टिहरी: मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के दिन यानी शारदीय नवरात्रि चल रही है. इसी बीच हम आपको मां सती के एक शक्तिपीठ मां चंद्रबदनी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. यह मंदिर समुद्रतल से 2,277 मीटर ऊपर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है. कहा जाता है कि चंद्रबदन होने से श्रद्धालु मां की मूर्ति के दर्शन नहीं करते हैं. पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां चंद्रबदनी की पूजा-अर्चना करते हैं. वहीं मान्यता है कि अगर जो श्रद्धालु मां की मूर्ति के दर्शन करता है, वह अंधा हो जाता है.
चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था मां सती का धड़:जब भगवान विष्णु ने मां सती के टुकड़े किए थे, तो मां सती का धड़ चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी मंदिर पड़ा. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस शक्तिपीठ की स्थापना की थी. चंद्रबदनी मंदिर का वर्णन केदारखंड के 141 वें अध्याय में मिलता है. चंद्रबदनी मंदिर में देवी मां का श्रीयंत्र है. ऊपर की ओर स्थित यंत्र हमेशा ढंका रहता है. मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर इस श्रीयंत्र के ऊपर चांदी का बड़ा छत्र है.
चंद्रबदनी मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की पूरी होती है मुराद:प्राचीन ग्रंथों में यहां का उल्लेख भुवनेश्वरी शक्तिपीठ नाम से है. शक्तिपीठ के गर्भगृह में काले पत्थर के श्रीयंत्र के दर्शन करने और पूजा में प्रयुक्त शंख का पानी पीने का बड़ा महत्व माना जाता है. महाभारत की एक कथा के अनुसार चंद्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था. चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरण करते हैं.