 14 बीघा में उन्होंने लहसुन किया था, करीब 9.5 क्विंटल प्रति बीघा का उत्पादन हुआ है. इस बार लहसुन उगाने में उनका 25,000 रुपए प्रति बीघा का खर्चा बैठा है, जबकि उन्होंने पहली बार 10,500 और दूसरी बार 11,500 रुपए प्रति क्विंटल में अपना माल बेचा है. उनका पूरा लहसुन करीब 15 लाख के आसपास के मुनाफे में बैठेगा, जबकि इसको उगाने में करीब चार लाख का खर्चा बैठा है.