देवास: जिले के खिवनी अभयारण्य वन परिक्षेत्र में बाघ के कुनबे ने चार चांद लगा दिये हैं. अभयारण्य परिसर में चार शावकों के साथ बाघ-बाघिन दिखाई दिये. बता दें कि बाघ युवराज और बाघिन मीरा ने अपने परिवार के साथ खिवनी अभ्यारणय को स्थायी निवास बना लिया है. वैसे तो कई वर्षों से कभी-कभी बाघ दिखाई देते रहे हैं, लेकिन पिछले एक वर्ष से बाघिन मीरा शावकों को पल भर के लिए अपनी आंखों से दूर नहीं होने दे रही है. ये चारों शावक बाघ-बाघिन के द्वारा किये गए शिकार को खाने भी लगे हैं. अभयारण्य प्रबंधन लगातार बाघ परिवार की निगरानी कर रहा है.
खिवनी अभयारण्य की शान शावक
रेंजर भीमसिंह सिसोदिया ने बताया कि, ''खिवनी अभयारण्य में बाघ युवराज एवं बाघिन मीरा से हुए 4 शावक खिवनी अभयारण्य की शान बढ़ा रहे हैं. इसके पहले से भी खिवनी में तीन बाघ नियमित रहते हैं और 3 अन्य बाघ भी अभयारण्य में आते-जाते रहते हैं. अभयारण्य प्रबंधन को उस समय खुश खबरी मिली जब गर्मी के मौसम में पानी के एक स्त्रोत के पास बाघिन दिन में शावकों के साथ दिखाई दी. इसके बाद रात के समय बाघ और बाघिन चारों शावकों के साथ जल स्त्रोत पर ट्रेप कैमरे में दिखाई दिए. अभयारण्य में 6 बाघों की उपस्थिति पूर्व से है और अब नए मेहमानों के आने के बाद प्रबंधन इनकी विशेष रूप से निगरानी कर रहा है.
तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा सहित कई वन्यप्राणी का आवास खिवनी
सभी शावक स्वस्थ हैं और बाघिन के साथ ही अभयारण्य में विचरण कर रहे हैं. लगातार बाघिन के साथ रहने और ट्रेप कैमरों के चलते प्रबंधन को पता चला कि एक शावक नर एवं तीन शावक मादा है. जिले के अंतिम छोर पर स्थित 134.77 वर्ग किलोमीटर में फैले अभयारण्य में भारत के राष्ट्रीय पशु एवं टाइगर स्टेट के घोतक बाघ का प्राकृतिक आवास है. यहां तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा, लोमड़ी, चीतल, नीलगाय, चौसिंगा, जंगली सुअर जैसे कई वन्यप्राणी प्राकृतिक आवास में रह रहे हैं.
जामनेर व बालगंगा नदी का उद्गम स्थल खिवनी अभयारण्य
साथ ही दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का घर भी खिवनी अभयारण्य है. यहां मप्र के राज्य पक्षी दूधराज सहित 155 प्रजाति के पक्षी निवास करते हैं. इनमें से कई पक्षी दुर्लभ प्रजाति के है. मालवा के पठार एवं विंध्याचल पर्वत मालाओं के मध्य बसा यह अभयारण्य देवास एवं सीहोर जिले में फैला हुआ है. नर्मदा की सहायक नदियां जामनेर व बालगंगा नदी का उद्गम स्थल भी अभयारण्य में है. अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1955 में मध्य प्रदेश के गठन के पूर्व तत्कालीन होलकर शासकों द्वारा वन्य वाणी संरक्षण के उद्देश्य से की गई थी.