पटना :जननायक कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि हर वर्ष 17 फरवरी को मनाई जाती है. इस बार कर्पूरी ठाकुर की 37वीं पुण्यतिथि है. इस वर्ष आरजेडी उनकी पुण्यतिथि पटना के बाहर सीतामढ़ी के सोनबरसा में मनाने की तैयारी कर रही है. सवाल उठता है कि क्या भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि के बहाने आरजेडी विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा कार्ड का पासा फेंक रही है. क्या अपने पुराने राजनीतिक गढ़ में फिर से अपने जनाधार को मजबूत करने का प्रयास है?
''लोकसभा चुनाव से पहले जब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया गया तब से बिहार में उनके नाम को लेकर राजनीति की बेचैनी बढ़ गई है. कर्पूरी ठाकुर के नाम पर पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वोट बैंक का ध्रुवीकरण हो, यही कारण है कि सोनबरसा हो या मिथिलांचल का इलाका में यह कार्यक्रम किया जा रहा है. तिरहुत एवं मिथिलांचल में पिछले 10 वर्षों में आरजेडी की पकड़ बहुत कमजोर हो गई है.''- सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
RJD की तैयारी : इसी वर्ष बिहार विधानसभा का चुनाव होना है. सभी राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है. NDA अपने सभी घटक दलों के साथ सभी जिला में सम्मेलन कर रहा है. आरजेडी भी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है. यही कारण है कि तेजस्वी यादव पूरे बिहार के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए "कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद यात्रा" में निकले हैं.
विरासत के बहाने सियासत : बिहार की राजनीति के सभी समाजवादी नेता अपने आपको जन-नायक कर्पूरी ठाकुर का असली वारिस बताते रहे हैं. कई मौकों पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद खुद को कर्पूरी ठाकुर का असली वारिस बता चुके हैं. लालू प्रसाद कई सार्वजनिक मंचों से बता चुके हैं कि कर्पूरी ठाकुर ने अपना अंतिम सांस उनकी गोद में लिया था.
''गांधी और अंबेडकर को छोड़ दें तो राजनीतिक तौर पर से दो नाम बिहार में बहुत प्रचलित हैं, एक जेपी और दूसरा कर्पूरी ठाकुर. जो भी आज के नेता राज्य संभाल रहे हैं जो चर्चा में हैं, वह सभी कर्पूरी या जेपी की विरासत को ही राजनीतिक विरासत के तौर पर देखते हैं. ऐसे में बिहार में पिछड़ों एवं अति पिछड़ों के वोट बैंक को एकजुट करने के लिए फिर से उनके नाम पर सियासत शुरू हो गई है.''- सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
सोनबरसा से कर्पूरी का संबंध : आरजेडी कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि इस वर्ष सीतामढ़ी के सोनबरसा में मनाने की तैयारी कर रही है. जननायक कर्पूरी ठाकुर की अंतिम कर्मभूमि सीतामढ़ी की सोनबरसा की धरती रही. 1985 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर ने सीतामढ़ी के सोनबरसा विधानसभा (अब परिहार) से चुनाव लड़ने का फैसला किया था. 1985 में हुए विधानसभा में कर्पूरी ठाकुर सोनवर्षा विधानसभा से जीत दर्ज की थी. यह चुनाव उनके जीवन का अंतिम चुनाव था. विधायक रहते 17 फरवरी 1988 को कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था.
फुलपरास से भी रहा है संबंध : इससे पहले आरजेडी 24 जनवरी को उनकी 101 वीं जयंती मधुबनी के फुलपरास में मनाया था. फुलपरास से जननायक कर्पूरी ठाकुर का पुराना संबंध रहा है, 1977 में बिहार में जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ था. लोकसभा के सदस्य रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया. मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा के सदस्य बनने के लिए फुलपरास से ही उपचुनाव लड़ा था. देवेंद्र प्रसाद यादव ने उनके लिए इस्तीफा दिया था.
आरजेडी का अति पिछड़ा वोट पर नजर : विधानसभा चुनाव को लेकर आरजेडी अभी से पिछड़ा और अतिपिछड़ा वोट को साधने की तैयारी में जुट गई है. यही कारण है कि कर्पूरी ठाकुर की जयंती और पुण्यतिथि के बहाने अति पिछड़ा वोट को अपने पाले में लाने की तैयारी में आरजेडी जुटी हुई है.
आबादी का 63% हिस्सा : बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग जदयू का वोटबैंक माना जाता है. 2023 को जारी बिहार सरकार की बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण 2022 रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की 13.07 करोड़ आबादी में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 36.01 प्रतिशत है. ओबीसी, ईबीसी मिलकर बिहार की कुल आबादी का 63% हिस्सा है. यही कारण है कि आरजेडी की नजर इस वोट बैंक पर है.
लोकसभा में पिछड़ा/अतिपिछड़ा कार्ड : 2024 लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास किया. बिहार की 40 लोकसभा सीट में आरजेडी ने आधे दर्जन से अधिक कुशवाहा उम्मीदवार अपने गठबंधन से दिया था. आरजेडी से अपने हिस्से की 23 सीट में 8 सीट यादव, 3 कुशवाहा, 3 अतिपिछड़ा, 3 सीट पर दलित, 1 पर वैश्य, दो सीट पर अल्पसंख्यक और दो सीट पर सवर्ण उम्मीदवारों को खड़ा किया था.
पुराने गढ़ को साधने का प्रयास : जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती और पुण्यतिथि के बहाने राष्ट्रीय जनता दल अपने पुराने राजनीतिक गढ़ को फिर से मजबूत करने की तैयारी में जुट गई है. मिथिलांचल एवं तिरहुत क्षेत्र कभी आरजेडी के व्यापक प्रभाव होता था. 1990 के 2000 तक यह क्षेत्र राष्ट्रीय जनता दल का मजबूत गढ़ हुआ करता था. अधिकांश सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवारों का कब्जा रहता था.