रांचीः राजधानी का बड़ा तालाब इन दिनों चर्चा में है. इसकी वजह है तालाब के पानी से आ रही बदबू. आसपास के लोगों ने जब विरोध प्रदर्शन किया तो नगर निगम के स्तर पर ब्लीचिंग डालकर दुर्गंध को दूर करने की फौरी कोशिश की गई, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिखा. रांची नगर निगम अब वाटर का ट्रीटमेंट कराने के लिए दूसरे राज्यों में किए गये पहल का डाटा कलेक्ट कर रहा है.
छत्तीगसगढ़ के अम्बिकापुर के लैब साइंटिस्ट डॉ प्रशांत शर्मा द्वारा बैक्टिरिया और फंगस को मिलाकर तैयार कंसोर्टिया को वैसे तालाबों में डालने से पानी की गुणवत्ता पर पड़ रहे सकारात्मक प्रभाव की खबर ईटीवी भारत द्वारा चलाए जाने पर नगर निगम के संयुक्त आयुक्त ने डॉ प्रशांत शर्मा से संपर्क कर उनसे रिपोर्ट मांगी है.
इस मामले पर झारखंड हाईकोर्ट भी गंभीर है. कोर्ट की फटकार के बाद रांची नगर निगम की नींद खुली है. इस दिशा में पहल भी शुरु हो गई है. लेकिन सवाल है कि क्या राज्य के दूसरे जिलों के प्रमुख तालाबों की स्थिति ठीक है. क्या अलग-अलग जिलों के प्रमुख तालाबों की देखरेख हो रही है. क्या वहां का पानी नहाने लायक है. इन सवालों की पड़ताल के दौरान ईटीवी भारत को कहीं से सुकून देने वाले तो कहीं से परेशान करने वाली तस्वीरें दिखीं.
झारखंड के प्रमुख तालाबों का हाल बेहाल
रांची जिला से सटे खूंटी में एकमात्र सरकारी तालाब है. इसका नाम है एसडीओ तालाब. लाखों खर्च करने के बाद यह तालाब अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. सदर अस्पताल का गंदा पानी जाने से तालाब का पानी खराब हो चुका है. तालाब के किनारे बनी सीढ़ियां जर्जर हाल में हैं, इस तालाब के किनारे नगर पंचायत, जिला परिषद, कृषि विभाग, भूमि संरक्षण विभाग, एसपी आवास के अलावा कई सरकारी कार्यालय हैं, लेकिन इस तालाब की दुर्गति किसी को नजर नहीं आ रही है.
रामगढ़ के बिजुलिया तालाब की स्थिति भी बेहद खराब है. यहां मछली पालन होता है. छठ पूजा होती है. फिर भी यहां बड़े नाले का पानी गिरता रहता है. इस तालाब के पानी से भी बदबू आती है. रामगढ़ के थाना चौक के पास के बड़ा तालाब की स्थिति ऐसी है कि दुर्गंध की वजह से वहां से गुजरना दुभर हो जाता है.
गिरिडीह में मशहूर है मानसरोवर तालाब. लेकिन इस तालाब में जलकुंभी भरी हुई है. लोग कूड़ा-कचरा डालते हैं. फिलहाल इसकी सफाई की जा रही है. लेकिन समय के साथ यह तालाब सिमटता जा रहा है.
लातेहार जिला मुख्यालय में है मत्स्य तालाब. इस तालाब का सौदर्यीकरण भी किया गया था. फिर भी बदहाल स्थिति में है. इस तालाब के पानी का कोई उपयोग नहीं हो पाता है.
सरायकेला के आदित्यपुर शहरी क्षेत्र में तीन प्रमुख तालाब थे. अब ये तालाब गायब हो चुके हैं. इन तालाबों की जगह बड़े-बड़े इमारत बन गये हैं. जहां ये तालाब थे वहां तीन अपार्टमेंट्स और एक निजी यूनिवर्सिटी बन गई है.
साहिबगंज में 85 अमृत सरोवर का निर्माण कराया गया था. पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार भी कराया गया. लेकिन ज्यादातर अमृत सरोवर में पानी नहीं है. तालाब के चारों ओर पौधे लगाए गये थे जो सूख चुके हैं. बरहेट के हरिशचंद्रपुर गांव के अमृत सरोवर की तस्वीर खुद सच्चाई बयां कर रही है.
राज्य की उपराजधानी दुमका शहर के बीचों बीच है बख्शी बांध तालाब. जलकुंभी की वजह से पता ही नहीं चलता कि यह तालाब भी है. इसके आसपास कई खटाल हैं. इस तालाब में गंदा पानी गिरता है. इसके जीर्णोद्धार के लिए नगर परिषद ने 25 लाख रु. खर्च किए. फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ.
जामताड़ा की संस्कृति का हिस्सा रहा है तालाब. यहां कई तालाब हैं. लेकिन यहां के सबसे चर्चित सरकार बांध तालाब की हालत दयनीय है. इस तालाब में गंदगी का अंबार है. यहां का नगर पंचायत और जनप्रतिनिधि इसके रखरखाव को लेकर संवेदनहीन बने हुए हैं.