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पानीपत की शोभना ने कड़ी मेहनत से संवारा चार बच्चों का भविष्य, आज खुद का है इतना बड़ा कारोबार - International Women Day 2024

International Women Day 2024: अंतरष्ट्रीय महिला दिवस पर हम ऐसी महिला से आपको रूबरू करवा रहे हैं. जिन्होंने पति की मृत्यु के बाद न केवल परिवार को संभाला बल्कि दिन-रात मेहनत मजदूरी कर अपनी तीन बेटियों और बेटे को बुलंदियों पर पहुंचाया.

International Women Day 2024
International Women Day 2024

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Mar 7, 2024, 10:50 PM IST

Updated : Mar 8, 2024, 11:05 AM IST

शोभना के संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी

पानीपत: आज के समय में महिलाएं सिर्फ घर नहीं चलाती बल्कि देश और दुनिया की तरक्की में भी अपना लोहा मनवा रही है और महिलाओं के हौसला बढ़ाने के लिए, देश और दुनिया की तरक्की में योगदान के लिए उनकी सराहना करने के लिए ही इंटरनेशनल महिला दिवस मनाया जाता है. हर साल 8 मार्च का दिन इंटरनेशनल महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों को समर्पित है. इंटरनेशनल महिला दिवस 2024 में हम आपको ऐसी ही एक महिला की कहानी बताएंगे, जिनका पूरा जीवन संघर्ष करते हुए व्यतीत हो गया और संघर्ष से अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य भी लिख डाला.

शोभना की कहानी उन्हीं की जुबानी: ईटीवी भारत की टीम से बातचीत में शोभना ने बताया कि वह 1987 में केरल से पति के साथ हिसार के हांसी आई थी. गरीब परिवार से निकली शोभना पति के साथ बड़े सपने लेकर यहां पहुंची थी. लेकिन अनहोनी को कुछ और ही मंजूर था. जिसने शोभना को 35 साल की उम्र में ही पति से दूर कर दिया.

30 साल पहले शुरू हुआ जिंदगी का संघर्ष: शोभना ने बताया कि 1987 उनके पति हांसी में बिस्कुट की फैक्टरी में मशीन आपरेटर लगे. 1988 में बिस्कुट फैक्टरी के एक मालिक ने पानीपत में नया प्लांट लगाया. शोभना के पति को पानीपत नया प्लांट स्थापित करने के लिए भेज दिया. दीवान चंद ब्रदर्स के नाम से कुटानी रोड पर यह उद्योग स्थापित हुआ. 1994 में किडनी डैमेज होने के कारण शोभना के पति की मृत्यु हो गई. इस हादसे के बाद शोभना की जिंदगी पूरी तरह वीरान हो गई और शोभना पर अकेले ही परिवार का सारा बोझ पड़ गया.

साइकिल पर संघर्ष का सफर: शोभना बताती हैं कि उनके पास उस समय तीन बेटियां और 9 माह का एक बेटा था. उनके परिवार में सास-ससुर, रिश्तेदार, मां-बाप कोई नहीं था. अकेले ही शोभना ने संघर्ष शुरू किया. उस समय उनकी सहायता के लिए सामाजिक संगठनों ने मदद की. 1 साल तक असिस्टेंट लाइब्रेरियन की टेंपरेरी पोस्ट पर शोभना ने काम किया. उसके बाद पटवारी के नीचे क्लर्क का काम करने की जॉब मिली. वे पैदल ही सर्विस पर जाती थी. बाद में सनातन धर्म संगठन के पूर्व प्रधान टैक्स सलाहकार स्वर्गीय प्रमोद खेडा ने उन्हें एक साइकिल लेकर दी. आज भी शोभना के पास साइकिल है. वह साइकिल पर ही चलती हैं.

एक बार फिर शुरू से शुरूआत: शोभना ने गौशाला से गाय लेकर घरों में दूध बेचने का काम शुरू किया. फिर किसी व्यक्ति ने शोभना की 5 गाय को गुड़ में जहर मिलाकर खिला दिया. जिससे सभी गायों की मौत हो गई. शोभना ने फिर भी हार नहीं मानी, जिन घरों में शोभना दूध की सप्लाई करती थी. उन लोगो ने पैसे इकट्ठा कर एक गाय शोभना को दिलवा दी. शोभना ने फिर से मेहनत की ओर एक का दूध बेचकर पांच गायों को पालकर दोबारा दूध का व्यापार खड़ा कर दिया.

अपने बच्चों का भविष्य किया साकार: शोभना ने इसी तरह मेहनत करके अपने सभी बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया. वर्तमान में उनकी एक बेटी रेणु हरियाणा सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं. एक बेटी बिजली वितरण निगम में एलडीसी हैं. जबकि एक बेटी बड़े स्तर पर योग टीचर है. शोभना ने बेटे को टेक्सटाइल में बीटेक करवाई. बेटे के लिए शोभना ने अब अपनी टेक्सटाइल की फैक्टरी खोली है. इस उद्योग में टी-शर्ट, जैकेट बनाने का काम कर रही हैं. जिसकी ऑनलाइन सेल की जाती है. दो फैक्ट्री लगा ली है. एक यूनिट को वह स्वयं संभाल रही हैं.

मेहनत कल भी आज भी: शोभना ने बताया कि पटवारी के नीचे सर्विस के दौरान उसने साइकिल पर ही गांव-गांव जाकर सर्वे, बीपीएल सर्वे व अन्य स्कीमों के सर्वे के कार्य किए हैं. वर्तमान में एक्टिवा, कार उनके बच्चों ने खरीद ली है. लेकिन उसने अपने यादगार साइकिल को आज भी संभाल कर रखा हुआ है. साइकिल से ही वे चलती हैं. उन्होंने बताया कि संघर्ष के दौर में उनका बच्चों ने पूरा साथ दिया. मेहनत के साथ-साथ पढ़ लिख कर कामयाबी हासिल की. बच्चे मदर टेरेसा में रहे और वह अकेले ही संघर्ष करती रहीं. बाद में बच्चों को अपने साथ लाई बच्चों ने भी मां के संघर्ष को देखा और आज बच्चे भी उसी तरह मेहनत कर दूसरों की मदद करते हैं.

मेहनत से बदला समय का पहिया: शोभना की कड़ी मेहनत और लगन ने समय का ऐसा तख्ता पलट दिया कि जहां शोभना को कहीं कोई काम नहीं मिल रहा था आज उसी शोभना ने अपनी फैक्ट्री में लगभग 50 लोगों को काम दिया है. वह इसके साथ-साथ सामाजिक कार्य करती हैं और साथ ही गरीब महिलाओं और असहाय लोगों की मदद भी करती हैं. शोभना बताती हैं कि उसके घर बड़े कार्यक्रम के निमंत्रण आते हैं. पर वह खुद इन कार्यक्रम में नहीं जाती. बल्कि अपने बेटे को भेजती है. शोभना का कहना है कि अगर वह ऐसे प्रोग्राम में जाएंगी तो कहीं ना कहीं उसके अंदर घमंड जरूर आएगा. पर वह अपने पुराने दिन और पुराने संघर्ष को भूलना नहीं चाहती.

महिलाओं के लिए शोभना का संदेश: जो महिलाएं समय और हालात के सामने टूट जाती हैं, शोभना ऐसी महिलाओं के लिए मिसाल है. शोभना का कहना है कि महिलाओं को किसी भी हालत में हार नहीं माननी चाहिए. बल्कि नए सिरे से जिंदगी को शुरू करके एक नई शुरुआत करनी चाहिए. हर शाम का एक सवेरा जरूर होता है. बस जरूरत होती है हालातों से लड़ने की. फिर हार के बाद जो जीत मिलती है वो जिंदगी जीना सिखाती है. जिंदगी जीने का नाम है और इसे खुलकर जीना चाहिए, मेहनत करो संघर्ष करो जीवन में सफलता और निखार दोनों ही जरूर आएगा.

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Last Updated : Mar 8, 2024, 11:05 AM IST

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