प्रयागराज: महाकुंभ में देश दुनिया से रोजाना लाखों श्रद्धालु आ रहे हैं और आस्था की डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना कर रहे हैं. इन श्रद्धालुओं में कई ऐसे भी होते हैं जिनको महाकुंभ की आभा अपनी ओर खींच लाती है. उनमें से कुछ अलग धर्म और संप्रदाय से भी होते हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं ताइक्वांडो के अंतरराष्ट्रीय कोच और द डायरी ऑफ मणिपुर के सह फिल्म निर्माता यामीन खान. हरियाणा के गन्नौर निवासी यामीन खान ने न सिर्फ संगम में डुबकी लगाई, बल्कि महाकुंभ की आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस भी किया. संगम नहाने के बाद यामीन प्रमुख साधु संतों से भी मिले.
ईटीवी भारत से बातचीत में यामीन खान ने महाकुंभ आने की अपनी अनुभूति को साझा करते हुए बताया कि, जब मैं ट्रेन से प्रयागराज आया तो मेरे शरीर में काफी दर्द था. जैसे ही मैंने गंगा में स्नान किया तो मेरी सारे दर्द दूर हो गए. मेरे अंदर की सारी निगेटिविटी खत्म हो गई. 144 साल बाद लगने वाले इस आध्यात्मिक समागम और महाकुंभ की ऊर्जा को मैंने महसूस किया है. गंगा नहाकर मैं धन्य हो गया.
वहीं यामीन खान से जब ये सवाल पूछा गया कि दूसरे धर्म के मानने वाले होने के बाद भी संगम में डुबकी लगाने आ गए, इस पर आपके खिलाफ फतवा भी जारी हो सकता है. इस पर यामीन ने जबाव दिया कि मेरे हिसाब से इन सब के पीछे अशिक्षा सबसे बड़ा कारण है. अगर हमारे बच्चे शिक्षित होंगे तो वह धर्म के ऊपर उठकर इंसानियत के बारे में सोचेंगे. इंसानियत के बारे में बात करेंगे और एक अच्छे इंसान बनेंगे. हमने बचपन से ही साथ में एक दूसरे के त्योहार मनाते आए हैं. हमारे दोस्त हमारे घर ईद मनाते थे और हम उनके साथ दिवाली मनाते थे. हमारे बीच में कभी ऐसा कुछ भी नहीं रहा. मुझे मौलानाओं के फतवे का कोई डर नहीं है. मेरे लिए इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.
यामीन खान ने कहा कि एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के नाते हमारे साथी किसी धर्म की भावना से नहीं प्रेरित होते, बल्कि टीम भावना से काम करते हैं. हमारे अंदर जाति और धर्म की फीलिंग नहीं रह जाती है. मेरा मानना है कि अगर ऐसे ही देश का हर नागरिक एक टीम भावना से कम करे और सोचे तो अपना देश दुनिया में नंबर एक की अर्थव्यवस्था बन सकता है.