कानपुर: अक्सर ऐसा होता है कि जब हम किसी सार्वजनिक स्थान, ऑफिस या किसी समारोह में होते हैं तो छींक आने पर उसे दबाने की कोशिश करते हैं. ऐसा करने पर मुंह बंद कर लेते हैं, जिससे दूसरों का ध्यान हमारी तरफ न जाए. डॉक्टरों की मानें तो ये बेहद खतरनाक है. इससे मुंह से निकलकर कान तक जाने वाली नली पर असर पड़ता है. यहां तक कि सुनने की भी समस्या हो सकती है. कानपुर शहर के लाला लाजपत राय अस्पताल के ईएनटी विभाग में रोजाना 50 ऐसे मरीज आए, जिनको कान के पर्दे की समस्या या सुनने को लेकर दिक्कत सामने आई है. अस्पताल की डॉक्टर अमृता श्रीवास्तव मरीजों को इलाज के साथ ही कई तरह की सावधानियां बरतने को कहती हैं. आइए जानिए कैसे एक सामान्य सी समस्या एक बड़ी परेशानी की बन जाती है वजह.
कैसे एक छींक बन जाती है बड़ी परेशानी:एलएलआर अस्पताल में ईएनटी विभाग में लगातार ऐसे मरीज सामने आ रहे हैं, जिनकी काउंसलिंग में यह बात सामने आई कि छींक आने पर उन्होंने दबाने का प्रयास किया. इससे उनके कान के पर्दे पर दबाव पड़ा. डॉ.अमृता बताती हैं कि सर्दी जुकाम या अन्य कारणों से छींक आना सामान्य लक्षणों में शामिल है. लेकिन कई बार अधिकतर लोग छींकते नहीं हैं और छींक मुंह के अंदर रोक लेते हैं. इससे वहां एक पॉजिटीव प्रेशर बन जाता है और फिर समस्या कान के पर्दे तक पहुंच जाती है. मुंह के अंदर से ही एक नली कान के पर्दे तक पहुंचती है. ऐसे में जब मुंह के अंदर हवा भर जाती है तो नली पर दबाव पड़ता है और कान का पर्दा फट जाता है.
ओपीडी में रोज 50 से ज्यादा मरीज: अस्पताल में हर हफ्ते 6 ओपीडी होतीं हैं. हर ओपीडी में औसतन 50 से अधिक मरीज ऐसे मिले जिन्हें पिछले एक साल से कान से जुड़ी समस्या थी. मरीजों में हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. अक्सर होता यह है कि एलर्जी या धूल के कारण छींके लगातार आती हैं. इसके अलावा सर्दी-जुकाम में भी छींक आना सामान्य बात है. डॉक्टरों के मुताबिक लोग या तो छींक रोकते हैं, या फिर खुद ही इलाज करने लगते हैं. यही परेशानी बढ़ा देती है. डॉ.अमृता के मुताबिक सर्दी-जुकाम होने पर मरीज को फौरन ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना है कि छींक को रोकना नहीं है. मरीजों को ऐसी स्थिति में एंटी एलर्जिक दवाओं का प्रयोग डॉक्टर से पूछकर करना चाहिए.