जबलपुर।फर्जी आईएसबीएन पुस्तक तथा मनमानी फीस वृद्धि के मामले में स्कूल प्रबंधन से संबंधित व्यक्तियों तथा पुस्तक विक्रेताओं की जमानत याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है. हाईकोर्ट जस्टिस एम एस भट्टी की एकलपीठ ने सिर्फ 8 प्राचार्यों को जमानत का लाभ दिया है. जिसमें से 5 प्राचार्यों के खिलाफ दो प्रकरण दर्ज थे. हाईकोर्ट ने उन्हें प्राचार्य होने के कारण जमानत का लाभ प्रदान किया है. वहीं स्कूल की प्रबंधन समिति के सदस्य होने के कारण उनकी दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी है.
27 आरोपियों ने दायर की थी याचिका
बता दें कि शहर के 9 थाना क्षेत्रों में 11 प्रकरण दर्ज किये गये थे, जिसमें स्कूल के प्रबंधक,प्राचार्य तथा पुस्तक विक्रेताओं सहित 81 व्यक्तियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया था. इसमें आरोपियों की वास्तविक संख्या 51 थी. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये 27 आरोपियों ने जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थी. इसके अलावा कार्रवाई के खिलाफ 4 स्कूलों ने रिट याचिका भी दायर की थी. सभी याचिकाओं की सुनवाई संयुक्त रूप से की गई.
याचिकाकर्ताओं ने जमानत के लिए दिए थे ये तर्क
याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि वह प्राचार्य के पद पर पदस्थ थे. वह कर्मचारी हैं और नीतियां का निर्धारण प्रबंधन करता है. पूरे प्रकरण में उनकी कोई भूमिका नहीं है. कर्मचारी होने के बावजूद भी पुलिस ने उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया था. मध्य प्रदेश निजी विद्यालय अधिनियम 2017 में अधिक फीस वृद्धि के मामले में जुर्माने का प्रावधान है. आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने का कोई प्रावधान नहीं है. इधर गिरफ्तार किये गये पुस्तक विक्रेताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि पब्लिशर्स ने पुस्तकों की सप्लाई की थी. पब्लिशर्स की तरफ से सप्लाई की गयी पुस्तकों को वे बेचते थे. पुस्तकों के फर्जी आईएसबीएन नम्बर के संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.
सरकार की ओर से जमानत का किया गया विरोध
सरकार की तरफ से जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा गया कि स्कूल प्रबंधन तथा पुस्तक विक्रेता मिलीभगत कर एक्सपर्ट कमेटी के अनुमोदन के बिना प्रतिवर्ष पाठ्यक्रम में बदलाव कर देते थे. फर्जी आईएसबीएन नम्बर का उपयोग कर पुस्तकों का प्रकाशन करवाया जाता था. इसके अलावा स्कूल प्रबंधन के द्वारा अपनी ऑडिट रिपोर्ट में भी फर्जीवाड़ा किया गया है. पुलिस ने कुछ पब्लिशर्स के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज किया है. प्रकरण की जांच जारी है और अभियुक्तों को जमानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिये.