लखनऊ :हाई प्रोफाइल अवैध धर्मांतरण केस में अदालत में उपस्थित गवाह से जुमे की नमाज पढ़ने जाने का हवाला देकर मुस्लिम अधिवक्ता ने जिरह नहीं की थी. इस पर एनआईए/एटीएस कोर्ट के विशेष जज विवेकानन्द शरण त्रिपाठी ने टिप्पणी की थी. संबंधित अधिवक्ताओं के नमाज के लिए जाने पर न्याय मित्र नियुक्त करने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट की फटकार के बाद जज ने बिना शर्त माफी मांगी है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने विशेष जज के विरुद्ध सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जज ने धर्म के आधार पर एक समुदाय के साथ भेदभाव किया है.
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि अपनी पसंद और अपने मजहब के अधिवक्ता नियुक्त कर चुके अभियुक्तों की मर्जी के खिलाफ उनके लिए न्याय मित्र नियुक्त करना, धर्म के आधार पर भेदभाव है. यह संविधान के अनुच्छेद 15 का स्पष्ट उल्लंघन है. न्यायालय की इन टिप्पणियों के साथ जज को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के लिए दो दिनों का समय दिया है. मामले में आज (18 अप्रैल) को भी सुनवाई होनी है.
यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने मामले के एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस की याचिका पर पारित किया. विशेष जज की अदालत में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में मोहम्मद उमर गौतम समेत अन्य अभियुक्तों का विचारण चल रहा है. हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने 16 दिसंबर 2022 को आदेश दिया था कि उक्त मामले के विचारण की कार्रवाई एक वर्ष में पूरी की जाए, जिसके बाद विषेश जज ने प्रतिदिन सुनवाई प्रारम्भ की. 19 जनवरी 2024 को मामले में हाजिर गवाह से जिरह करने के लिए जब अदालत ने अधिवक्ताओं से कहा तो मुस्लिम अधिवक्ता नमाज के लिए जाने की बात कह कर चले गए.