देहरादून: मातृत्व सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व (National Safe Motherhood) दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित प्रेग्नेंसी, प्रसव और प्रसव के दौरान होने वाली परेशानियों के बारे में जागरूक करना है. जिससे प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं तमाम सावधानियां बरत सकें. दरअसल, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर में हर साल हजारों की संख्या में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत हो जाती है. कई बार लोगों में जागरूकता की कमी होने के चलते अस्पतालों में डिलीवरी करने की बजाय घर पर ही प्रसव कराया जाता है, जिसका खामियाजा बाद में परिजनों को भुगतना पड़ता है.
भारत में 2003 में मनाया गया था पहला राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस:बता दें कि 11 अप्रैल 1987 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुरक्षित मातृत्व पहल को लांच किया था. दरअसल, व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया के अनुरोध पर साल 2003 में पहली बार इस दिवस को मानने की शुरुआत भारत में हुई थी. जिसके बाद हर साल 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाते हैं. सुरक्षित मातृत्व पहल यानी एसएमआई को लांच करने की मुख्य वजह सुरक्षित और प्रभावी मातृ और नवजात देखभाल को बढ़ावा देने के साथ-साथ दुनिया भर में मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करना था.
महिलाओं को पोषण युक्त भोजन की दी जाती है जानकारी:राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के अवसर पर हर साल केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसके तहत शहर, गांव और कस्बों में स्वास्थ्य विभाग की टीम जाकर गर्भावस्था, प्रसव और डिलीवरी के बाद महिलाओं की अधिक देखभाल की जरूरत क्यों होती है, इसकी जानकारी देती है. साथ ही क्या कुछ सावधानियां बरतनी होती है, जांच कितनी जरूरी होती है, पोषण युक्त भोजन का इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण होता है, इसकी भी जानकारी दी जाती है.
पर्वतीय क्षेत्रों में घर पर होते हैं प्रसव:देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोग आज भी संस्थागत प्रसव के बजाय घर पर ही प्रसव कराते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से इस व्यवस्था में भी बदलाव देखा जा रहा है, क्योंकि जिस तरह से लोगों में जागरूकता फैली है. ऐसे में अब लोग बढ़-चढ़कर गर्भावस्था के दौरान न सिर्फ जांच को काफी तवज्जो देते हैं, बल्कि संस्थागत प्रसव पर भी जोर देते हैं, लेकिन अभी भी ऐसे तमाम ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां गर्भावस्था के दौरान महिलाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. खासकर अगर उत्तराखंड राज्य की बात करें तो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों पर तमाम सुविधाएं न होने के चलते गर्भावस्था के दौरान घरों पर ही प्रसव किए जाते हैं.