धनबाद: जेल में बंद कैदियों को उनके अपराधों के आधार पर रखने का प्रावधान है. लेकिन क्या धनबाद जेल में बंदियों को जातिगत आधार पर अलग-अलग या वर्गीकृत रखा जाता है? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसकी जांच के लिए धनबाद के न्यायिक पदाधिकारी, जिला प्रशासन की हाई लेबल टीम प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी के नेतृत्व में धनबाद जेल पहुंची.
धनबाद जेल की जांच के बाद जानकारी देते हुए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी ने कहा कि जेलों में सुधार और पुनर्वास का केंद्र होनी चाहिए न कि भेदभाव और असमानता का! जातिगत वर्गीकरण जैसे मुद्दों पर सतर्क निगरानी और कठोर कार्रवाई जरूरी है ताकि भारतीय संविधान के सिद्धांतों का पालन हो सकें. उन्होंने बताया की कुछ रिपोर्ट और सामाजिक संगठनों द्वारा यह आशंका जताई गई थी कि जेलों में जातिगत भेदभाव हो सकता है. ऐसा कहा जाता है कि बंदियों के बीच झगड़े, विवाद, और सांप्रदायिक तनाव को कम करने के नाम पर, उन्हें जाति या समुदाय के आधार पर अलग-अलग बैरकों में रखा जाता है.
इन सारे कयासों के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले पर सुनवाई की थी और 31 अक्टूबर 2024 को आदेश पारित किया था. उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कैदियों का पुनर्वास और सुरक्षा है. हालांकि यह सुनिश्चित करना प्रशासन की जिम्मेदारी है कि कैदियों के साथ समानता और मानवाधिकारों का पालन हो. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस बात की जांच करने टीम धनबाद जेल पहुंची थी. धनबाद जेल में ऐसी कोई अनियमितता नहीं मिली.
वहीं जानकारी देते हुए न्यायाधीश सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकारी राकेश रोशन ने बताया कि सामाजिक संस्था सुकन्या बनाम भारत सरकार के मामले में (रिट पिटीशन संख्या 1404/23) में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह बात रखी गई की इस बात की जांच हो की क्या जेलों में बंदियों को जातिगत वर्गीकरण के आधार पर रखा जाता है. उनका कहना था कि अगर जातिगत भेदभाव हो रहा है तो यह संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन है. यह मुद्दा जेलों के पारदर्शिता और सुधार की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि सरकार इस पर निष्पक्ष जांच कराए और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी बंदी के साथ जातिगत भेदभाव न हो.