जबलपुर :वैनगंगापुल बहने के मामले में चल रही विभागीय जांच को लेकर सोमवार कोजबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. विभागीय जांच में पेश की गई चार्जशीट को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि पुल के डीपीआर बनाने में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं थी, इसके बावजूद उसे भी आरोपी माना जा रहा है. इसपर हाईकोर्ट जस्टिस विनय सराफ ने पाया कि डीपीआर स्वीकार करने में याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर हैं, जिसपर एकलपीठ ने कहा है कि डीपीआर स्वीकार करने में हस्ताक्षर हैं, तो विभागीय जांच सही है.
क्या है वैनगंगा पुल बहने का मामला?
दरअसल, याचिकाकर्ता अजय सिंह रघुवंशी की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि वह मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड में कार्यपालन यंत्री के रूप में पदस्थ थे. साल 2020 में उन्हें पीआईयू 2 में महाप्रबंधक के पद पर पदस्थ किया गया. इस दौरान 2020 में अत्यधिक बारिश के चलते संजय सरोवर बांध से काफी पानी छोड़ा गया, जिससे बरबरपुर-सोनवारा मार्ग में स्थित वैनगंगा पुल बह गया था. इसकी जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया था, जिसमें बनी चार्जशीट में उन्हें भी दोषी माना गया.
याचिकाकर्ता को क्यों माना गया दोषी?
दरअसल, वैनगंगा पुल बहने के मामले में जांच कमेटी ने पाया कि 20 किलोमीटर दूर स्थित संजय सरोवर बांध से पानी छोड़ने के दौरा पर जल ग्रहण क्षेत्र की गणना गलत तरीके से की गई थी, जिसके लिए साल 2018 में डीपीआर तैयार करने वाले सलाहकार, पर्यवेक्षण सलाहकार, महाप्रबंधक जबलपुर व महाप्रबंधक सिवनी को दोषी माना गया.