रांची: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने की अब उल्टी गिनती शुरू होने वाली है. देश और झारखंड के एग्जिट पोल में भाजपा भारी बहुमत पाती दिख रही है. ऐसे में सबकी नजरें 04 जून 2024 को होने वाली मतगणना के नतीजों पर टिकी है. वहीं भाजपा के विरोध की राजनीति करने वाले विपक्षी दलों के नेताओं ने भाजपा के दो दशक पहले के उस जख्म को हरा करना शुरू कर दिया है.
राज्य निर्माण के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव हुए. उस समय के नतीजों को लेकर झामुमो और कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. एग्जिट पोल में हारती दिख रही कांग्रेस और झामुमो के नेता भाजपा को 2004 वाली स्थिति में लाने की बात कहकर एग्जिट पोल के आंकड़ें को कमजोर करने में लगे हैं.
आखिर, 2004 में ऐसा क्या हुआ था
ये सवाल जायज है कि आखिर 2004 के लोकसभा चुनाव में ऐसा क्या हुआ था. जिसको लेकर आज भी कांग्रेस-झामुमो और राजद के नेता बार बार भाजपा को 2004 को याद दिलाने से नहीं चूकते हैं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि 2004 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे को राष्ट्रीय पार्टी भाजपा का हर नेता भूल जाना चाहते हैं. इसकी वजह भी है.
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव 2004, झारखंड राज्य निर्माण के बाद हुआ यह पहला आम चुनाव था. भाजपा को उम्मीद थी कि 1998 और 1999 की तरह 2004 लोकसभा चुनाव में भी झारखंड में भाजपा बेहतर प्रदर्शन करेगी. उस समय देश में भारत उदय, इंडिया शाइनिंग का जोर था. इसके अलावा झारखंड राज्य निर्माण का क्रेडिट लेने का उत्तराधिकार भाजपा के पास ही था.
जब राज्य की 14 लोकसभा सीट के नतीजे आये तो एक बड़ा और गहरा जख्म भाजपा को दे गया. इस बात को लेकर तंज कसकर आज दो दशक बाद भी कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों के नेता भाजपा पर निशाना साधने से नहीं चूकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि तब कोडरमा लोकसभा सीट से सिर्फ बाबूलाल मरांडी ने ही भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी बाकी सभी 13 सीटों पर भाजपा और एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा था.
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह बताते हैं कि 2004 लोकसभा चुनाव में हजारीबाग से उस समय के केंद्रीय मंत्री रहे भाजपा प्रत्याशी यशवंत सिन्हा, खूंटी से दिग्गज भाजपा नेता कड़िया मुंडा, धनबाद से रीता वर्मा, गोड्डा से राज्य के शिक्षा मंत्री रहे भाजपा उम्मीदवार प्रदीप यादव की भी हार हो गयी थी.
2004 में झारखंड की 13 सीटों पर यूपीए और लेफ्ट की जीत हुई थी