अजमेर :शहर के कायस्थ मोहल्ले में स्थित बिजासन माता का मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो न केवल शहरवासियों के लिए बल्कि आसपास के जिलों के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है. यह मंदिर 16वीं शताबदी में स्थापित किया गया था और इसकी विशेषता यह है कि यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है. इसके बजाय, यहां सात छोटे-छोटे खंभे गोल घेरे में स्थित हैं, जिन्हें सात बहनों के रूप में पूजा जाता है. मंदिर में आने वाले लोग इन खंभों की पूजा करते हैं और मानते हैं कि इन खंभों के रूप में देवी की सात शक्तियां विराजमान हैं. बीजासन माता का मंदिर लकवाग्रस्त और बीमार बच्चों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां माता के जल का सेवन करने और लच्छा बांधने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है.
बीजासन माता का ऐतिहासिक महत्व :मंदिर समिति के पदाधिकारी सुनील माथुर बताते हैं कि बीजासन माता के मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प और ऐतिहासिक घटना है, जो इस मंदिर के महत्व को और बढ़ाती है. मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा की तबियत खराब हो गई थी. तमाम इलाजों के बाद भी वह ठीक नहीं हो पा रही थीं. तब किसी ने शाहजहां को बीजासन माता के मंदिर के बारे में बताया और कहा कि इस मंदिर के जल से उसे आराम मिल सकता है. शाहजहां अपनी बेटी को लेकर इस मंदिर में आए और यहां का जल पिलाया और लच्छा बांधने के बाद उनकी बेटी पूरी तरह से स्वस्थ हो गई. इस चमत्कारी घटना के बाद शाहजहां ने मंदिर के चबूतरे पर मकराना के संगमरमर से निर्माण कार्य करवाया, और वह संगमरमर आज भी मंदिर के चबूतरे पर मौजूद है. यह घटना इस मंदिर की महिमा और महत्व को दर्शाती है और इसे एक शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित करती है.
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मंदिर की स्थापना और कायस्थ समाज का योगदान :सुनील माथुर ने बताया कि बीजासन माता के मंदिर की स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है. 16वीं शताबदी में अजमेर में कायस्थ समाज का बसेरा ढाई दिन के झोपड़े क्षेत्र में था. यहां समाज के एक बुजुर्ग को स्वप्न में बीजासन माता के दर्शन हुए. माता ने उन्हें आदेश दिया कि इस स्थान पर मंदिर बनाया जाए. इसके बाद कायस्थ समाज के बुजुर्गों ने बड़ के पेड़ के नीचे इस मंदिर का चबूतरा बनवाया. समय के साथ यह मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया, और कई वर्षों तक यहां कोई छत नहीं थी. हालांकि, एक दशक पहले मंदिर के चारों ओर सुरक्षा के लिए जालियां लगाई गईं और अब यह मंदिर पूरी तरह से संरक्षित है.
आरती का विशेष महत्व और श्रद्धालुओं की आस्था :मंदिर में हर दिन श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते हैं और विशेष रूप से शाम के समय होने वाली आरती का बहुत महत्व है. इस आरती में भाग लेने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. बीमार, लकवाग्रस्त और अस्वस्थ लोग यहां आकर माता के जल का सेवन करते हैं और लच्छा बांधते हैं, जिससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिलता है. कई श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है. 20 वर्षों से इस मंदिर में आ रही श्रद्धालु इंद्रा बताती हैं कि यहां आने से उनके बीमार बच्चों को स्वस्थ्य लाभ मिला है और उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई हैं.