रांची:झारखंड में छठे विधानसभा के गठन के लिए चुनाव होने जा रहा है. 15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में पांचवां चुनाव हो रहा है. पिछले 24 वर्षों में राज्य ने कई राजनीतिक उतार चढ़ाव देखे हैं. 2014 के चुनाव से पहले किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने की वजह से यह राज्य अस्थिरता के दौर से जूझता रहा.
पहली बार 2014 में रघुवर दास के नेतृत्व में एनडीए की बहुमत की सरकार बनी. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भी बनाया. 2019 के चुनाव में दूसरी बार हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार को बहुमत मिला. तब से सत्ता की कमान हेमंत सोरेन के हाथ में. 31 जनवरी को उनकी गिरफ्तारी के बाद चंपाई सोरेन को सत्ता की कमान मिली थी. लेकिन जेल से बाहर आते ही हेमंत सोरेन ने दोबारा सीएम की कुर्सी संभाल ली.
2019 चुनाव के आंकड़े (ईटीवी भारत)
2019 के चुनाव में क्या था सीटों का समीकरण
इस चुनाव में तत्कालीन रघुवर सरकार ओवर कॉन्फिडेंस की शिकार हुई थी. भाजपा का आजसू से तालमेल नहीं बना था. दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. भाजपा ने 79 और आजसू ने 53 सीटों पर ताल ठोका था. जबकि झामुमो, कांग्रेस और राजद ने एकजुट होकर बाजी पलट दी थी. झामुमो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 81 सदस्यों वाले झारखंड विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों की जरुरत होती है.
वर्तमान में सीटों का समीकरण (ईटीवी भारत)
किस पार्टी की कितनों सीटों पर जमानत हुई थी जब्त
झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन को 47 सीटें मिलीं. भाकपा माले और एनसीपी के समर्थन से सरकार को 49 विधायकों का समर्थन रहा. खास बात है कि 2019 के चुनाव में टीएमसी के सभी 26 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. बसपा के 66 में 63 उम्मीदवार जमानत गंवा बैठे थे. सीपीआई के सभी 18 और सीपीएम के सभी 09 उम्मीदवारों की भी जमानत जब्त हुई थी. इसके अलावा जेवीएम के 81 में से 76, जदयू के सभी 45, लोजपा के सभी 33 और एआईएमआईएम के सभी 16 उम्मीदवारों ने जमानत गंवा दी थी.
गौर करने वाली बात है कि राज्य की प्रमुख पार्टियों ने भी कई सीटों पर जमानत गंवाई थी. इनमें भाजपा के 06, कांग्रेस के 06, झामुमो के 04, आजसू के 37 और राजद का एक प्रत्याशी शामिल था.
2019 के रिजल्ट के बाद बदलता रहा समीकरण
2019 के चुनावी नतीजों और सरकार बनने के कुछ माह बाद ही जेवीएम में टूट हो गई. बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करा दिया. जबकि जेवीएम विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गये. इस टूट से हेमंत सरकार को और मजबूती मिली. कांग्रेस विधायकों की संख्या 16 से बढ़कर 18 हो गई. बाद के दिनों में मधुपुर के झामुमो विधायक हाजी हुसैन अंसारी के निधन, डुमरी से झामुमो विधायक जगरनाथ महतो के निधन, बेरमो के कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह के निधन, मांडर में कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता रद्द होने, रामगढ़ में कांग्रेस विधायक ममता देवी को सजा, दुमका सीट से हेमंत सोरेन का इस्तीफा, गांडेय से झामुमो विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे की वजह से उपचुनाव हुए. इसकी वजह से कांग्रेस अपनी रामगढ़ सीट गंवा बैठी. यहां आजसू की जीत हुई. शेष सभी सीटों को संबंधित दलों ने दोबारा जीत लिया.
फिर लोकसभा चुनाव के दौरान चाईबासा सीट जीतने पर झामुमो की जोबा मांझी का मनोहरपुर से इस्तीफा, नलिन सोरेन के दुमका से झामुमो सांसद बनने पर शिकारीपाड़ा सीट से इस्तीफा, जामा से झामुमो विधायक सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने, मांडू से भाजपा विधायक जेपी पटेल के कांग्रेस में जाने, बाघमारा के भाजपा विधायक ढुल्लू महतो के धनबाद से भाजपा सांसद बनने और हजारीबाग के भाजपा विधायक मनीष जयसवाल के हजारीबाग से भाजपा सांसद बनने पर भी सीटों का समीकरण बदल गया.
वर्तमान में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार चल रही है. अब यह इंडिया गठबंधन का रूप ले चुका है. इस गठबंधन में भाकपा माले भी शामिल है. दूसरी तरफ एनडीए में भाजपा, आजसू, जदयू एक साथ है. लोजपा (रामविलास) को भी जोड़ने की कवायद चल रही है. एनडीए ने माटी, रोटी, बेटी को मुद्दा बनाया है तो इंडिया गठबंधन को कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ एकमुश्त मुस्लिम, ईसाई, आदिवासी वोट की आस है. दोनों गठबंधन अपने समीकरण सेट कर रहे हैं, ऐसे में ये कहना मुश्किल है कि किसी एक गठबंधन का पलड़ा भारी है.
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