देहरादून: उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, लेकिन प्रकृति ने राज्य को तमाम अनमोल तोहफों से नवाजा है. जिसमें प्रदेश की खूबसूरत वादियां, नदियों समेत उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जड़ी-बूटियां शामिल हैं. ऐसा ही एक पहाड़ी फल काफल है, जो ना सिर्फ उत्तराखंड का पारंपरिक फल है, बल्कि ये तमाम औषधीय गुणों के चलते कई बीमारियों की औषधि भी है. प्रदेश के जंगलों में हुई वनाग्नि की घटना के चलते काफल के उत्पादन पर बड़ा फर्क पड़ा है, जिसके चलते काफल के दामों में बढ़ोतरी देखी गई.
400 रुपए प्रति किलो बिक रहा काफल:उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से न सिर्फ हजारों हेक्टेयर वन संपदा जलकर खाक हो गई है, बल्कि उत्तराखंड के लोकप्रिय फल काफल के पेड़ों को भी बड़ा नुकसान पहुंचा है. जंगलों में लगी आग के चलते काफल के उत्पादन में भले ही गिरावट आई हो, लेकिन काफल के रेट ने आग लगा दी है. 200 से 300 रुपए प्रति किलो बिकने वाला काफल वर्तमान समय में 400 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है. गर्मियों के सीजन में मिलने वाला यह काफल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है. यही वजह है कि महंगे दामों में बिक रहे काफल का लोग खूब इस्तेमाल कर रहे हैं.
उत्तराखंड राजकीय फल है काफल:उत्तराखंड का एक सर्वाधिक लोकप्रिय गीत "बेडू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला" में भी काफल का जिक्र किया गया है. ये पहाड़ी फल, पहाड़ों में होने वाला एक जंगली फल है. ये फल गहरे लाल रंग का होता है. साथ ही इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है. काफल का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेंटा है. इस पहाड़ी फल में तमाम औषधीय गुण होने से इसे उत्तराखंड के राजकीय फल का दर्जा भी प्राप्त है. काफल सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि, हिमाचल प्रदेश समेत नेपाल में भी पाया जाता है.