देहरादूनःउत्तराखंड के गैरसैंण में स्थित भराड़ीसैंण में विधानसभा का मॉनसून सत्र आहूत होने के बाद ही प्रदेश भर में एक बार फिर भू-कानून के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है. एक तरफ गैरसैंण में कई संगठनों की ओर से सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग की जा रही है तो दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी भू-कानून के मुद्दे को बल देने का प्रयास किया है. हाल ही में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि, कांग्रेस की सरकार आएगी तो सशक्त भू-कानून बनाया जाएगा. इसके बाद से ही प्रदेश भर में भू-कानून को लेकर चर्चाएं तेज होने लगी है.
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. दरअसल, साल 2000 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2002 प्रथम निर्वाचित सरकार ने भू-कानून लागू किया था. इसके बाद साल 2007 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-कानून को और अधिक सख्त कर दिया था. लेकिन, समय के साथ बढ़ती जरूरतों को देखते हुए भू-कानून में संशोधन किया जाता रहा. आलम ये है कि अब कानून के सरलीकरण के कारण राज्य आंदोलनकारी और विपक्षी दलों द्वारा सशक्त भू-कानून लागू करने की मांग की जा रही है. ऐसे में गैरसैंण में विधानसभा सत्र चल रहा है तो प्रदेश में सशक्त भू-कानून का मुद्दा चर्चाओं में आ गया है.
साल 2004 में जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में किया गया था संशोधन:उत्तर प्रदेश से अलग एक पर्वतीय राज्य बनाने की अवधारणा में भू-कानून का मुद्दा भी शामिल था. ऐसे में राज्य गठन के बाद ही प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग उठने लगी. जिसके चलते साल 2004 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 की धारा 154 में संशोधन किया था. इस संशोधन में ये प्रावधान किया गया कि जिसके पास 12 सितंबर 2003 से पहले अचल संपत्ति नहीं है, उसको कृषि या औद्यानिकी के लिए भूमि खरीदने के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी होगी. साथ ही नगर निगम क्षेत्र से बाहर, राज्य के बाहरी लोग सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीनें खरीदने का प्रावधान किया गया था. लेकिन भू-कानून की मांग कर रहे लोगों ने हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर ही उत्तराखंड में भू-कानून लागू करने की व्यवस्था पर जोर दिया था.
साल 2007 में भाजपा सरकार ने भू- कानून को किया और सख्त:प्रदेश में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर ही भू-कानून लागू करने की मांग को देखते हुए तत्कालीन सीएम बीसी खंडूड़ी ने बड़ा निर्णय लिया. जिसके तहत साल 2004 में उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 की धारा 154 में किए गए संशोधन में फिर संशोधन किया गया. इस संशोधन के अनुसार, नगर निगम परिधि से बाहर जमीन खरीदने की सीमा को 500 वर्ग मीटर से घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया. उस दौरान इस निर्णय के बाद सशक्त भू-कानून की मांग कर रहे लोगों ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन, इस दौरान ये मुद्दा भी उठा कि अगर इस तरह का सशक्त भू-कानून प्रदेश में लागू रहा तो उद्योगों को स्थापित करने में तमाम दिक्कतें हो सकती हैं.
उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 2018 में बंदिशों को किया गया समाप्त:साल 2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट से पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू-कानून के नियमों में एक बार फिर बड़ा संशोधन किया. जिसके तहत प्रदेश भर में जमीनों के खरीदने की बंदिशों को समाप्त करते हुए जमीनों को खरीदने की राह खोल दी थी. दरअसल, 6 अक्टूबर 2018 को तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने भू-कानून को लेकर एक नया अध्यादेश 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 में संशोधन का विधेयक' पारित किया. जिसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई. जिसके तहत, पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. इसके अलावा, उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) को भी समाप्त कर दिया था.
साल 2021 में सशक्त भू-कानून के लिए गठित की समिति:साल 2018 में जमीनों की खरीद फरोख्त में मिली छूट के बाद एक बार फिर राज्य में सशक्त भू-कानून को लेकर आवाज बुलंद होने लगी. जिसको देखते हुए साल 2021 में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सशक्त भू-कानून लागू करने के लिए समिति का गठन किया. पूर्व सीएस सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति में राजस्व सचिव ने साथ ही तमाम रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और वर्तमान में बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय को शामिल किया गया. भू-कानून के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति का उद्देश्य था कि जनहित और प्रदेश हित को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट तैयार करें.
भू-कानून के लिए गठित समिति ने 2022 में सौंपी रिपोर्ट:पूर्व सीएस सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने 5 सितंबर 2022 को अपनी फाइनल रिपोर्ट शासन को सौंप दी. समिति की ओर से सौंपी गई 80 पन्नों की रिपोर्ट में भू-कानून से संबंधित 23 सुझाव दिए गए थे. जिसमें मुख्य रूप से प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित खरीद-बिक्री के बीच संतुलन बनाने को कहा गया था. उस दौरान सीएम धामी ने इस बात को कहा था कि सरकार, समिति के सुझावों का अध्ययन करेगी. साथ ही जनहित और प्रदेश हित में समिति की ओर से दी गई संस्तुतियों पर विचार कर मौजूदा भू-कानून में संशोधन करेगी.